प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: Pixabay)
Sleep Divorce: अगर आप अपने पार्टनर के खर्राटों (Snoring) या उनके सोने की अजीब आदतों (Strange Sleeping Habits) से परेशान हैं तो आप उनसे 'स्लीप डिवोर्स' (Sleep Divorce) ले सकते हैं. अगर आप सोच रहे हैं कि स्लीप डिवोर्स लेकर आपको अपने पार्टनर से अलग हो ना पड़ेगा तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं है, क्योंकि ये तलाक रिश्तों को तोड़ता नहीं, बल्कि मजबूत बनाता है. नेहा नाम की महिला ने बताया कि उनकी शादीशुदा जिंदगी पटरी पर चल रही है. कोई कलह नहीं, कोई लड़ाई नहीं, फिर भी नेहा रात में अपने पति के साथ न सोकर अलग कमरे में सोती हैं. एक दिन नेहा के घर आई एक सहेली हैरान रह गई और उसने इसका कारण पूछा, क्योंकि उसे लगा कि शायद उसका पति से झगड़ा हो गया है, लेकिन नेहा ने हंसते हुए बताया कि हमारे बीच कोई झगड़ा नहीं हुआ है, हमने सिर्फ 'स्लीप डिवोर्स' लिया है.' नेहा की दोस्त ये शब्द पहली बार सुन रही थी. क्या है स्लीप डिवोर्स आइए जानते हैं?
क्या है स्लीप डिवोर्स?
तलाक शब्द सुनते ही हमारे दिमाग में दो लोगों के बीच अलगाव की तस्वीर उभरती है, लेकिन 'स्लीप डिवोर्स' जैसी कोई चीज नहीं होती. अलग सोने का सीधा सा मतलब है कि आपकी नींद की जरुरतें आपके साथी की जरुरतों से मेल नहीं खातीं. रिश्तों में इसमें कुछ भी अजीब नहीं है और यह सामान्य है. नेहा अपने पति से अलग कमरे में सिर्फ इसलिए सोती हैं, ताकि वह रात को चैन से सो सकें. पति से दूर अलग बिस्तर या अलग कमरे में सोने की इस अवधारणा को 'स्लीप डिवोर्स' कहा जाता है.
भोपाल के रहने वाले सुमित एक आईटी प्रोफेशनल हैं. पत्नी के लगातार खर्राटे लेने के कारण वह रात को सो नहीं पाते थे, जिससे उसकी तबीयत बिगड़ती जा रही थी. इस संबंध में उन्होंने एक मनोचिकित्सक से संपर्क किया और उनसे रात को चैन की नींद सोने के लिए दवा देने का अनुरोध किया, लेकिन मनोचिकित्सक ने उन्हें स्लीप डिवोर्स लेने की सलाह दी. सुमित ने पत्नी से बात की और अलग कमरे में सोने लगे. आज उन्होंने इस समस्या पर काबू पा लिया है.
यह कहना मुश्किल है कि स्लीप डिवोर्स शब्द का प्रयोग पहली बार कब किया गया था, लेकिन यह शब्द 2013 से अखबारों और पत्रिकाओं में पढ़ा जा रहा है. अच्छी नींद और स्वास्थ्य से जुड़े कई हालिया शोधों में भी यह शब्द तेजी से उभरा है. कई विशेषज्ञ अच्छे स्वास्थ्य को अच्छी नींद से जोड़ते हैं. उनका मानना है कि स्लीप डिवोर्स से न सिर्फ रिश्ते मजबूत होते हैं बल्कि सेहत भी बेहतर होती है.
अलग सोने की जरूरत क्यों?
रिलेशनशिप एक्सपर्ट्स अब तक यही मानते आए हैं कि साथ सोने से पति-पत्नी की शादी मजबूत होती है तो फिर अलग-अलग सोने की क्या जरूरत है? दरअसल, जीवनसाथी के साथ सामान्य संबंध होने के बावजूद कभी-कभी अलग बिस्तर पर सोना आरामदायक होता है. पूरे दिन के काम की थकान बिस्तर पर उतर आती है. इस समय हम शांति चाहते हैं. हम अपनी पसंदीदा मुद्रा में सोना चाहते हैं, जैसे पैरों को मोड़कर, फैलाकर, करवट बदलकर और बिस्तर पर फैलकर, लेकिन इससे पार्टनर को परेशानी हो सकती है, जिसके कारण हम ठीक से सो नहीं पाते हैं. इसके कारण या तो आपको नींद नहीं आती या फिर आप गहरी नींद नहीं ले पाते. इससे स्वास्थ्य और मानसिक परेशानियां होती हैं, इसलिए अलग सोने की जरूरत महसूस हो सकती है.
महिलाएं कम क्यों सोती हैं?
आज के समय में घर और बाहर दोनों की जिम्मेदारी महिला के कंधों पर आ गई है. वह सुबह जल्दी उठकर घर का काम निपटाती हैं. बच्चों को स्कूल के लिए तैयार करना, पति के लिए दोपहर का खाना बनाना और अपने ऑफिस के लिए तैयार होना आमतौर पर उसके काम का हिस्सा माना जाता है. फिर ऑफिस से लौटने के बाद भी वह देर रात तक काम में व्यस्त रहती हैं. इसका नतीजा यह होता है कि वह कम घंटे सो पाती हैं. वहीं, पार्टनर के अपनी पसंद के मुताबिक सोने, बिस्तर पर सोते समय खर्राटे लेने या हाथ-पैर हिलाने से उसकी नींद में खलल पड़ता है, जिसके कारण वह अच्छी नींद नहीं ले पाती है.
यह अवधारणा है पुरानी
स्लीप डिवोर्स शब्द हमारे लिए नया हो सकता है, लेकिन अलग सोने की अवधारणा हमारे लिए नई नहीं है. हालांकि, संयुक्त परिवारों में एक निश्चित उम्र के बाद पति-पत्नी का बिस्तर एक ही कमरे में होते हुए भी अलग-अलग लगा हुआ देखा जाता है, जिसके अलग-अलग कारण हो सकते हैं. साथ ही पुराने समय में हमारी सामाजिक व्यवस्था में घर के पुरुषों, खासकर बुजुर्गों का बिस्तर बाहर और महिलाओं और बच्चों का बिस्तर अंदर के आंगन या कमरे में लगाया जाता था. यह व्यवस्था आज भी गांवों में देखी जा सकती है. शहरों में भी कई कामकाजी जोड़े अलग-अलग सोना पसंद करते हैं, ताकि वे शांति से सो सकें. कई बार छोटा घर और बच्चों का होना भी इसका कारण होता है.
पूरी नींद लेना है जरूरी
अधूरी नींद पूरा दिन खराब कर सकती है. अधूरी नींद का मतलब है- दिन भर थकान और चिड़चिड़ापन रहना, काम पर ध्यान न लगा पाना, काम को अनिच्छा से पूरा करना, गलतियों की संभावना बढ़ना और काम पूरा करने में ज्यादा समय लगना. इस प्रकार हमारी कार्यक्षमता कम हो जाती है. थकान और आलस्य के कारण काम समय पर पूरा नहीं हो पाता. वहीं, रात की पूरी नींद हमें पूरे दिन तरोताजा रखती है, हमारी कार्यक्षमता बढ़ाती है, याददाश्त बेहतर करती है, ध्यान केंद्रित करने में मदद करती है और अवसाद से भी दूर रखती है. डॉक्टर हमेशा से कहते आए हैं कि अच्छी सेहत के लिए अच्छी नींद बेहद जरूरी है.