मान्यता है कि हनुमान जी को जल्दी प्रसन्न करना है तो घर में सुंदरकांड का एक पाठ कर लीजिये. आपकी सारी समस्याओं का समाधान खुद ब खुद हो जायेगा. इतनी महिमा और महात्म्य है सुंदरकाँड का सुंदरकांड वस्तुतः तुलसीदास जी लिखित श्रीरामचरितमानस के सात काण्डों में एक काण्ड है. लेकिन सात काण्डों में सुंदरकाण्ड का महात्म्य सबसे ज्यादा माना जाता है. वास्तुशास्त्रियों का कहना है कि किसी का कोई काम लंबे समय से रुका हुआ है, आत्मविश्वास में एकाग्रता के अभाव में बनता काम बिगड़ रहा है, आपका विकास रुका हुआ है, परीक्षा में नंबर अच्छे नहीं आ रहे हैं तो सुंदरकाण्ड का वाचन करने से सारी समस्याओं से मुक्ति मिलती है. आइये जानें आखिर सुंदरकाण्ड का महात्म्य इतना क्यों है...
तुलसीदास कृत श्रीरामचरितमानस के सभी कांड भगवान की भक्ति के लिए सर्वोत्तम हैं. लेकिन आचार्य श्रीराम भद्राचार्य जी जैसे नामचीन संतों का मानना है कि किसी भी समस्या से उबरने के लिए सुंदरकांड का पाठ किसी अमोघ शक्ति से कम नहीं होता. यद्यपि संपूर्ण श्रीराम चरितमानस प्रभु श्रीराम के महात्म्य एवं उनके पुरुषार्थों से भरे हैं. सुंदरकांड इन शेष काण्डों से इस मायने में अलग और विशेष है क्योंकि इस काण्ड में महाकवि ने भक्ति भाव की विजय का मूल्यांकन किया है, वह अनमोल और अद्वितिय है.
महान संत समाजों के साथ-साथ मनोचिकित्सक भी सुंदरकाण्ड को आत्मविश्वास और इच्छाशक्ति बढ़ाने वाला खंड मानते हैं. ऐसे ही एक विद्वान मनोचिकित्सक श्री बकुल पटेल का कहना है कि हनुमान जी सशरीर एक वानर थे, लेकिन अपने प्रभु श्रीराम के आदेश पर वह न केवल विशाल समुंद्र को लांघ कर लंका पहुंचे, बल्कि रावण के तमाम खुफिया तंत्रों को छिन्न-भिन्न करते हुए माता सीता को तलाशा और उन तक प्रभु श्रीराम का संदेश पहुंचाया, साथ ही रावण के गुरुर को चूर-चूर करते हुए वह उसकी सोने की लंका को जलाकर राख कर सुरक्षित वापस श्रीराम के पास सुरक्षित आ गये. यह सारा कार्य उन्होंने अकेले दम पर पूरे भक्तिभाव के साथ सम्पन्न किया. एक व्यक्ति की ईच्छा शक्ति का इससे बड़ा उदाहरण भला कहां मिलेगा. गोस्वामी तुलसी दास जी ने इस भक्ति भाव को इतनी पवित्रता के साथ लेखिनीबद्ध किया है कि बार-बार सुंदरकाण्ड पढ़ने का दिल करता है. इसमें जीवन में सफलता के महत्वपूर्ण सूत्र होने का संदेश भी मिलता है. इसलिए पूरी रामचरित मानस में सुंदरकांड को सबसे श्रेष्ठ माना जाता है, यह व्यक्ति के भीतर के आत्मविश्वास को जागृत करता है. किसी भी कार्य की सिद्धी के लिए अधिसंख्य लोग सुंदरकाण्ड के पाठ को प्राथमिकता देते हैं. आखिर क्यों है सुंदरकांड का इतना महात्म्य!
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जब बजरंगबली ने सुंदरकाण्ड को जलाने की कोशिश की
कहा जाता है कि जिन दिनों तुलसीदासजी श्रीरामचरित मानस लिख रहे थे. प्रभु श्रीराम ने हनुमान जी के भक्तिभाव की परीक्षा लेने की ठानी. उन्होंने सोचा हनुमानजी के माहात्म्य को संसार से परिचित कराने का इससे बेहतर अवसर कहां मिलेगा! उन्होंने अपनी लीला रच दी.
सुन्दरकाण्ड को लिखते-लिखते तुलसीदास जी ने हनुमानजी को श्रीराम के समान महान लिखते चले गये. कहा जाता है कि तुलसी दास रामकथा का जो भी अंश लिख रहे थे, हनुमान जी को पढ़ने के लिए देते जा रहे थे. हनुमान जी प्रभु श्रीराम की महानता पढ़कर गदगद हो जाते थे. लेकिन जब तुलसीदास जी ने उन्हें सुंदरकांड के अंश देना शुरू किया तो सुंदरकांड पढ़कर हनुमान जी तुलसीदास पर क्रोधित हो उठे. वह एक भक्त को स्वामी के सामान महाप्रतापी कैसे लिख सकते थे? कहते हैं कि हनुमान जी ने तुरंत सुंदरकाण्ड की उस प्रति को फाड़ने की कोशिश की. इस पर श्रीराम साक्षात प्रकट होते हुए हनुमान जी से कहा कि सुंदरकाण्ड का यह अध्याय किसी और ने नहीं खुद श्रीराम ने लिखवाया है. क्या मैं कुछ गलत लिख सकता हूं? प्रभु श्रीराम की बात सुनकर हनुमान जी झेंप गये. क्योंकि प्रभु श्रीराम की कोई भी बात काटने का साहस उनमें नहीं था. उन्होंने श्रीराम को प्रणाम करते हुए कहा, हे प्रभु मुझमें इतनी सामर्थ्य कहां कि आपकी बात को गलत साबित कर सकूं. मेरे लिए इससे बड़ा पाप और क्या होगा. मेरे लिए पूरी उम्र यह सुंदरकांड सबसे प्रिय रहेगा.
इसलिए सुंदरकांड के पाठ का इतना ज्यादा माहात्म्य है. जो भी व्यक्ति सुन्दरकाण्ड का पाठ करता है, हनुमान जी उसके हर कष्ट को दूर करने का यत्न करते हैं. विद्वानों का कहना है कि अगर प्रत्येक दिन संभव नहीं है तो प्रत्येक मंगलवार को इसका पाठ अवश्य करना चाहिए. इससे घर में सुख शांति और समृद्धि के साथ-साथ सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है. मनुष्य चौतरफा विकास करता है.
नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.