प्रयागराज, 21 मई इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मंगलवार को मथुरा में कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह विवाद मामले में सुनवाई की और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड तथा हिंदू पक्ष की दलील सुनने के बाद अगली सुनवाई शुक्रवार के लिए निर्धारित कर दी है।
इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति मयंक कुमार जैन की अदालत कर रही है।
उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने अपनी दलील में कहा कि 12 अक्टूबर 1968 को हिंदू पक्ष और वक्फ बोर्ड के बीच एक समझौता हुआ था जिसके जरिए विवादित संपत्ति शाही ईदगाह को सौंपी गई थी।
वक्फ बोर्ड के अधिवक्ता ने कहा, ‘‘वर्ष 1974 में तय एक दीवानी वाद में भी इस समझौते की पुष्टि की गई है। साथ ही इस समझौते को करने वाले संस्थान में कई नामी गिरामी व्यक्ति सदस्य थे। चूंकि दोनों पक्षों के बीच कई मुकदमे चल रहे थे, इसलिए उन्होंने समझौता करने का निर्णय किया और तब से मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा वहां नमाज अदा की जा रही है।’’
सुन्नी वक्फ बोर्ड की दलील पर आपत्ति करते हुए हिंदू पक्ष के अधिवक्ता ने कहा, ‘‘मुस्लिम पक्ष का स्वयं का कथन है कि समझौते में वक्फ बोर्ड और शाही ईदगाह के किराएदार शामिल थे जो दर्शाता है कि हस्ताक्षर करने वाले संपत्ति के स्वामी नहीं थे, बल्कि वे किराएदार थे।’’
उन्होंने कहा कि यह संपत्ति भगवान श्री केशव देव विराजमान, कटरा केशव देव की है और जन्म संस्थान के पास समझौता करने का कोई अधिकार नहीं था। संस्थान का उद्देश्य केवल दैनिक गतिविधियों के प्रबंधन का था।
दलील सुनने के बाद अदालत ने इस मामले की अगली सुनवाई शुक्रवार को करने का निर्देश दिया।
इससे पूर्व, सोमवार को हिंदू पक्ष की ओर से कहा गया था कि पूजा स्थल कानून, 1991 गैर विवादित ढांचे के मामले में ही लागू होता है न कि विवादित ढांचे के मामले में। मौजूदा मामले में ढांचे का चरित्र अभी तय होना बाकी है और यह केवल साक्ष्यों से तय हो सकता है।
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