Valmiki Jayanti 2022: एक लुटेरा कैसे बना आदि कवि? जानें रत्नाकर से वाल्मीकि बनने की एक प्रेरक एवं रोचक कथा?
वाल्मीकि जयंती 2021 (Photo Credits: File Image)

सिफर से उठकर शिखर को छूने वालों में एक नाम महर्षि एवं महाकवि वाल्मीकि का भी है. पौराणिक ग्रंथों के अनुसार महर्षि वाल्मीकि का प्रारंभिक जीवन एक लुटेरे के रूप में गुजरा, लेकिन एक दिन उनके साथ ऐसी घटना घटी कि उनके भीतर के खूंखार डाकू के जीवन में आमूल परिवर्तन आया और वह संस्कृत का महान विद्वान आदि कवि बन गये. उन्होंने भगवान श्रीराम के जीवन को संस्कृत भाषा में रामायण के रूप में अवतरित किया. 9 अक्टूबर को वाल्मीकि जयंती के अवसर पर आइये जानें जानें एक डकैत के विद्वान बनने की क्या है प्रेरक कथा.

मान्यता है कि वाल्मीकि महर्षि कश्यप व अदिति के नौवें पुत्र प्रचेता की संतान थे. अश्विन मास की पूर्णिमा के दिन प्रचेता की पत्नी चर्षणी ने इन्हें जन्म दिया था. इनका बचपन का नाम रत्नाकर था. बचपन में ही रत्नाकर को भील जाति के कुछ लोग चुरा कर ले गये थे. भीलों के बीच रहते हुए रत्नाकर भी बचपन में ही उनके मुख्य पेशे लूटपाट से संलिप्त हो गये. बड़ा होने पर एक बार रत्नाकर ने राह चलते महर्षि नारदजी को पकड़ लिया. नारद जी ने कहा कि मैं संन्यासी हूं, मेरे पास कुल मिलाकर एकमात्र पूंजी वीणा है. नारदजी ने कहा, तुम ये भी ले लेना, मगर अपने परिवार से पूछ कर आओ कि जिनके लिए तुम लूटपाट का पाप कर रहे हो, क्या वे तुम्हारे इस पाप के भी भागीदार बनेंगे. वाल्मीकि को लगा कि संन्यासी उन्हें भेजकर खुद भाग जायेगा. नारदजी उनकी मंशा समझ गये. उन्होंने कहा तुम मुझे एक पेड़ से बांध कर जा सकते हो. रत्नाकर ने वैसा ही किया. यह भी पढ़ें : When Is Karwa Chauth Vrat 2022: कब है करवा चौथ? जानें इस व्रत से जुड़ी कथा और महत्त्व

रत्नाकर से वाल्मीकि बनना

घर पहुंचकर जब रत्नाकर ने अपने पिता से यही प्रश्न किया, तो प्रत्योत्तर में पिता ने क्रोधित होकर कहा, लूटपाट तुम करते हो, इसलिए तुम अकेले पाप के भागीदार होगे. पिता की बात सुनकर रत्नाकर काफी निराश एवं दुखी हुए. उन्होंने लौटकर नारद जी को स्वतंत्र कर दिया, नारद जी ने उन्हें पश्चाताप हेतु 'राम' नाम का स्मरण करने को कहा. रत्नाकर वन में जाकर 'राम' नाम का जाप करते हुए कठोर तप में लीन हो गये. कहते हैं कि वर्षों तक तपस्या करने से चींटियों ने उनके शरीर पर घर (बांबी) बना लिया. इसी वजह से उनका नाम रत्नाकर से वाल्मीकि पड़ा.

रामायण लिखने की प्रेरणा

एक बार वाल्मीकि तमसा नदी तट पर स्नान कर रहे थे, उन्होंने क्रौंच पक्षी के जोड़े को प्रेम-क्रीड़ा करते देखा! तभी एक निषाद शिकारी ने नर पक्षी का शिकार कर उसे मार दिया, यह देख माता क्रौंच विलाप करने लगी! यह देख वाल्मीकि ने निषाद को क्रोधित नजरों से देखा, उनके मुख से संस्कृत के ये श्लोक निकल गया.

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम: शाश्वती: समा:। यत् क्रौंचमिथुनादेकमवधी: काममोहितम्॥

अर्थात हे निषाद तूने दो क्रौंच की हत्या कर क्रौंच युगल को अलग कर दिया है. तुझे कभी शांति नहीं मिलेगी.

कहते हैं कि वाल्मीकि के मुंह से यह श्लोक सुनकर भगवान ब्रह्मा प्रकट हुए और उन्होंने वाल्मीकि से कहा कि आप भगवान श्रीराम के चरित्र को अपने श्लोकों द्वारा व्याख्या कर महाकवि कहलाएंगे.

भविष्यदृष्टा की परिणिति थी रामायण

कहते हैं कि वाल्मीकि जी को रामायण की सारी घटनाओं का पहले से ही भान था. उदाहरणस्वरूप रावण की मृत्यु से पूर्व त्रिजटा राक्षसी का स्वप्न में आना, श्रीराम द्वारा सीताजी का परित्याग करने के पश्चात वाल्मिकी के आश्रम में लव एवं कुश का पैदा होना इत्यादि. इसीलिए उन्हें भविष्यदृष्टा भी कहा जाता है. बाद में वाल्मीकि के आश्रम में ही सीता जी को आश्रय मिला, यहीं पर सीताजी ने लव-कुश को जन्म दिया, वाल्मीकि जी की शिक्षा से ही लव कुश परम योद्धा बनें. इस तरह राम कथा से प्रेरित होकर वाल्मीकि ने संस्कृत के 54 हजार श्लोकों से युक्त रामायण की रचना की, और महाकवि के रूप में अमर हो गये. वाल्मीकि जी की कथा से इस बात की प्रेरणा मिलती है कि अगर इंसान ठान ले तो पाप का रास्ता छोड़कर पुण्य के रास्ते पर चलना मुश्किल नहीं है. इसीलिए एक मामूली लुटेरा से वह इतने महान आदिकवि के रूप में स्थापित हो सके.