जीजामाता एक वीरांगना, एक जुझारू मां.. एक महान शक्ति... जीजामाता उस समय गर्भ से थीं, लेकिन इस बात की चिंता किये बिना, वह सरपट घोड़ा दौड़ाती शिवनेरी दुर्ग पहुंची, क्योंकि उन्हें किसी भी कीमत पर स्वराज्य स्थापना के मंच तक पहुंचकर एक नये युग को जन्म देना था. यह वह समय था, जब मुगल बादशाह छल-बल से अपनी बादशाहियत को विस्तार देने के लिए चप्पे-चप्पे की जमीन पर कब्जा कर रहे थे, निर्दोष सैनिकों को रक्तरंजित कर रहे थे, जीजामाता शिवनेरी किले पर पहुंच कर कुछ पल आराम करने के बाद उन्होंने एक दिव्य शक्ति पुंज के रूप में शिशु को जन्म दिया. जीजामाता ने पुत्र को माँ भवानी का उपहार बताया, उसका नाम शिवाराव रखा. नाम ही नहीं रखा, बल्कि उसी अनुरूप गढ़ा भी. आइये जानते हैं, शक्ति का प्रतीक जिजाऊ माता के व्यक्तित्व के पीछे छिपी अदम्य, साहसी और वीरांगना स्वरूप के बारे में...
खेलने कूदने की उम्र में ही शिवाजी को योद्धा बनाने का जुनून
जीजामाता ने इस बात को प्रमाणित किया है कि वह माँ के अलावा एक शक्ति, एक गुरु भी हैं. उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी विजय प्राप्त कर शिवाजी को बहादुरी का प्रतीक बनाया, उन्होंने स्वराज का सृजन किया. उन्होंने शिवाजी में ही नहीं बल्कि तमाम शिवरायों (अपनी सेना) में भी स्वराज का बीज बोया. शिवाजी के मन में हिंदू स्वराज्य की अवधारणा को साकार करने के लिए राजस और सत्वगुण का ज्ञान, सरल, साहसी, स्त्री सम्मान का भाव, संगठन, कूटनीति, सेना प्रबंधन, युद्ध कौशल सब कुछ जागृत किया. जिस उम्र में बच्चे खेलते-कूदते हैं, शोर मचाते हैं, जीजामाता शिवाजी को तलवार के मूठ पकड़ने, दुश्मन पर वार करने और आत्मरक्षार्थ के दांव पेंच बतातीं थीं. शिवाजी को शूरवीरों की कहानियां सुनाकर उत्साहित करतीं. यह भी पढ़ें : Swami Vivekananda Jayanti 2024 Quotes: स्वामी विवेकानंद जयंती पर करें उन्हें याद, उनके इन 10 प्रेरणादायी विचारों से लाएं अपने जीवन में बदलाव
क्या चाहती थीं जीजामाता शिवाजी से?
यह वह समय था, जब मुगलों का अत्याचार चरम पर था, लड़कियों की सरेआम नीलामी हो रही थी, जबरन धर्म परिवर्तन कराया जा रहा था, इंकार करने वालों का सर कलम कर दिया जाता था. किसानों की स्थिति और भी जटिल थी. आजादी क्या होती है, आम समाज भूल चुका था. जीजामाता मुगलों के समक्ष खुद को गौण महसूस करती थीं, वह समाज की इस दयनीय स्थिति को बर्दाश्त नहीं कर पा रही थीं. इन्हीं दुर्व्यवस्थाओं को समाप्त करने के लिए ही जीजामाता शिवाजी में एक योद्धा को पैदा कर रही थीं, वह शिवाजी में एक शेर को महसूस कर रही थीं. यही वजह थी, कि शिवाजी ने जब उन्हें सती होने से रोका, तब उन्होंने परंपरा का त्याग कर पुत्र को एक कठिन लक्ष्य तय करने योग्य बनाया. वह लक्ष्य था स्वराज्य स्थापना के स्वप्न को साकार करने का.
इस समाज में कितनी माताएं हैं, जो बच्चे को जन्म से पहले ही उसके जीवन के लक्ष्य तय कर देती हैं. लेकिन जीजामाता ने वह त्याग, वह चमत्कार कर दिखाया. उन्होंने शिवाजी को शेर से भी ज्यादा शक्तिशाली बनाया, एक ऐसा अदम्य योद्धा, जो मुगल सेना से सैकड़ों युद्ध करने के बाद भी कभी हार के नहीं लौटा. उन्हें छत्रपति बनाने के बाद ही जीजामाता ने 17 जून 1674 को देह त्याग दिया.