सनातन धर्म में षोडशोपचार पूजा का है बहुत महत्व, जानें क्या है इसका विधान
भगवान गणेश (Photo Credits: Pixabay)

सनातन धर्म (Sanatan Dharma) में ‘षोडशोपचार’ (Shodashopchar) का बहुत महत्व है. किसी भी देवी-देवता की पूजा इस विशेष विधि से ही पूरी की जाती है, तभी देवी-देवता भक्त की पूजा को स्वीकारते हैं. षोडशोपचार का आशय वे सोलह तरीके (16 Way of Puja), जिनसे देवी-देवताओं का पूजन किया जाता है. षोडशोपचार पूजन में निम्न सोलह तरीके से विधिपूर्वक पूजन किया जाता है. यहां पंडित रवींद्र पाण्डेय षोडशोपचार पूजा एवं इसके महात्म्य का सिलसिलेवार परिचय करवा रहे हैं. ध्यान रहे यज्ञ अथवा हवन षोडशोपचार के अंतर्गत नहीं आते.

एक- ध्यान अथवा आह्वान कर आमंत्रित करें भगवान को

किसी अनुष्ठान के लिए विशेष देवी-देवता को पूजा हेतु घर पर आमंत्रित करने के लिए मंत्रों के द्वारा उनका ध्यान और आह्वान किया जाता है. आह्वान का आशय है अपने घर पर ईश्वर को आमंत्रित करना. देवी या देवता विशेष को बुलाने के लिए मंत्र शक्ति एवं विधिवत पूजा विधान सम्पन्न किया जाता है. इस आह्वान के पीछे अर्थ यही है कि ईश्वर हमें आत्मिक बल एवं आध्यात्मिक शक्ति का संचार करे, ताकि हम उनका स्वागत और पूरे विधि विधान से पूजा करने के योग्य बन सकें.

दो- आसन

अपने इष्ट देवता से सम्मान के साथ प्रार्थना करें कि वह हमारे द्वारा दिये आसन पर विराजमान हों. पाद्यं एवं अर्घ्य दोनों ही सम्मान के प्रतीक होते हैं. ईश्वर के आगमन पर उनके चरण रज धुलवा कराते हैं फिर आचमन कराकर स्नान करवाते है.

तीन- पाद्यं

अपने आराध्य देवी अथवा देवता के शुद्ध गंगाजल से चरण धुलवा कर उनके पांव छूना. यह भी पढ़ें: पूजा करते समय अगर नहीं रखा इन बातों का ध्यान तो हो सकती है बड़ी समस्या!

चार- अर्घ्य

पाद्य और अर्घ्य दोनों ही सम्मान सूचक होते हैं. ईश्वर के दिव्य दर्शन देने के पश्चात उनके हाथ पैर धुलवा कर आचमन कराते हैं. बाद में ईश्वर को स्नान कराते हैं.

पांच- आचमन

आचमन का आशय है मन, कर्म और वचन से शुद्ध होकर अंजली में जल लेकर पान करना. यह मुख्यतया शुद्धि के लिए किया जाता है.

छह- स्नान

अपने ईष्ट देवता के पूजा के दरम्यान सर्वप्रथम शुद्ध जल से स्नान कराया जाता है. इसे ईश्वर के स्वागत की एक प्रक्रिया मानी जाती है. शुद्ध जल अथवा गंगाजल से स्नान कराने के पश्चात ईश्वर को पंचामृत से स्नान करवाया जाता है, और मंडप पर बिठाने से पूर्व उन्हें शुद्ध जल से स्नान कराया जाता है.

सात- वस्त्र

ईश्वर को स्नान कराने के पश्चात नये वस्त्र चढ़ाए जाते हैं. मन में यही धारणा रहती है कि हम अपने ईष्ट देव को वस्त्र अर्पित कर रहे हैं. लेकिन वस्त्र अर्पण की यह प्रक्रिया केवल देवताओं के लिए की जाती है, देवी के लिए नहीं.

आठ- यज्ञोपवीत

इसका आशय जनेऊ से होता है. जनेऊ भगवान को अर्पित किया जाता है. यह भी देवी के लिए नहीं केवल देवता के लिए अभीष्ठ होता है. जनेऊ हिंदू धर्म की सबसे सम्मानित पहचान होता है.

