दस दिवसीय ओणम हरे-भरे केरल राज्य का बेहद महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है. इसे ‘थु ओणम’ या ‘थिरुवोनम’ के नाम से भी जाना जाता है. चिंगम के मलयाली माह के दरम्यान मनाया जाने वाला वास्तव में फसलों से जुड़ा पर्व है, जिसे महान राजा महाबली द्वारा भगवान विष्णु को घर पर आमंत्रित करने की खुशी में मनाया जाता है. इस वर्ष 30 अगस्त 2022 को शुरू हुआ ओणम 8 सितंबर, 2022 गुरुवार को खत्म होगा. इसे केरल के सबसे बड़े एवं वार्षिक पर्व के रूप में माना जाता है. इस पर्व में केरल की मलयाली संस्कृति एवं परंपरा स्पष्ट दिखती है. यह पर्व हर केरल वासी बड़ी धूमधाम के साथ मनाते हैं. 10 दिवसीय यह उत्सव 10 दिनों तक क्रमशः अथम, चिथिरा, विशाकम, अनिजम, थ्रीकेट्टा, मूलम, पूरदम, उथराडोम एवं थिरुवोणम के रूप में मनाया जाता है. अंतिम दिन यानी 8 सितंबर 2022 का दिन बहुत पवित्र दिन माना जाता है. आइये जानें ओणम के बारे में विस्तार से...
जानें ओणम का शुभ मुहूर्त एवं विशेष योग
भाद्रपद द्वाद्वसी प्रारंभः 04.05 PM (07 सितंबर, 2022, बुधवार)
भाद्रपद द्वाद्वसी समाप्तः 01.40 PM (08 सितंबर, 2022, गुरूवार)
चूंकि ओणम का पर्व थिरुओणम नक्षत्र में मनाते हैं, इसलिए इस वर्ष यह पर्व 8 सितंबर 2022 को मनाया जायेगा.
इस दिन सुकर्मा व रवि जैसे बेहद शुभकारी योग का निर्माण हो रहा है. ज्योतिषियों का मानना है कि इस काल में विधि-विधान से पूजा-अर्चना करने से जातक की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
ऐसे करते हैं ओणम का सेलिब्रेशन!
केरल का प्रमुख त्योहार होने के कारण इसे भव्य तरीके से मनाया जाता है. दस दिवसीय पर्व के अंतिम दिन यानी भाद्रपद की द्वाद्वसी को प्रातःकाल स्नान-ध्यान के पश्चात पूरे घर की सफाई की जाती है. मुख्यद्वार पर फूलों की रंगोली सजाई जाती है. लोग अपने घरों को फूलों एवं विद्युत की लड़ियों से सजाते हैं. महिलाएं कसुवा साड़ी पहनती हैं. घरों में पचड़ी, रसम, पुलीसेरी, एरीसेरी, खीर और अवियल सहित करीब 18 किस्म के पकवान बनते हैं. संध्याकाल में मेहमानों को ये व्यंजन परोसे जाते हैं. इस दिन जगह-जगह नौका रेस, भैंस और बैलों की दौड़ आदि के आयोजन भी होते हैं. लोग अपने मित्रों एवं नाते-रिश्तेदारों को मिठाइयों के साथ शुभकामनाएं देते हैं. यह भी पढ़ें : Teachers' Day 2022 Quotes: शिक्षक दिवस पर करें डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन को याद, प्रियजनों को भेजें उनके ये 10 प्रेरणादायी विचार
ओणम की कथा
प्राचीनकाल में राजा महाबलि का केरल पर राज्य था, उन्होंने अपने जप-तप से तीनों लोकों पर कब्जा कर लिया था. तब इंद्र सभी देवताओं के साथ विष्णुजी की शरण में पहुंचे. त्रिकालदर्शी भगवान विष्णु उन्हें निश्चिंत कर वापस भेज दिया. भाद्रपद शुक्लपक्ष की द्वाद्वसी के दिन उन्होंने वामन रूप में पृथ्वी पर अवतार लिया. वे महाबलि के पास पहुंचे. महाबलि ने उनका आदर-सत्कार के बाद पूछा, आपको क्या चाहिए. वामन ने कहा, मुझे तीन टुकड़ा भूमि चाहिए. महाबलि की स्वीकृति पाकर वामन ने पहले कदम में आकाश, दूसरे में पृथ्वी को नापने के बाद तीसरा कदम उठाया तो महाबलि ने अपना सर आगे कर दिया. महाबलि की दानवीरता से प्रसन्न होकर विष्णुजी ने उनसे वरदान मांगने को कहा. महाबलि ने कहा, आप भाद्रपद शुक्लपक्ष की द्वाद्वसी के दिन यहां आकर हमारी जनता से मिलें. कहते हैं कि तभी से ओणम के दिन विष्णुजी पृथ्वी पर उपस्थित होते हैं.