श्रावण का पवित्र महीना और सोमवार को प्रदोष व्रत... इसे कहते हैं सोने पर सुहागा... 29 जुलाई 2019 के दिन यह दिव्य एवं दुर्लभ योग बन रहा है. पंडित रवींद्र पाण्डेय के अनुसार शिव जी के पूजन के लिए इससे बेहतर दिन भला और क्या हो सकता है. कई वर्षों के अंतराल पर ऐसा संयोग निर्मित होता है. कहा जाता है कि इस दिन प्रदोष के व्रत के साथ पूरी विधि विधान से भगवान शिव का पूजन-अनुष्ठान करने से शिव जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है. इस व्रत को पूरी निष्ठा एवं विधान से करने वालों की अकाल मृत्यु नहीं होती. उसका परिवार असाध्य रोगों से मुक्ति पाता है और संपूर्ण जीवन सुख, शांति एवं समृद्धि पूर्वक जीता है, क्योंकि उस पर शिव जी की विशेष कृपा बरसती है.
इस वर्ष यानी 2019 का श्रावण मास कुछ विशेष संयोग लेकर आ रहा है. इस वर्ष के श्रावण मास का कृष्णपक्ष और शुक्लपक्ष दोनों बार के प्रदोष व्रत सोमवार के दिन पड़ रहे हैं. इसलिए दोनों ही पखवारों में सोम-प्रदोष का शुभ योग बन रहा है. पहला यानी श्रावण के कृष्णपक्ष का प्रदोष 29 जुलाई (सोमवार) और दूसरा यानी शुक्लपक्ष का प्रदोष 12 अगस्त (सोमवार) को पड़ेगा.
कैसे करें सावन के प्रदोष की पूजा-अर्चना
प्रदोष का व्रत रखने के लिए त्रयोदशी के दिन सुबह सवेरे उठें और स्नान ध्यान कर स्वच्छ श्वेत वस्त्र पहन कर भगवान शिव के व्रत का संकल्प लें. पूरे दिन निराहार रहते हुए शिव जी का ध्यान करें. जिस स्थान पर शिव जी का पूजा करना चाहते हैं, उस जगह को अच्छी तरह साफ कर गोबर से लीप कर वहां छोटी सी चौकी (मंडप) बिछाएं. मंडप पर नया श्वेत वस्त्र बिछाकर गणेश जी और शिव जी की फोटो अथवा मूर्ति स्थापित करें. मंडप के सामने रंगोली सजाएं और स्वच्छ आसन बिछाकर उत्तर पूर्व की ओर मुंह करके बैठे. अब परंपरागत तरीके से सर्वप्रथम देवों के देव गणेश जी की पूजा अर्चना करें. इसके पश्चात शिव जी की पूजा पंचोपचार अथवा षोडशोपचार विधि से करें. शिव जी को पंचामृत अथवा गंगाजल से स्नान करवाकर शिव महिम्नस्तोत्र अथवा रुद्र पाठ करें. शिवजी पर बेल-पत्र, आक के फूल, धतूरा आदि चढ़ाएं. इसके पश्चात खोए की मिठाई का भोग लगाकर उसी प्रसाद का वितरण करें. ध्यान रहे प्रदोष व्रत एवं पूजन करने से भक्त की आयु बढ़ती है और वह जीवन पर निरोग रहता है. जो व्यक्ति पूरे वर्ष हर प्रदोष का व्रत रखता है, उसे कभी भी धन संबंधी समस्या नहीं सताती. वह अकाल मृत्यु के प्रकोप से बचता है और उसका गृहस्थ जीवन सुख एवं समृद्धि से भरपूर रहता है. अगर कोई युवा यह व्रत रखता है तो उसे शिवजी की विशेष कृपा से अच्छा जीवन साथी प्राप्त होता है.
प्रदोष व्रत की पारंपरिक कथा
प्राचीनकाल में एक विधवा ब्राह्मणी रहती थी. उसके परिवार में कमाई का कोई साधन नहीं था. वह प्रत्येक दिन प्रातःकाल अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी. जिस दिन अच्छी भिक्षा मिलती दोनों मां-बेटे पेट की भूख की ज्वाला शांत करते थे, नहीं तो शांति से खाली पेट सो जाते थे. एक दिन ब्राह्मणी बेटे के साथ घर लौट रही थी, तभी उसे राह में घायल अवस्था में एक युवक मिला. वृद्धा को उस युवक पर दया आ गई. वह उसे अपने घर ले लाई. दरअसल वह विदर्भ देश का राजकुमार था. उसके पिता को शत्रु राजा के सैनिकों ने गिरफ्तार कर बंदी बना लिया था. वह स्वयं को सुरक्षित रखते हुए अपने दुश्मन राजा पर आक्रमण कर अपने पिता को छुड़ाना चाहता था. कोई और सुरक्षित जगह नहीं होने के कारण राजकुमार उस वृद्धा के साथ ही रहने लगा. एक दिन एक गंधर्व कन्या अंशुमति ने राजकुमार को देखा तो उस पर मोहित हो गई. अगले दिन अंशुमति राजकुमार को दिखाने के लिए अपने माता-पिता को लेकर वृद्धा के ठिकाने पर आई. माता पिता को राजकुमार भा तो गया, मगर भिखारी के घर में अपनी बेटी को भेजने का साहस नहीं जुटा पा रहे थे. एक दिन भगवान शिव ने अंशुमति के माता-पिता को सपने में आदेश दिया कि अंशुमति का विवाह यथाशीघ्र उसी राजकुमार से कर दिया जाए, जिसे वह पसंद करती है. अंशुमति के माता-पिता ने शिव जी के आदेश का मान रखते हुए दोनों का विवाह कर दिया. विधवा ब्राह्मणी बिना नागा प्रदोष का व्रत करती थी. उसके व्रत के प्रभाव से राजकुमार ने अपनी सेना तैयार कर शत्रु सेना पर आक्रमण कर दिया. इस युद्ध में उसे विजय मिली और वह विदर्भ देश का राजा बन गया. राजकुमार ने ब्राह्मण पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया. विधवा ब्राह्मणी के प्रदोष के व्रत की महिमा देखिए, कैसे एक भिखारी के बेटे को राजमहल का सुख भोगने का अवसर मिला. कहा जाता है की प्रदोष का नियमित व्रत रखने वालों का भगवान शिव इसी तरह से कल्याण करते हैं.
नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.