ताजा खबरें | सिंधु, गंगा, ब्रह्मपुत्र घाटियों में 28,043 झीलों का मानचित्रण हुआ: सरकार ने समिति को बताया

नयी दिल्ली, 10 फरवरी सरकार ने संसद की एक समिति को बताया कि राष्ट्रीय जल विज्ञान परियोजना के तहत राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र, इसरो ने हिमालय की सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र घाटियों में 0.25 हेक्टेयर से अधिक आकार की 28,043 झीलों का मानचित्रण किया है और एटलस तैयार किया है।

कांग्रेस सांसद जयराम रमेश की अध्यक्षता वाली विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन संबंधी स्थायी समिति की रिपोर्ट में यह बात कही गई है। समिति के तीन सौ बासठवें प्रतिवेदन में अंतर्विष्ट सिफारिशों पर सरकार द्वारा की गई कार्रवाई रिपोर्ट बृहस्पतिवार को संसद में पेश की गई।

रिपोर्ट के अनुसार, सरकार ने समिति को बताया कि भूस्खलन वाली झीलों को छोड़कर हिमनद झील का निर्माण एक धीमी प्रक्रिया है और आमतौर पर लंबी अवधि तक चलती है। हिमनद झीलों की गतिशीलता और प्रयोग करने योग्य उच्च उपग्रह डेटा की उपलब्धता को ध्यान में रखते हुए यह जरूरी है कि लगभग हर 3-5 वर्ष में आवधिक रूप से हिमनदीय झीलों की सूची अद्यतन हो।

इसमें कहा गया है कि केंद्रीय जल आयोग, राज्य आपदा संगठन, राज्य सुदूर संवेदन केंद्र द्वारा हिमनद झीलों के डेटाबेस को अद्यतन किया जा सकता है। राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र, इसरो संबंधित संगठन की क्षमता का निर्माण करेगा और तकनीकी सहयोग को बढ़ाएगा।

वहीं, संसदीय समिति ने अपनी सिफारिशों में कहा कि अंतरिक्ष विभाग 2.5 हेक्टेयर से अधिक आकार की हिमनद झीलों के मानचित्रण का प्रयास कर रहा है और गंगा बेसिन और सतलज नदी के संबंध में अभ्यास को पूरा कर लिया है।

समिति का विचार है कि हिमालयी क्षेत्र में हिमनद और हिमनद झीलों के बारे में वार्षिक आधार पर एक सूची का दस्तावेजीकरण किया जाए तो वह बहुत महत्वपूर्ण होगा। इस दृष्टि से कई अध्ययनों से यह स्पष्ट हुआ है कि वैश्विक उष्णता के प्रभावों के कारण हिमनदों के पीछे हट जाने के चलते हिमनद झीलों की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है।

रिपोर्ट के अनुसार, समिति ने कहा कि भविष्य में आने वाली संभावित बाढ़ और विनाश को ध्यान में रखते हुए यह अत्यंत महत्वपूर्ण है कि हिमनद की जमीनी रिपोर्टिेंग महत्वपूर्ण हो जाती है।

इसमें कहा गया है कि ऐसे कई हिमनद जमीनी रिपोर्टिंग के लिए भौतिक रूप से दुर्गम क्षेत्र में हैं। ऐसे में समिति महसूस करती है कि आधुनिक तकनीक और बेहतर उपग्रह डाटा के साथ हिमनद झीलों के फटने की निगरानी का कार्य अधिक वैज्ञानिक और मजबूती से किया जा सकता है। इसके लिये समयबद्ध तरीके से कार्रवाई हो और सुदूर संवेदन सेवाओं का सर्वोत्तम उपयोग किया जाए।

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