देश की खबरें | न्यायालय में याचिका दायर कर ईवीएम-वीवीपैट से जुड़े फैसले की समीक्षा करने का अनुरोध किया गया

नयी दिल्ली, 13 मई उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर कर 26 अप्रैल के उस फैसले की समीक्षा करने का अनुरोध किया गया है, जिसमें मत पत्रों से मतदान कराने की प्रणाली फिर से अपनाने और ‘ईवीएम’ के जरिये डाले गए सभी मतों का मिलान ‘वीवीपैट’ (वोटर वेरिफिएबल ऑडिट ट्रेल) से करने का निर्देश जारी करने की मांग शीर्ष अदालत द्वारा खारिज कर दी गई थी।

पुनरीक्षण याचिका अधिवक्ता नेहा राठी के मार्फत अरूण कुमार अग्रवाल ने दायर की है, जिन्होंने इस मुद्दे पर पूर्व में जनहित याचिका दायर की थी।

यह याचिका 10 मई को दायर की गई, जिसमें कहा गया है, ‘‘उक्त फैसले में गलतियां और त्रुटियां हैं..., और इस तरह उक्त आदेश/फैसले की समीक्षा करने की जरूरत है।’’

इसमें कहा गया है, ‘‘याचिकाकर्ता 26 अप्रैल 2024 के फैसले में विचार किये गए निम्नलिखित मुद्दों की समीक्षा चाहता है: 1) समय लगने और अतिरिक्त कर्मियों की सेवा लेने के संदर्भ में सभी वीवीपैट पर्ची की गिनती की व्यवहार्यता, 2) चुनाव चिह्न ‘लोड’ करने वाली इकाई की संवेदनशीलता, और 3) चंद्रबाबू नायडू फैसले के बाद, ईवीएम से डाले गए मतों का मिलान करने के लिए गिनती की गई वीवीपैट पर्चियों का प्रतिशत।’’

याचिका में वीवीपैट पर्चियों की हाथ से गिनती किये जाने का अनुरोध करते हुए कहा गया है कि सभी वीवीपैट पर्चियों की गिनती कर्मचारियों के एक समूह द्वारा सटीकता से और पांच से छह घंटों के अंदर की जा सकती है।

इसमें कहा गया है कि वीवीपैट पर्ची का आकार, क्रेडिट या डेबिट कार्ड का इस्तेमाल करने के दौरान भुगतान के बाद प्राप्त पर्ची के बराबर होता है।

याचिका में कहा गया है कि ईवीएम मतदाताओं को यह सत्यापित नहीं करने देता कि उनके वोट उसी उम्मीदवार को मिला है, जिसे उन्होंने वोट दिया है।

इसमें कहा गया है, ‘‘साथ ही, ईवीएम में डिजाइनर, प्रोग्रामर, विनिर्माता, रखरखाव टेक्नीशियन जैसे अंदरूनी लोग दुर्भावनापूर्ण बदलाव कर सकते हैं। इसलिए, इन तथ्यों के आलोक में, 26 अप्रैल के उक्त फैसले में संभवत: त्रुटियां हैं, जिनकी समीक्षा किये जाने की जरूरत है।’’

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने 26 अप्रैल को, ‘इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन’ (ईवीएम) में हेरफेर के संदेह को ‘‘बेबुनियाद’’ करार दिया था और मत पत्रों से चुनाव कराने की पुरानी प्रणाली फिर से अपनाने का आग्रह खारिज कर दिया था।

न्यायालय ने कहा था कि मतदान के लिए उपयोग में लाये जा रहे उपकरण ‘‘सुरक्षित’’ हैं और इसने बूथ पर कब्जा किये जाने और फर्जी मतदान की समस्या खत्म कर दी।

इसके साथ ही, शीर्ष अदालत के फैसले ने चुनाव नतीजों में दूसरे और तीसरे स्थानों पर रहे असफल उम्मीदवारों को भी कुछ राहत दी तथा उन्हें प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में पांच प्रतिशत ईवीएम में लगी ‘माइक्रो-कंट्रोलर’ चिप के सत्यापन का अनुरोध करने की अनुमति दी। हालांकि, इसके लिए उन्हें निर्वाचन आयोग को एक लिखित आवेदन देना होगा और शुल्क का भुगतान करना होगा।

न्यायालय ने निर्देश दिया था कि एक मई से, चुनाव चिह्न को ‘लोड’ करने वाली इकाइयों को सील किया जाना चाहिए और एक कंटेनर में सुरक्षित रखा जाए तथा चुनाव नतीजों की घोषणा के बाद कम से कम 45 दिनों की अवधि के लिए ईवीएम के साथ ‘स्ट्रॉन्ग रूम’ में उनका भंडारण किया जाए।

अपने इस फैसले के साथ, शीर्ष अदालत ने वे जनहित याचिकाएं खारिज कर दीं, जिनमें मत पत्रों से चुनाव कराने की प्रणाली फिर से अपनाने के लिए निर्देश जारी करने का भी अनुरोध किया गया था।

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