रक्षासूत्र में होती है गजब की आध्यात्मिक शक्ति, जानें कलाई पर मौली बांधने से जुड़े खास नियम
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: Facebook)

हिंदु धर्म (Hindu Religion) में किसी भी तरह का कोई मांगलिक कार्य हो, पूजा पाठ अथवा धार्मिक अनुष्ठान आदि हो तो हम पारंपरिक रूप से अपने पुरोहित जी से अपनी कलाई में रक्षासूत्र यानी कलाई नारा (Rakshasutra) बंधवाते हैं, लेकिन क्या हमने आपने कभी यह जानने की कोशिश की कि पतले सूतों से बना यह कलाई नारा (Mauli) अथवा रक्षा सूत्र हमारी रक्षा कैसे करते हैं अथवा इसके बांधने की मुख्य वजह क्या हो सकती है. आइये आज इस विषय पर बात करते हैं.

दरअसल कलाई नारा बंधवाना हमारी वैदिक परंपरा का एक अंश है. कथा के पश्चात होने वाले हवनों के पश्चात अथवा यज्ञादि के पश्चात पुरोहित मंत्रोचारण के साथ हमारी कलाई में लाल-पीले रंग के सूतों से बना कलाई नारा बांधते हैं. मान्यता है कि कलाई नारा बांधने से हमें 27 देवों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस तरह का कलाईनारा अथवा रक्षा सूत्र बंधवाने से पूर्व सर पर साफ कपड़ा अथवा रुमाल बांधने का भी विधान है. कहा जाता है कि रक्षा बंधन जैसा पर्व इसी परंपरा की एक कड़ी है, जो लंबे अर्से पश्चात चर्चा में आयी

रक्षा सूत्र अथवा कलाई नारा का महात्म्य

हिंदू शास्त्रों में उल्लेखित है कि रक्षा सूत्र बांधने से त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश के साथ तीनों देवियों लक्ष्मी, पार्वती और सरस्वती प्रसन्न होकर आशीर्वाद देती हैं. इसके पीछे एक कथा यह भी है कि राक्षस राजा बलि की दानवीरता से प्रभावित होकर भगवान वामन ने उनकी कलाई पर रक्षा-सूत्र बांधा था. इसे रक्षाबंधन का भी प्रतीक माना जाता है.

किंवंदति है कि देवी लक्ष्मी ने राजा बलि के हाथों में अपने पति की रक्षा के लिए ये रक्षा सूत बांधा था. यूं तो ये रक्षा सूत्र कलाई में बांधा जाता है, लेकिन अक्सर मंदिरों अथवा अन्य देव स्थलों पर भी मन्नत के रूप में ये रक्षा सूत्र बांधे जाते हैं और जब मन्नत पूरी हो जाती है तो इसे खोल दिया जाता है. कभी-कभी ये रक्षा सूत्र घर में खरीदकर लाई नयी वस्तुओं पर भी बांधा जाता है तो कभी पालतु पशुओं की सुरक्षा के लिए उनके पैरों अथवा गले में बांधा जाता है.

कैसे बनता है रक्षा सूत्र

कलाई नारा अथवा रक्षा सूत्र कच्चे एवं पतले सूत का बना होता है. सूत पर लाल, पीला और हरा रंग लगाते हैं. कुछ विशेष प्रयोजनों के लिए इन रक्षा सूत्रों में नीली और सफेद रंग भी मिला दिया जाता है, दोनों ही रक्षा सूत्रों को ईश्वर से जोड़ते हुए पुरोहितों का मानना है कि ये क्रमशः त्रिदेव और पंचदेव को आकर्षित करते हैं.

रक्षा सूत्र बांधने के भी होते हैं नियम

सर्वप्रथम तो रक्षा सूत्र बांधने का लाभ तभी मिलता है जब इसे बांधने के साथ ही पुरोहित मंत्रोच्चारण करें. पुरुषों और अविवाहित कन्याओं की दाईं कलाई में रक्षा सूत्र बांधा जाता है और विवाहित महिलाओं के बाईं कलाई में रक्षा सूत्र बांधने का विधान है. इस बात का भी ध्यान रखें कि जब आप कलाई में रक्षा सूत्र बंधवा रहे हैं तो उस हाथ की मुट्ठी बंद करके रखनी चाहिए एवं दूसरा हाथ सर पर रखना चाहिए. रक्षा सूत्र कहीं पर भी बांधी जाये मगर इसे तीन बार से ज्यादा नहीं लपेटना चाहिए. यह भी पढ़ें: ब्राह्मण और गुरुजन क्यों रखते हैं अपने सिर पर शिखा, जानिए इसके 10 कारण

  • शनि की कृपा के लिए नीले रंग का सूती धागा बांधना चाहिए.
  • बुध के लिए हरे रंग का सॉफ्ट धागा बांधना चाहिए.
  • गुरु और विष्णु के लिए हाथ में पीले रंग का रेशमी धागा बांधना चाहिए.
  • शुक्र या लक्ष्मी की कृपा के लिए सफेद रेशमी धागा बांधना चाहिए.
  • चंद्र और शिव को प्रसन्न करने के लिए शिव की कृपा या चंद्र के अच्छे प्रभाव के लिए सफेद धागा बांधना चाहिए.
  • राहु-केतु और भैरव को प्रसन्न रखने और उनका आशीर्वाद पाने के लिए काले रंग का धागा भी बांधा जाता है.
  • हनुमान जी अथवा मंगल ग्रह की कृपा के लिए लाल रंग का धागा हाथ में बांधना चाहिए.

रक्षा सूत्र को ही मौली भी कहते हैं

रक्षा सूत्र अथवा कलाई नारा को ही मौली शब्द से भी पुकारा जाता है. इसका वैदिक नाम मणिबंद होता है. भगवान शिव के सिर पर जो चंद्रमा शिव के भव्य एवं दिव्य रूप में अहम भूमिका निभाते हैं, उसे चंद्रमौली कहा जाता है.

नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.