'ए भाई जरा देख के चलो'...'जीना यहां मरना यहां'.., 'दुनिया बनाने वाले क्या'.., 'दोस्त दोस्त न रहा'.., 'चल री सजनी अब'.., 'आवारा हूं या गर्दिश में'.., ऐसे अनगिनत दर्द भरे, सदाबहार एवं लोकप्रिय गाना गाने वाले मुकेश चंद्र माथुर (Mukesh Chandra Mathur) मूलतः दिल्ली के कायस्थ परिवार से थे. पहले दिलीप कुमार (Dilip Kumar) और फिर राज कपूर (Raj Kapoor) एवं मनोज को अपनी आवाज से लोकप्रिय बनाने वाले मुकेश चंद्र माथुर काफी कम समय में शोहरत की बुलंदियों तक पहुंच गये थे. वे मात्र 53 वर्ष के थे, जब अमेरिका के डेट्रायट में खतरनाक हद्याघात के कारण उनकी मृत्यु हो गई. यद्यपि मुकेश (Mukesh) के प्रशंसकों का मानना है कि मुकेश जैसा फनकार कभी मर नहीं सकता. अपनी सुमधुर आवाज के साथ आज भी वे हमारे बीच उपस्थित हैं. आज देश इस महान गायक की 43वीं पुण्य-तिथि मना रहा है.
सुरों के सरताज और अपने समय के सर्वाधिक लोकप्रिय गायक मुकेश चंद्र माथुर का जन्म 22 जुलाई 1923 को दिल्ली में एक कायस्थ परिवार में हुआ था. पिता जोरावर चंद्र माथुर इंजीनियर थे और मां चंद्रानी माथुर हाउस वाइफ. 10 भाइयों में छठे नंबर पर के मुकेश दसवीं की पढ़ाई के बाद पीडब्लूडी में नौकरी करने लगे थे. मुकेश की बड़ी बहन सुंदर प्यारी माथुर संगीत बच्चों की संगीत सिखाती थीं. मुकेश अकसर उन्हें छिप कर सुनते थे, लेकिन संगीत के प्रति अपनी रुझान को वे किसी के सामने दर्शाते नहीं थे. 10वीं की पढ़ाई के बाद मुकेश पढ़ाई छोड़कर सार्वजनिक निर्माण विभाग (पी. डब्ल्यू. डी.) में नौकरी करने लगे थे.
ऐसे मिला फिल्मों में गाने का मौका
एक बार मुकेश अपनी बड़ी बहन की शादी में गाना गा रहे थे. मुकेश के गाने ने शमां बांध दिया. मुकेश की इतनी मधुर आवाज सुनकर वहां उपस्थित लोग हैरान रह गये थे. इसी कार्यक्रम में मुकेश के दूर के रिश्तेदार मोतीलाल भी उपस्थित थे. उस समय तक मोतीलाल हिंदी सिनेमा में बतौर एक्टर अपना काफी नाम अर्जित कर चुके थे. वे मुकेश की आवाज से बहुत प्रभावित हुए. उन्होंने मुकेश को बंबई (मुंबई) अपने घर बुलवाया, और रियाज करने एवं उनकी आवाज को और मांजने के लिए संगीत गुरू पंडित जगन्नाथ प्रसाद के पास भेजना शुरू किया. मुकेश की आवाज से चोटी के गायक कुंदन लाल सहगल भी बहुत प्रभावित हुए थे.
गायकी के साथ अभिनय भी
मुकेश बंबई गायक बनने आये थे. लेकिन चूंकि उन दिनों हीरो से उनके गाने भी खुद ही गवाये जाते थे, लिहाजा मुकेश को भी ऐसे अवसर मिले. 1941 में उनकी पहली फिल्म ‘निर्दोष’ रिलीज हुई. इसमें उनकी हीरोइन नलिनी जयवंत थीं. इसके बाद सिलसिलेवार उनकी कई फिल्मे ‘आदाब अर्ज’ (1943), ‘आह’ (1953), ‘माशूका’ (1953) और ‘अनुराग’ (1956) में परदे पर आई. लेकिन उनकी अधिकांश फिल्में फ्लॉप हुईं,तब उन्होंने अपना सारा ध्यान गायकी में लगाना शुरू किया. बतौर प्लेबैक सिंगर उनकी पहला हिट गाना था अनिल बिस्वास निर्देशित फिल्म ‘पहली नजर’ (1945) ‘दिल जलता है तो जलने दे..’ सुपर हिट हुई. इस गाने सुनने वाले दर्शक अचानक इस बात पर विश्वास नहीं कर सके कि यह केएल सहगल नहीं बल्कि मुकेश गा रहे हैं. इसके पश्चात मुकेश ने अपने सुर को नियंत्रण में लेते हुए खुद की स्टाइल डेवलप की. शीघ्र ही वे सहगल की छाप से मुक्त हो गये. उनके गाये गीत, ‘तू कहे अगर..’ ‘जिंदा हूं इस तरह की गमे..’ ‘चल री सजनी अब क्या सोचे..’, ‘ये मेरा दीवानापन है..’, ‘दोस्त दोस्त ना रहा..’, ‘जाने कहां गये वो दिन..’, ‘कभी कभी मेरे दिल में..’ ‘इक दिन बिक जायेगा माटी के मोल..’ जैसे हजारों गाने सुपर हिट हुए. मुकेश ने लगभग सभी स्टार्स के लिए गाने हैं.
