10 दिवसीय ओणम (थिरुवोणम) का पर्व आगामी 31 अगस्त 2023 को सम्पन्न हो जाएगा. दक्षिण भारत में ओणम का त्यौहार बड़ी उत्साह एवं उमंग के साथ मनाया जाता है. ओणम वस्तुतः नववर्ष का भी प्रतीक है, जिसे कोल्ला वर्षम कहते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार ओणम का पर्व राजा महाबली उर्फ मावेली की राज्य में वापसी के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. केरल में प्रत्येक वर्ष मनाया जाने वाला यह पर्व वस्तुतः फसलों का पर्व भी कहा जाता है. आइये जानते हैं, इस पर्व के इतिहास, महत्व, मूल तिथि एवं अनुष्ठान के बारे में विस्तार से..
ओणम की मूल तिथि एवं समय
दस दिवसीय ओणम का यह पर्व गत 20 अगस्त 2023 से शुरू हुआ था. इस उत्सव के अंतिम दिन को थिरुवोणम कहा जाता है. द्रिक पंचांग के अनुसार जानें इसकी तिथि एवं पूजा का मुहूर्त
थिरुवोणम नक्षत्रम् प्रारंभ: 02.43 AM (29 अगस्त 2023)
थिरुवोणम नक्षत्रम् समाप्ति: 11.50 PM (29 अगस्त 2023)
क्या है ओणम का इतिहास
पुराणों के अनुसार ओणम पर्व दैत्यराज महाबली की वापसी के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. महाबली ने अपने पराक्रम से तीनों लोकों (स्वर्ग, पृथ्वी एवं पाताल) पर अधिकार कर लिया था. महाबली के दयालु, प्रेम एवं सद्भावना के कारण आम जनता के बीच वह बहुत लोकप्रिय था. स्वर्गलोक छिनने से परेशान सभी देवताओं ने विष्णुजी से मदद मांगी. विष्णुजी ने वामन रूप में महाबली के पास पहुंचे. वामन की इच्छा पर महाबली ने उन्हें तीन पग भूमि लेने का आदेश दिया. वामन अपने विशाल स्वरूप में अवतरित हुए, पहले कदम पर स्वर्गलोक, दूसरे में पृथ्वी को नापा. तीसरा पग उठाने ही वाले थे कि महाबलि ने अपना सर आगे रख दिया. उनकी उदारता से प्रसन्न भगवान विष्णु ने उन्हें पाताल लोक में भेज दिया. मान्यता है कि इसके बाद राजा बलि हर साल सावन माह के श्रवण नक्षत्र में अपनी प्रजा की सुध लेने धरती पर आते हैं. इस दस दिनों के दौरान दक्षिण भारत में घर सजाए जाते हैं, बाजारों में खूब रौनक रहती है और पूजा पाठ के साथ साथ लोग उत्सव मनाते हैं.
दस दिवसीय ओणम पर्व के सभी 10 दिनों की सूची और उनका महत्व
* ओणम के पहले दिन वामन्मूर्ति थिर्रिकार मंदिर और कोच्चि में अथाचमायम जुलूस निकालते हैं. इस रात को अठापू कहते हैं. इस दिन फूलों की पंखुड़ियां सजाई जाती है.
* चिथिरा नामक इस दूसरे दिन पुक्कलम की दूसरी और तीसरी परत नारंगी और पीली पंखुड़ी से बनाते हैं.
* ओणम के तीसरे यानी चोड़ी के दिन पुक्कलम में एक और परत जोड़ते हैं. कुछ लोग ओनक्कोड़ी पूजा भी करते हैं. लोग नये वस्त्र पहनते हैं.
* ओणम का चौथा दिन विशाकम, वस्तुतः ओना साद्य की शुरुआत का प्रतीक है. लोग अपने घरों में नई फसलें संग्रह करते हैं, घरों में विभिन्न किस्म के व्यंजन बनाया जाता है.
* इस पांचवे दिन को अनिजम कहते हैं, यह पंबा नदी तट पर आयोजित होती है. इस दिन नौका-दौड़ का आयोजन होता है.
* छठे यानी त्रिकेट्टा के दिन लोग आशीर्वाद प्राप्त करने मंदिरों और अपने पैतृक घरों में जाते हैं. थ्रीकेट्टा पर नये फूलों से सजावट होती है.
* ओणम का सातवां दिन मूलम कहलाता है. इस दिन लोग ओना साद्य अर्पित करना शुरू करते हैं. इस दिन केरल में पुलिकली और कैकोट्टिकली जैसे पारंपरिक लोक नृत्य करते हैं.
* आठवें दिन को पुरदाम कहते हैं, इस दिन पुक्कलम को बड़ा बनाने के लिए इसमें नया फूल डाले जाते हैं. पुक्कलम के केंद्र में महाबली और वामन की मूर्तियां रखकर पूरदम अनुष्ठान किया जाता है.
* नौवें यानी उथारोडम पर महाबली के आगमन की तैयारियां की जाती हैं, लोग मौसम की नई फसलों से व्यंजन तैयार कर घर के लोग उसका सेवन करते हैं.
* ओणम का सबसे शुभ 10वां दिन थिरुवोणम कहलाता है. इस दिन महाबली के आगमन पर लोग अपने घरों को सजाते हैं.
इसके साथ ही दस दिन से चला आ रहा ओणम का पर्व पूरा होता है.