अर्धसैनिक बलों में लगातार बढ़ रहे हैं मानसिक रोग के मामले
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

ट्रेन में अचानक चार लोगों को मार देने के आरोपी रेलवे पुलिस के एक कांस्टेबल के मानसिक स्वास्थ्य को लेकर खबरें आई थीं. मामले में पूरा सच अभी बाहर नहीं आया है, लेकिन भारत में सुरक्षाकर्मियों का मानसिक तनाव बढ़ जरूर रहा है.कांस्टेबल चेतन सिंह के मामले में कई मीडिया रिपोर्टों में रेलवे पुलिस के अधिकारियों के हवाले से दावा किया गया था कि सिंह किसी मानसिक रोग से पीड़ित हैऔर उनका इलाज चल रहा है.

रेल मंत्रालय ने दो अगस्त को एक बयान भी दिया था जिसमें मंत्रालय ने कहा था कि सिंह निजी स्तर पर अपना इलाज करवा रहे थे जो उनके आधिकारिक रिकॉर्ड में कहीं दर्ज नहीं है. बयान में यह भी कहा गया कि सिंह और उनके परिवार ने उनके इलाज की बात को छुपा कर रखा था.

सुरक्षाबलों में मानसिक तनाव

लेकिन मंत्रालय ने कुछ ही घंटों के अंदर इस बयान को वापस ले लिया और कहा कि इस मामले की जांच के लिए एक उच्च-स्तरीय समिति बनाई गई है जो इन सभी मामलों को देखेगी, इसलिए बयान को वापस ले लिया गया.

सिंह को कोई शारीरिक या मानसिक रोग है या नहीं, शायद इस सवाल का जवाब इस जांच के बाद ही मिल पाए, लेकिन भारत में सुरक्षाकर्मियों का मानसिक तनाव में होना कोई अनसुनी बात नहीं है. हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने इससे संबंधित आंकड़े देकर इसकी पुष्टि भी की.

राज्य सभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में मंत्रालय ने बताया कि 2020 में सभी केंद्रीय अर्धसैनिक बलों में 3,584 कर्मियों का मानसिक इलाज चल रहा था, लेकिन 2022 में यह संख्या बढ़ कर 4,940 हो गई थी. यह दो सालों में करीब 38 प्रतिशत की उछाल है.

इन आंकड़ों में बीएसएफ, सीएआईएसएफ, सीआरपीएफ, आईटीबीपी, एसएसबी और असम राइफल्स (एआर) शामिल हैं. सबसे ज्यादा मानसिक रोगी सीआरपीएफ मेंहैं. 2022 में कुल 4,940 में से 1,882 रोगी सीआरपीएफ के, 1,327 बीएसएफ के, 530 एआर के, 472 सीआईएसएफ के, 417 आईटीबीपी के और 312 एसएसबी के थे.

गृह मंत्रालय का कहना है कि अर्धसैनिक बलों के कर्मियों का नियमित रूप से चेकअप, इलाज और फॉलोअप करवाया जाता है, जरूरत पड़ने पर अच्छे अस्पतालों में विशेषज्ञों के पास भेजा जाता है, योग कराया जाता है और स्ट्रेस काउन्सलिंग करवाई जाती है.

तनाव से हत्या और आत्महत्या भी

इसके अलावा हर यूनिट में पैरामेडिकल कर्मियों और चिकित्सा अधिकारियों के लिए कार्यशालाएं भी आयोजित की जाती हैं ताकि वो शुरुआत में ही ऐसे मामलों को चिन्हित कर सकें और इलाज शुरू कर सकें.

लेकिन इन सुरक्षाबलों में पर्याप्त संख्या में मनोरोग विशेषज्ञ मौजूद हैं ही नहीं इस बात पर संदेह है. गृह मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक सीआरपीएफ में सिर्फ तीन, बीएसएफ में चार, एआर में एक, आईटीबीपी में पांच और एसएसबी में सिर्फ एक मनोरोग संबंधी डॉक्टर है.

सीआईएसएफ में ऐसे कितने डॉक्टर हैं यह जानकारी नहीं दी गई है. लेकिन इस व्यवस्था के बावजूद मनोरोग, तनाव और उसकी वजह से होने वाली घटनाएं लगातार हो रही हैं. मिसाल के तौर पर अर्धसैनिक बलों में आत्महत्या के भी कई मामले सामने आते रहते हैं.

मंत्रालय ने माना कि 2018 से 2022 के बीच, सभी अर्धसैनिक बलों में 658 कर्मियों ने आत्महत्या कर ली. आत्महत्या करने वाले जवानों में 230 जवान सीआरपीएफ के, 174 बीएसएफ के, 91 सीआईएसएफ के, 65 एसएसबी के, 51 आईटीबीपी के और 47 एआर के थे.

जैसा कि चेतन सिंह वाले मामले में हुआ अर्धसैनिक बलों में अपने सहयोगियों को भी मार देने के मामलेअक्सर सामने आते हैं. गृह मंत्रालय ने 2022 में इससे संबंधित आंकड़े भी संसद में दिए थे, जिनके मुताबिक 2017 से 2022 के बीच में इस तरह के मामलों में 57 कर्मियों की जान गई.