विवाह पर विवाद के बादल
साल 1946 में मुकेश को एक गुजरती लड़की बची बेन से प्यार हो गया था. मुकेश के पास जहां रहने का सही ठिकाना तक नहीं था, और गायकी के लिए भी वे संघर्ष कर रहे थे, जबकि बची बेन संपन्न गुजरती परिवार से थीं. बची बेन के पिता रायचंद त्रिवेदी को यह रिश्ता कत्तई पसंद नहीं था. उधर मुकेश के पिता को भी यह बेमेल विवाह लग रहा था. अंततः मुकेश और बची ने अपने घर-परिवार की चिंता किये बगैर घर से भागकर 22 जुलाई 1946 को विवाह के अटूट बंधन में बंध गये. इस शादी को करवाने में मोतीलाल की बड़ी भूमिका बतायी जाती है. उन्होंने अपने तीन अन्य साथियों की उपस्थिति में एक मंदिर में दोनों की शादी की सारी रस्में पूरी कराई. उनकी संतानों में एक बेटा नितिन मुकेश और दो बेटियां रीटा एवं नलिनी थीं. नितिन मुकेश का बेटा नील नितिन मुकेश है.
दिलीप-राज-मनोज की आवाज थे मुकेश
अपने समय के चोटी के तीन अभिनेताओं दिलीप कुमार, राज कपूर और मनोज कुमार के लिए बहुतायत गाने मुकेश ने गाये थे. 40 के दशक में दिलीप कुमार पर सबसे ज्यादा मुकेश के गाने फिल्माए गये. -ये जिंदगी के मेले.. सुहाना सफर और... झूम झूम के नाचो आज.., हम आज कहीं दिल खो बैठे.., ये मेरा दीवानापन है... इसके पश्चात 50 के दशक में राज कपूर के लिए मेरा जूता है जापानी.., जीना यहां मरना यहां.., इक दिन बिक जायेगा.. दोस्त दोस्त न रहा.. और 60 के दशक में मनोज कुमार के लिए कोई जब तुम्हारा ह्रदय तोड़ दे.. चांद सी महबूबा ओ.., महबूब मेरे तू है जो... बोलो बेईमान की जय.., इक प्यार का नगमा.. जैसे सैकड़ों गाने मुकेश ने गाये, और लगभग सभी खूब लोकप्रिय हुए.
डेट्रायट निधन
27 जुलाई 1976 के दिन एक म्युजिक कंसर्ट के लिए मुकेश एवं लता मंगेशकर अपनी टीम के साथ न्यूयार्क गये. पहली बार मुकेश के बेटे नितिन मुकेश भी कंसर्ट में आमंत्रित थे. एक इंटरव्यू में नितिन मुकेश ने बताया था कि अमेरिका के न्यूयार्क, वेन्कुवर, डेट्रायट एवं कनाडा आदि में कुल 10 शो होने थे. पहले छह शो सुपर हिट होने के बाद सभी खुश थे. 27 अगस्त को सातवां शो डेट्रायट में होना था. हमेशा की तरह मुकेश रियाज करने के बाद बाथरूम गये. मगर अचानक वे हांफते हुए बाहर आए. उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया. डॉक्टर्स ने बताया कि उन्हें खतरनाक हार्ट अटैक आया है. पापा जी को विश्वास था कि वे शीघ्र ही स्वस्थ होकर आयेंगे, लेकिन कुछ ही घंटों बाद डॉक्टर्स ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.