Navratri 2019: नवरात्रि के पांचवें दिन होती है ‘स्कंदमाता’ की पूजा! इन मंत्रों से मिलता है संतान-सुख

सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी मां स्कंदमाता की पूजा संतान सुख के लिए की जाती है. स्कंदमाता को प्रथम प्रसूता महिला भी कहा जाता है. मान्यता है कि मां अपने भक्तों की रक्षा पुत्र के समान करती हैं. नवरात्रि के 5वें दिन यानी आज मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप ‘स्कंदमाता’ की पूजा का विधान है.

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Navratri 2019: नवरात्रि के पांचवें दिन होती है ‘स्कंदमाता’ की पूजा! इन मंत्रों से मिलता है संतान-सुख

सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी मां स्कंदमाता की पूजा संतान सुख के लिए की जाती है. स्कंदमाता को प्रथम प्रसूता महिला भी कहा जाता है. मान्यता है कि मां अपने भक्तों की रक्षा पुत्र के समान करती हैं. नवरात्रि के 5वें दिन यानी आज मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप ‘स्कंदमाता’ की पूजा का विधान है.

लाइफस्टाइल Rajesh Srivastav|
Navratri 2019: नवरात्रि के पांचवें दिन होती है ‘स्कंदमाता’ की पूजा! इन मंत्रों से मिलता है संतान-सुख
‘स्कंदमाता' (फोटो क्रेडिट्स: फाइल फोटो)

Navratri 2019: सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी मां स्कंदमाता की पूजा संतान सुख के लिए की जाती है. स्कंदमाता को प्रथम प्रसूता महिला भी कहा जाता है. मान्यता है कि मां अपने भक्तों की रक्षा पुत्र के समान करती हैं. नवरात्रि के 5वें दिन यानी आज मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप ‘स्कंदमाता’ की पूजा का विधान है. इनकी विधिवत पूजा से भक्त की समस्त इच्छाएं पूरी होती हैं. स्कंदमाता शेर पर सवार रहती हैं. उनकी चार भुजाएं हैं. ये दाईं ओर अपनी गोद में स्कंद को पकड़े हुए हैं. दो भुजाओं में कमल का पुष्प धारण किए हुए हैं. मां का ये स्वरूप भक्तों के लिए कल्याण कारी है. भगवान कार्तिकेय यानी स्कंद कुमार की माता होने के कारण इन्हें स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है. देवी स्कंदमाता का वाहन सिंह है. वे कमल के आसन पर भी विराजमान रहती हैं. इसी वजह से इस दिन स्कंदमाता को कमल का फूल विशेष रूप से चढ़ाया जाता है.

मां स्कंदमाता की भक्ति के लिए निम्न श्लोक का जाप करना चाहिए. मान्यता है कि इनकी साधना से बांझ को भी संतान सुख की प्राप्ति होती है.

या देवी सर्वभू‍तेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता।

नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।

मां दुर्गा का पांचवां रूप क्यों हैं स्कंदमाता

शिव पुराण में उल्लेखित है कि भगवान स्कंद जो ‘कुमार कार्तिकेय’ नाम से भी जाने जाते हैं, देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति की भूमिका निभाई थी. विभिन्न पुराणों में इनकी ‘कुमार’ और ‘शक्ति’ के नाम से भी इनकी महिमा का बखान किया गया है. भगवान स्कंद की माता होने के कारण मां दुर्गा के इस स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है.

 पूजा विधि

स्कंदमाता के श्रृंगार के लिए खूबसूरत एवं आकर्षक रंगों का प्रयोग किया जाता है. पुरोहितों का कहना है कि स्कंदमाता और कुमार कार्तिकेय की पूजा सच्ची निष्ठा एवं विनम्रता से करनी चाहिए. एक चौकी पर लाल रंग का आसन बिछा कर उस पर स्कंदमाता की प्रतिमा अथवा फोटो रखें. अब इन पर कुमकुम, अक्षत एवं लाल रंग के फूल चढ़ाकर पूजा करें एवं मस्तष्क पर चंदन लगाएं. माता के सामने धूप एवं देशी घी का दीप प्रज्जवलित करें. गौरतलब है कि स्कंदमाता को फलों में केला अतिप्रिय है, इसलिए केले का भोग जरूर लगाएं. इसके अलावा माता को केसर मिला खीर भी भोग में चढ़ाया जा सकता है. पूजा करते हुए निम्न मंत्र का जाप जरूर करें

सिंहासनागता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी।।

पूजा में इस मंत्र का करें जाप करने से होती हैं सभी मनोकामनाएं पूरी

स्कंदमाता का अलौकिक कवच

ऐं बीजालिंका देवी पदयुग्मघरापरा।

हृदयं पातु सा देवी कार्तिकेययुता॥

श्री हीं हुं देवी पर्वस्या पातु सर्वदा।

सर्वांग में सदा पातु स्कन्धमाता पुत्रप्रदा॥

वाणंवपणमृते हुं फट्‌ बीज समन्विता।

उत्तरस्या तथाग्नेव वारुणे नैॠतेअवतु॥

इन्द्राणां भैरवी चैवासितांगी च संहारिणी।

सर्वदा पातु माँ देवी चान्यान्यासु हि दिक्षु वै॥

स्कंदमाता की पूजा एवं व्रत बहुत सच्चे एवं शांत मन से करनी चाहिए. मान्यता है कि स्कंदमाता की पूजा करने से माता की विशेष कृपा बरसती है. स्कंदमाता की कृपा से बांझ औरत को भी संतान का सुख प्राप्त हो सकता है. अगर भक्त का बृहस्पति कमजोर हो तो स्कंदमाता की पूजा कर वह अपने हर बिगड़ते कार्य को पूरा कर लेता है. इनकी पूजा से घर में चल रहे सारे क्लेश एवं अशांति दूर हो जाती है. स्कंदमाता को सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी भी माना जाता है.

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