जर्मनी में प्रयोगशालाओं में जानवरों की संख्या घटी
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

जर्मनी में प्रयोगशालाओं में इस्तेमाल किए जा रहे जानवरों की संख्या लगातार घट रही है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2022 में ऐसे जानवरों की संख्या में भारी कमी आई.जर्मनी में प्रयोगशालाओंमें वैज्ञानिक प्रयोगों में इस्तेमाल किए जा रहे जानवरों की संख्या अब 17.3 लाख रह गई है. यह 2021 के मुकाबले 1,34,000 कम है. देश के फेडरल इंस्टिट्यूट फॉर रिस्क असेसमेंट नामक संस्थान ने ये आंकड़े जारी किए हैं.

सोमवार को आंकड़े जारी करते हुए संस्थान के प्रमुख आंद्रियास हेंजेल ने कहा कि यह स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि जानवरों की संख्या में गिरावट जारी है और अब जर्मनी में कम जानवरों पर प्रयोग किए जा रहे हैं. उन्होंने कहा कि लगातार तीसरे साल इन जानवरों की संख्या में गिरावट दर्ज की गई है.

आंकड़ों के मुताबिक जर्मनी की प्रयोगशालाओं में मौजूद जानवरों में से 79 फीसदी चूहे थे. हालांकि इनकी संख्या भी 2021 के मुकाबले घटी है. 2021 में 13.4 लाख सफेद चूहे थे जिनकी संख्या 2022 में घटकर 12.5 लाख रह गई.

बढ़ गए बंदर

उधर बंदरों और उनके जैसे अन्य जीवों की संख्या में वृद्धि देखी गई है. एजेंसी ने कहा कि बंदरों को इंसानों के लिए बनने वाली दवाओं के प्रयोगों के लिए सीमित तौर पर ही इस्तेमाल किया जा रहा है.

दुनियाभर में प्राणी अधिकार कार्यकर्ता प्रयोगशालाओं में जानवरों का इस्तेमाल बंद करने के लिए आंदोलन छेड़े हुए हैं. जानवरों की सुरक्षा के लिए काम करने वाली संस्था पीटा के मुताबिक सिर्फ अमेरिका में हर साल प्रयोगों के नाम पर 11 करोड़ जानवर मारे जाते हैं. इनमें चूहे, मेंढक, कुत्ते, बिल्लियां, खरगोश, गिनी पिग, बंदर, मछलियां और पक्षी शामिल हैं.

वेबसाइट पर प्रकाशित एक लेख में पीटा लिखती है, "मौत से पहले कुछ जानवरों को जहरीली गैस सूंघने को मजबूर किया जाता है तो कुछ बंधनों में घंटो तक रखा जाता है. कुछ की खोपड़ियों में छेद किए जाते हैं तो कुछ की त्वचा जला दी जाती है.”

संस्था कहती है कि सोचने-समझने और महसूस करने वाले इन जानवरों के साथ प्रयोगशालाओं में उपकरणों जैसा व्यवहार किया जाता है.

कितना कारगर है इस्तेमाल?

अमेरिकी सर्वेक्षण संस्था प्यू रिसर्च सेंटर ने अपने एक अध्ययन में पाया था कि अमेरिका के 52 फीसदी लोग वैज्ञानिक प्रयोगों में जानवरों के इस्तेमाल का विरोध करते हैं और जो लोग इस तरह के प्रयोगों के समर्थक हैं, उनकी संख्या कम हो रही है. पीटा कहती है, "जानवरों पर होने वाले अधिकतर प्रयोग इंसान की सेहत सुधारने में कोई योगदान नहीं देते इसलिए प्रयोगों में जानवरों के इस्तेमाल के लाभ पर सवालिया निशान है.”

कुछ वैज्ञानिकों ने प्रयोगशालाओं में जानवरों के इस्तेमाल पर शोध किया था जिसे द जर्नल ऑफ द अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन में प्रकाशित किया गया था. इस शोध में कहा गया कि जानवरों पर प्रयोग से खोजे गए इलाज बहुत कम ही इंसानों के काम में आ पाते हैं. शोधकर्ताओं ने लिखा, "मरीज और डॉक्टर दोनों ही जानवरों पर हुए शोध के इस्तेमाल को लेकर संदेह में रहते हैं.”

इस मामले में एचआईवी वायरस के इलाज की मिसाल दी जाती है. पीटा के मुताबिक 2015 तक एचआईवी-एड्स के इलाज के लिए ईजाद की गईं 85 फीसदी वैक्सीन बंदरों पर सफल रहीं लेकिन इंसानों पर कामयाब नहीं हो पाई.

क्या कहते हैं वैज्ञानिक?

इसके बावजूद बहुत से वैज्ञानिकों का मानना है कि प्रयोगों में जानवरों का इस्तेमाल जरूरी है. स्टैन्फर्ड मेडिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट ने इस बारे में एक लेख प्रकाशित किया था. लेख में कहा गया कि बायोमेडिकल रिसर्च में जानवरों का किसी ना किसी रूप में इस्तेमाल महत्वपूर्ण है और वे बीमारियों की वजहों, पहचान और इलाज की खोज में अहम भूमिका निभाते हैं.

संस्थान कहता है, "अब तक ऐसा कुछ भी नहीं खोजा गया है जो एक जीवित, सांस लेते पूरी जैविक व्यवस्था की जगह ले सके. जब तक ऐसी खोज नहीं हो जाती, तब तक जानवरों को नई दवाओं की खोज में शोधकर्ताओं की मदद में अपनी भूमिका निभाते रहना होगा.”

विवेक कुमार (डीपीए)