
Rukmini Vivah 2025: हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को श्रीकृष्ण रुक्मिणी विवाह (Rukmini Vivah) का प्रसंग हुआ था. श्रीकृष्ण (Bhagwan Shri Krishna) को भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu) और रूक्मिणी (Rukmini) को देवी लक्ष्मी (Mata Lakshmi) का अवतार माना जाता है. यह पर्व श्री कृष्ण और देवी रूक्मिणी के विवाह को समर्पित है. इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने देवी रुक्मिणी का हरण किया था, इसलिए इसे रूक्मिणी-हरण दिवस भी कहा जाता है. इस श्रीकृष्ण मन्दिरों में तमाम तरह के आयोजन किये जाते हैं. पूर्वी भारत एवं ओडिशा में इस दिन का विशेष महत्व है. इस वर्ष 6 जून 2025 को रुक्मिणी विवाह का व्रत एवं पूजा का आयोजन किया जाएगा. यह भी पढ़ें: Nirjala Ekadashi 2025: निर्जला एकादशी व्रत में ही निर्जल रहना क्यों जरूरी है? जानें पूजा की सही तिथि, महत्व, मंत्र एवं उपासना विधि!
इस वर्ष (2025) कब है रुक्मिणी विवाह?
इस वर्ष रुक्मिणी विवाह का पर्व 6 जून 2025, शुक्रवार के दिन मनाया जायेगा.
रुक्मिणी विवाह पर क्यों होती है लक्ष्मी-नारायण की पूजा
हिंदू मान्यताओं के अनुसार रुक्मिणी देवी लक्ष्मी का अवतार हैं इसलिए इस दिन लक्ष्मी नारायण की विधि-विधान से पूजा होती है. कहा जाता है कि श्रीकृष्ण ने लक्ष्मी के साथ अपनी ईश्वरीय सत्ता का प्रदर्शन किया। लक्ष्मी नारायण की पूजा से, रुक्मिणी विवाह का महत्व कई गुना बढ़ जाता है. यह दर्शाता है कि श्री कृष्ण और रुक्मिणी के विवाह को ईश्वरीय आशीर्वाद प्राप्त है
लक्ष्मी नारायण की पूजा-विधि?
ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान-ध्यान से निवृत्त होकर लक्ष्मी नारायण का ध्यान कर व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. अब मंदिर में लक्ष्मी नारायण को गंगाजल से प्रतीकात्मक स्नान करायें. तत्पश्चात धूप-दीप प्रज्वलित करे. निम्न मंत्र का जाप करें.
ॐ नमो भगवते रुक्मिणी वल्लभाय स्वाहा
ॐ रुक्मिणी पति च विद्महे भक्त दर्शनाय च धीमहि | तन्नो विठ्ठल प्रचोदयात्
अब लक्ष्मी नारायण को पीले रंग के कनेर के पुष्प, पीला चंदन, पान, सुपारी, तुलसी दल अर्पित करें. भोग में पंचमेवा, फल और मिठाई चढ़ाएं. भगवान के समक्ष मनोकामना व्यक्त करें. अब लक्ष्मी नारायण व्रत कथा सुनें या पढ़ें. अंत में लक्ष्मी नारायण की आरती उतारें. मान्यता है कि रुक्मिणी विवाह के दिन विधि-विधान से पूजा करने से भगवान नारायण और लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है. दाम्पत्य जीवन खुशहाल रहता है. इस दिन बहुत-सी कुंवारी कन्याएं भी अच्छे जीवन साथी की कामना के साथ यह व्रत एवं पूजा करती हैं, दुख-दरिद्रता मिटती है, घर में कलह नहीं होता है.
रुक्मिणी हरण की कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी रुक्मिणी को लक्ष्मी जी का और भगवान श्रीकृष्ण को श्रीहरि का अवतार माना जाता है. भागवत पुराण के अनुसार द्वापर युग में भगवान विष्णु ने श्रीकृष्ण के रूप मे अवतार लिया और कंस का वध किया था. रुक्मिणी जी भगवान श्री कृष्ण से प्रेम करती थीं और उन्ही को अपना जीवन साथी बनाना चाहती थी, लेकिन उनके बड़े भाई रुक्मी कंस के करीबी थे. इसलिए वे श्रीकृष्ण शत्रुता रखते थे. रूक्मी चेदिराज शिशुपाल से अपनी बहन रुक्मिणी का विवाह करना चाहता था, वह किसी भी कीमत पर रुक्मिणी का विवाह श्रीकृष्ण से हो. शिशुपाल भी कृष्ण से शत्रुता रखता था.
जब देवी रुक्मिणी को यह बात पता चली तो उन्होंने भगवान कृष्ण से सहायता मांगी और अपनी इच्छा भी बताई. तब श्री कृष्ण ने देवी रुक्मिणी का हरण कर द्वारिका लेकर आते हैं. इसके बाद ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने देवी रुक्मिणी से विवाह किया.