Yogini Ekadashi 2022: कब है योगिनी एकादशी व्रत? जानें योगिनी एकादशी व्रत के दिव्य पुण्य-लाभ, महत्व, मुहूर्त, पूजा विधि एवं योगिनी एकादशी व्रत की कथा!
निर्जला एकादशी 2022 (Photo Credits: File Image)

हिंदू धर्म शास्त्रों में योगिनी एकादशी के दिन श्रीहरि एवं माँ लक्ष्मी का व्रत एवं पूजा करने का विशेष महत्व बताया गया है. मान्यता है कि ऐसा करनेवालों के जीवन में कोई कष्ट नहीं आता तथा मृत्योपरांत बैकुण्ठधाम की प्राप्ति होती है.

हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ मास के कृष्णपक्ष की एकादशी के दिन योगिनी एकादशी का व्रत रखा जाता है. इस वर्ष यह व्रत 24 जून 2022, शुक्रवार को रखा जायेगा. एकादशी व्रत में भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी की विधि-विधान से पूजा अनुष्ठान किया जाता है. इससे भगवान विष्णु प्रसन्न होकर भक्तों को हर मनोकामना की पूर्ति के लिए आशीर्वाद प्रदान करते हैं. योगिनी एकादशी के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग का निर्माण हो रहा है, और मान्यता है कि सर्वार्थ सिद्धि योग में किए गए हर कार्यों में सफलता प्राप्त होती है.

योगिनी एकादशी का महत्व!

योगिनी एकादशी के दिन श्रीहरि एवं लक्ष्मीजी की पूजा की जाती है. इस एकादशी का व्रत एवं विधिवत पूजा-अर्चना से समस्त तरह के पाप नष्ट होते हैं, और किसी भी किस्म के श्रॉप से भी मुक्ति मिलती है, तथा जीवन के अंतिम प्रहर में उसे बैकुण्ठ की प्राप्ति होती है. ऐसी भी मान्यता है कि इस व्रत को करने वाले जातक को 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन औऱ दक्षिणा देने जितना पुण्य लाभ प्राप्त होता है. ज्योतिष शास्त्रियों का तो यहां तक कहना है कि योगिनी एकादशी करनेवाला जातक ना केवल तमाम किस्म के शारीरिक व्याधियों से मुक्ति पाता है, बल्कि उसे आकर्षक दैहिक काया भी प्राप्त होती है, एवं जीवन में सुख-सम्पत्ति हासिल करता है.

योगिनी एकादशी शुभ मुहूर्त (24 जून, शुक्रवार, 2022)

एकादशी तिथिः 09.41 PM (23 जून, 2022) से शुरू

एकादशी तिथिः 11.12 PM (24 जून, 2022)  तक T

योगिनी एकादशी का पारण मुहूर्तः 05.43 AM से 08.12 तक (25 जून 2022)

योगिनी एकादशी की पूजा विधि

अन्य एकादशियों की तरह योगिनी एकादशी पर भी दशमी की शाम शाकाहारी भोजन करें. एकादशी के दिन प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-दान के पश्चात स्वच्छ वस्त्र पहनकर फलाहार व्रत एवं श्रीहरि की पूजा का संकल्प लें. श्रीहरि की प्रतिमा पर गंगाजल का छिड़कें. अब प्रतिमा पर पहले पंचामृत से फिर गंगाजल से स्नान करायें और श्रीहरि को पीतांबर पहनाएं. इसके पश्चात धूप दीप प्रज्जवलित कर श्रीहरि के आह्वान का निम्न मंत्र पढ़ें.

ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।

ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।।

अब श्रीहरि को रोली एवं अक्षत का तिलक लगायें. पीला पुष्प एवं पीला चंदन अर्पित करें. अब मिष्ठान का भोग लगायें. कुछ स्थानों पर कलश रखने का भी विधान है. इसके पश्चात श्रीहरि की आरती उतारें. एकादशी की रात्रि में रात्रि जागरण कर श्रीहरि का भजन एवं कीर्तन करें. अगले दिन स्नान-दान के पश्चात श्रीहरि की पूजा कर व्रत का पारण करें.

योगिनी एकादशी व्रत कथा

प्राचीनकाल में अलकापुरी नगर में राजा कुबेर के दरबार में एक माली हेम कार्य करता था. उसका सिर्फ एक ही कार्य था कि वह बिना नागा सुबह-सवेरे भगवान शिव की पूजा के लिए मानसरोवर से फूल लाए. एक दिन किसी वजह से माली को फूल लाने में बहुत ज्यादा देरी हो गई. यह देख राजा कुबेर ने क्रोधित होकर उसे कोढ़ी होने का श्राप दे दिया. माली कोढ़ी बनकर भटकते हुए मार्कण्डेय ऋषि के ऑफिस पहुंचा. ऋषि अपने तपोबल से उसकी सारी कहानी समझ गये. उन्होंने माली को सुझाव दिया कि वह पूरे विधि-विधान से योगिनी एकादशी का व्रत करे. माली ने ऋषि की सलाह पर वैसा ही किया और कोढ़ के श्रॉप से मुक्त हो गया