डार्विन के 164 साल बाद प्राकृति के नये नियम का प्रस्ताव
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credit: Image File)

मानव विकास का वर्णन करने वाला डार्विन का सिद्धांत तो असल सिद्धांत का एक हिस्सा भर है. वैज्ञानिकों ने यह कहते हुए नया सिद्धांत दिया है.1859 में अपनी किताब ‘ऑन द ऑरिजिन ऑफ स्पीशिज' में चार्ल्स डार्विन ने मानव विकास का सिद्धांत दिया और कहा कि समय के साथ-साथ जीव नये गुण विकसित करते रहते हैं जो उनके अस्तित्व और पुनरोत्पादन में मदद करते रहते हैं. इस सिद्धांत ने विज्ञान जगत में क्रांतिकारी बहस छेड़ दी थी.

अब 164 साल बाद नौ वैज्ञानिकों और दार्शनिकों ने प्रकृति का एक नया सिद्धांत दिया है जिसमें डार्विन के सिद्धांत को एक विस्तृत परिघटना का हिस्सा बताया गया है. यह परिघटना अणुओं, खनिजों, ग्रहीय वातावरण, ग्रहों, सितारों और उनके पार भी घटती है.

नया प्रस्तावित सिद्धांत कहता है कि प्रकृतिक व्यवस्था कहीं अधिक विस्तृत प्रचलन, विविधता और जटिलता के साथ विकसित होती है.

कार्नेज इंस्टिट्यूशन ऑफ साइंस में मिनरेलॉजिस्ट और एस्ट्रोबायोलॉजिस्टन रॉबर्ट हेजन उन नौ वैज्ञानिकों में से एक हैं जिन्होंने यह शोधपत्र लिखा है. हेजन कहते हैं, "हम विकास को एक वैश्विक प्रक्रिया के तौर पर देखते हैं जो जीवित और अजीवित दोनों ही तरह के तमाम समूहों पर लागू होता है. इससे समय के साथ-साथ पैटर्न और विविधता बढ़ती जाती है.”

कैसे होता है विकास?

‘लॉ ऑफ इनक्रीजिंग फंक्शनल इनफॉर्मेशन' नाम से यह शोध पत्र प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल अकैडमी ऑफ साइंसेज पत्रिका में प्रकाशित हुआ है. यह कहता है कि विकसित होते जीवित और अजीवित तंत्र अलग-अलग तरह के ढांचे बनाते हैं जो आपस में संवाद करते हैं. अणु या कोशिका जैसे ये ढांचे लगातार विकसित होते हैं, मसलन कोशिकाएं टूटती हैं और नयी कोशिकाएं बनती हैं. इन सभी ढांचों के अलग-अलग काम हो सकते हैं और इस कारण लगातार विकास होता है.

हेजन कहते हैं, "हमारे पास स्थापित नियम हैं जो इन रोजमर्रा की प्रक्रियाओं का वर्णन करते हैं. मसलन, बल, गुरुत्वाकर्ण, चुंबकीय बल, ऊर्जा या विद्युत आदि के नियम. लेकिन अपने आप या मिलकर भी ये नियम इस सवाल का जवाब नहीं देते कि ब्रह्मांड लगातार और अधिक विविध और जटिल क्यों होता जा रहा है. यह विविधता और जटिलता अणुओं से लेकर खनिजों तक और अन्य स्तरों पर बढ़ती है.”

उदाहरण के लिए सितारों में सिर्फ दो तत्व हाइड्रोजन और हीलियम ही 13.8 अरब साल पहले बिग बैंग के मुख्य तत्व थे. सितारों की पहली पीढ़ी ने अपने नाभिक में होने वाली थर्मोन्यूकलियर फ्यूजन प्रक्रिया के जरिये 20 से ज्यादा भारी तत्वों को जन्म दिया, जैसे कि कार्बन, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन आदि. अपने जीवन चक्र के बाद जब इन सितारों में विस्फोट हुआ तो ये तत्व पूरे ब्रह्मांड में फैल गये. उसके बाद सितारों की जो पीढ़ी तैयार हुई उन्होंने लगभग 100 और नये तत्व बनाये.

बढ़ती जटिलताएं

इसी तरह पृथ्वी पर जीवित तत्वों की जटिलता लगातार बढ़ती रही और वे एक कोशिकीय से बहुकोशिकीय होते चले गये. हेजन कहते हैं, "कल्पना कीजिए कि अणुओं परमाणुओं का एक ही तंत्र खरबों तरह से अलग-अलग तंत्रों में मौजूद हो सकता है. इनमें से बहुत कम ही तंत्र काम करेंगे. यानी उनकी कोई लाभदायक भूमिका होगी. और प्रकृति उन्हीं लाभदायक समीकरणों का इस्तेमाल करेगी.”

प्रकृति द्वारा इस चुनाव को वैज्ञानिकों ने तीन श्रेणियों में बांटा है. यानी प्रकृति तीन अवधारणाओं पर चुनाव करती हैः लगातार बने रहने की क्षमता, विकास करने की सक्रियता और वातावरण के अनुरूप ढलने के लिए विशेष गुण हासिल करने की क्षमता.

तैरने, चलने, उड़ने और सोचने की क्षमताएं इन्हीं विशेष गुणों के उदाहरण हैं. मानव प्रजाति तब उभरी जब विकास के दौरान चिंपैंजियों से अलग होकर मानवों ने खड़े होने जैसे विशेष गुण हासिल किये, चलना सीखा और उनके मस्तिष्क का आकार बढ़ा.

कार्नेज इंस्टिट्यूशन में ही एस्ट्रोबायोलॉजिस्ट माइकल वोंग इस शोध पत्र के मुख्य लेखक हैं. वह कहते हैं, "यह शोध महत्वपूर्ण है क्योंकि यह प्रक्रियाओं में मौजूद ब्रह्मांड को समझाता है. इस तरह के सिद्धांत के प्रतिपादन की अहमियत ये है कि यह हमारे ब्रह्मांड को बनाने वाले विभिन्न तंत्रों के विकास के व्यवहार को समझाता है. और शायद यह भविष्यवाणी करने में मदद करे कि एक दूसरे से अनजान तंत्र किस तरह विकसित होंगे. जैसे कि शनि के चंद्रमा टाइटन पर ऑर्गैनिक केमिस्ट्री कैसे काम करेगी.”

वीके/एए (रॉयटर्स)