प्रत्येक वर्ष 14 सितंबर को देश भर में हिंदी दिवस मनाया ( Hindi Diwas) जाता है. इस अवसर पर जगह-जगह हिंदी के चतुर्मुखी विकास एवं प्रसार के लिए वैविध्य कार्यक्रम आयोजित किये जाते हैं, हिंदी भाषा के लिए समर्पित लोगों को पुरस्कृत किया जाता है. स्कूल, कॉलेज, दफ्तरों एवं सार्वजनिक मंचों से हिंदी पर भाषण दिये जाते हैं. ऐसे अवसर पर अगर आपको भी ‘हिंदी दिवस’ पर भाषण देने का अवसर मिलता है तो यह गौरवान्वित करने वाली बात है, लेकिन अगर आपके मन में दुविधा है कि सार्वजनिक मंच से हिंदी भाषा पर क्या स्पीच दिया जा सकता है, कि लोग तालियां बजाकर आपकी प्रशंसा करें, तो आप इस भाषण का सहज प्रयोग कर सकते हैं. यह भी पढ़ें: Hindi Diwas 2022: राष्ट्र संघ में पहली बार गूंजी थी 'जय हिंद जय हिंंदी', विदेशी प्रतिनिधियों ने तालियों से किया स्वागत! जानें कुछ ऐसे ही 10 रोचक तथ्य!
ऐसे शुरू करें
आदरणीय मुख्य अतिथि महोदय, सभी भाइयों, बहनों एवं बच्चों.... सर्वप्रथम हिंदी दिवस पर आप सभी को अनेकानेक शुभकामनाएं, आज आप सभी के समक्ष मुझे मेरी प्रिय भाषा हिंदी पर कुछ शब्द बोलने का अवसर देने के लिए आप सभी का आभार...
हिंदी दुनिया की सबसे प्रिय और सहज बोली जा सकने वाली भाषा है. आज दुनिया भर में छः हजार से ज्यादा भाषाएं हैं, और अनगिनत बोलियां हैं, इसमें हिंदी तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा बताई जाती है. हिंदी भाषा के लिए इससे बड़ा सम्मान और क्या हो सकता है. आज आप दुनिया के किसी भी कोने में जायें, हिंदी बोलने वाले अवश्य मिलेंगे. हिंदी ऐसी भाषा है, जो आसानी से पढ़ी, बोली, समझी और लिखी जा सकती है.
अब हम बात करेंगे अपने देश भारत में इस भाषा की श्रेष्ठता और बहुलता की.
हालिया रिपोर्ट के अनुसार भारत में कुल 1652 मातृभाषाएं प्रचलन में हैं, जबकि संविधान द्वारा 22 भाषाओं को राजभाषा की मान्यता प्राप्त है. यद्यपि संविधान के अनुच्छेद 344 के तहत पहले केवल 15 भाषाओं को राजभाषा की मान्यता प्राप्त थी, लेकिन बाद में क्रमश संविधान में संशोधन कर सिंधी, कोंकणी, मणिपुरी, बोडो, डोगरी, मैथिली और संथाली को भी राजभाषा में शामिल किया गया. यहां हिंदी भाषा की अहमियत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1652 मातृभाषाओं में हिंदी अकेली संपर्क भाषा होती है, जिसे दूसरे शब्दों में अनेकता में एकता पिरोने वाली भाषा कही जा सकती है. हिंदी देश ही नहीं दुनिया की सबसे प्रिय संपर्क भाषा है. इसी वजह से हिंदी को भारत की बिंदी भी कहा जाता है.
आज देश के कोने-कोने हिंदी का प्रयोग किया जा रहा है. आम बोलचाल के साथ छोटे-बड़े कामों, कार्यक्रमों, भाषणों, सरकारी कामकाजों, शिक्षा, मनोरंजन के साधनों यहां तक कि उपदेशों, भजन और कीर्तनों में हिंदी भाषा का प्रमुखता से इस्तेमाल किया जाता है.
मित्रों हम देख रहे हैं कि हमारे देश के शिक्षण संस्थानों में हिंदी का प्रमुखता से प्रयोग किया जा रहा है. पाठ्यक्रमों में हिंदी की अनिवार्यता क्रमशः बढ़ रही है. इस दिशा में हिंदी पत्र एवं पत्रिकाएं, हिंदी न्यूज चैनलों, हिंदी फिल्मों एवं टीवी कार्यक्रम उल्लेखनीय कार्य कर रहे हैं. हिंदी में प्रकाशित एक अखबार ने सर्वे कर साबित किया है कि वह दुनिया की किसी भी भाषा के मुकाबले नंबर वन सर्कुलेशन वाला अखबार है. इस तरह लोकप्रियता और रोजगार की दिशा में भी हिंदी की अहम भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता.
मित्रों... अब बात करेंगे कि तमाम क्षमताओं के बावजूद हिंदी राष्ट्रभाषा क्यों नहीं बन सकी. देश की स्वतंत्रता से पहले यह तय था कि आजादी मिलने के बाद हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा बनेगी, परंतु चूंकि दक्षिण भारतीय राज्यों में लोग हिंदी से अनभिज्ञ थे.
सर्वविदित है कि 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा ने हिंदी को राजभाषा बनाया था. गांधी नेहरू ने भी हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने की मुहिम चलाई थी, लेकिन कुछ हिंदी विरोधी गुट के विरोध करने के बाद हिंदी को राजभाषा तक ही सीमित रखा. चूंकि उस समय पूरी व्यवस्था को अंग्रेजी से हिंदी में नहीं किया जा सकता था, इसलिए 15 वर्ष के लिए अंग्रेजी को भी हिंदी के साथ राजभाषा का दर्जा दे दिया गया, लेकिन 15 साल बाद जब अंग्रेजी की जगह पूरी तरह से हिंदी को अपनाने की बात आई तो तमिलनाडु में इसका जबर्दस्त विरोध हुआ.
कुछ लोगों के द्वारा आत्मदाह की भी खबरेंं चर्चा में रहीं, अंततः फैसला किया गया कि हिंदी के साथ अंग्रेज़ी तब तक राजभाषा के रूप में कार्य करेगी, जब तक गैरहिंदी राज्य भी इसे स्वेच्छा से ना स्वीकार लें. इस तरह भारत की राष्ट्रभाषा पर सवालिया निशान कायम है. लेकिन पिछले कुछ सालों से देश-विदेश में हिंदी के प्रति जो सम्मान मिल रहा है, उसे देखते हुए हम उम्मीद करेंगे कि हमारी प्रिय हिंदी को राष्ट्रभाषा का तमगा भी मिलेगा.
जय हिंद जय हिंदी