नौ- गंधाक्षत

गंधाक्षत का आशय है अखण्डित चावल, रोली, अबीर-गुलाल एवं चंदन. इसे देवताओं की पसंद के अनुरूप चढ़ाया जाता है. जैसे शिव जी को चंदन चढाने का विधान है और विष्णु भगवान को रोली अथवा अबीर गुलाल इत्यादि.

दस- पुष्प

देवी देवताओं का पूजन बिना फूल-माला के पूरा नहीं माना जाता है. किस देवी देवता को कौन सा अथवा किस रंग का फूल चढ़ाया जाता है, इसका वर्णन वेदों और पुराणों में भी दिया गया है. उदाहरण के लिए शिव जी को मदार का सफेद फूल तो लक्ष्मी जी को कमल और हनुमान जी को लाल गुलाब का फूल बहुत प्रिय है.

ग्यारह- धूप बत्ती

देवी देवता का पूजन करते समय धूप अथवा अगरबत्ती जलाना अनिवार्य होता है. विशेषकर हर देवी देवता को अगरबत्ती की तुलना में धूप बत्ती जलाना ज्यादा श्रेयस्कर माना गया है.

बारह- दीपक

किसी भी देवी देवता की पूजा अर्चना प्रारंभ करने से पूर्व शुद्ध घी का दीपक जरूर जलाना चाहिए. इसके बाद आरती भी प्रज्ज्वलित घी के दीपक से ही की जाती है. अगर शुद्ध घी उपलब्ध नहीं हो तो शुद्ध तिल के तेल का इस्तेमाल करना चाहिए.

तेरह- प्रसाद (भोग)

ईश्वर को अमूमन मिष्ठान का भोग ही लगाया जाता है. इसमें भी अलग-अलग देवी देवता की विभिन्न पसंद होती है. जैसे गणेश जी और हनुमान जी को बेसन के लड्डू पसंद हैं तो लक्ष्मी जी को खोये की मिठाई का भोग लगाया जाता है. शंकर भगवान को धतूरा एवं खोये की मिठाई का भोग लगाया जाता है. यह भी पढ़ें: Som Pradosh Vrat 2019: सोम-प्रदोष व्रत का महात्म्य और संयोग! कैसे करें पूजा-अर्चना! और असाध्य रोगों व अकाल-मृत्यु से पाएं मुक्ति!

चौदह- तांबुल, दक्षिणा, आरती

तांबुल हरे पान को कहते हैं. फल और मिठाई के पश्चात भगवान को पान अर्पित किया जाता है. पान के पत्ते पर सुपारी, लौंग और इलायची भी रखी जाती है. इसके साथ ही भगवान को मुद्रा अथवा द्रव्य के रूप में सोने. चांदी के सिक्के अथवा रुपये आदि रखे जाते हैं. पूजा के अंत में ईश्वर की आरती उतारने का विधान है. इसके बिना पूजा अधूरी मानी जाती है. ज्यादातर शुद्ध घी अथवा कपूर से प्रज्जवलित आरती की जाती है. आरती के लिए विषम बत्ती यानी एक, तीन, पांच, सात बत्तियों वाला दीप प्रज्जवलित की जाती है.

पंद्रह- मंत्र पुष्पांजली

हाथों में फूल लेकर मंत्रोच्चारण के साथ ही ईश्वर को चढ़ाया जाता है. हाथ में पुष्प लेकर ही पूजा प्रक्रिया पूरी की जाती है. पुष्पांजलि का मूल आशय यही होता है कि प्रभु ये खुशबूदार फूल स्वीकार कीजिये और पुष्पों की ही तरह हमारे जीवन में भी यश की खुशबू चारों ओर फैलाएं. ताकि हमारे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि की वर्षा हो.

सोलह- परिक्रमा एवं विश्राम का अनुग्रह

पूजा की सारी प्रक्रिया पूरी करने के पश्चात अंत में भगवान की परिक्रमा की जाती है. परिक्रमा हमेशा बायें से दांयें दिशा की ओर यानी क्लॉक वाइज करनी चाहिए. परिक्रमा पूरी करने के पश्चात दो मिनट ईश्वर के सामने शांत भाव से खड़े होकर छमा मांगनी चाहिए, कि हे प्रभु, हम अज्ञानी हैं, अगर पूजा-पाठ के विधि-विधान में किसी तरह की कोई त्रुटि हो गयी हो तो छमा करें. सबसे अंत में ईश्वर से प्रार्थना की जाती है कि प्रभु आपका आपकी शैया तैयार है आप कृपा कर विश्राम करें.

नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.