Narak Chaturdashi 2023 Date: नरक चतुर्दशी पर कहीं होती है प्रेत आत्माओं से मुक्ति हेतु काली-पूजा तो कहीं नरक से बचने के होते हैं उपाय!
Narak Chaturdashi

पांच दिवसीय दिवाली का दूसरा पर्व है नरक चतुर्दशी. इसके अगले दिन दिवाली का पर्व मनाया जाता है. कार्तिक मास कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन यह पर्व मनाया जाता है. वस्तुतः यह नर्क के देवता यमराज को समर्पित पर्व है. पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन माँ काली, भगवान श्रीकृष्ण एवं सत्यभामा ने महाबलशाली राक्षस का संहार करके पृथ्वी वासियों को निर्भय दान दिया था. इस दिन को रूप चौदस, भूत चतुर्दशी, नरक निवारण चतुर्दशी एवं छोटी दिवाली के नाम से भी जाना जाता हैं. इन विभिन्न नामों से मनाये जाने वाले नरक चतुर्दशी पर्व के कई धार्मिक अनुष्ठान, मान्यताएं एवं परंपराएं हैं, आइये जानते हैं इस पर्व के बारे में कुछ रोचक जानकारियां..

नरक निवारण चतुर्दशी 2023 मूल तिथि और समय

नरक चतुर्दशी प्रारंभ: 01.57 PM से (11 नवंबर 2023) से

नरक चतुर्दशी समाप्त: 02.44 PM (12 नवंबर 2023) तक

अभ्यंग स्नान मुहूर्तः 05.28 AM से 06.41 AM तक

नरक चतुर्दशी का महात्म्य

नरक चतुर्दशी के दिन लोग अपने जीवन से नकारात्मक शक्तियों, बुरी आत्माओं एवं भूत-प्रेत आदि के प्रभावों से मुक्ति के लिए देवी काली की विधि-विधान से पूजा करते हैं, बहुत से घरों में मान्यतानुसार लोग मृत्यु के पश्चात नरक में जाने की संभावनाओं से बचने के लिए शुभ मुहूर्त में अभ्यंग स्नान करते हैं. यह पर्व मूलतः भगवान श्रीकृष्ण एवं सत्यभामा द्वारा महाबलशाली राक्षस नरकासुर के संहार कर धर्म की अधर्म पर विजय के रूप में भी मनाया जाता है. यह भी पढ़ें : Karwa Chauth 2023 Greetings: शुभ करवा चौथ! इन शानदार WhatApp Stickers, HD Images, Wallpapers, Photo Wishes के जरिए दें बधाई

नरक चतुर्दशी सेलिब्रेशन

इस दिन को लोग छोटी दिवाली के रूप में पूरे उत्साह और समर्पण के साथ मनाते हैं. संध्याकाल में स्वच्छ वस्त्र पहनकर अपने घरों को दीपों से सजाते हैं और माँ काली की पूजा-अनुष्ठान में हिस्सा लेते हैं. इसके पश्चात देर रात तक आतिशबाजियां छुड़ाकर खुशियां जताते हैं. राजस्थान, गुजरात एवं महाराष्ट्र के लोग इस दिन चौराहे पर लाल कपड़े से ढका मटका रखने की परंपरा का निर्वाह करते हैं. वे इस दिन को काली चौदस के नाम से सेलिब्रेट करते हैं.

नरक चतुर्दशी पर विभिन्न अनुष्ठान

नरक चतुर्दशी के दिन शुभ मुहूर्त में घर-परिवार के लोग तिल का तेल, फूल एवं जड़ी-बूटियों से बना उबटन लगाकर स्नान करते हैं. इसे अभ्यंग स्नान करके नये वस्त्र पहनना चाहिए. मान्यता है कि अभ्यंग स्नान करने से लोग नरक जाने से बच जाते हैं. कुछ लोग बुरी शक्तियों से बचने के लिए काजल का टीका भी लगाते हैं. संध्याकाल में माँ लक्ष्मी एवं कुबेर की विधि-विधान से पूजा करते हैं और पूरे घर को दीपक एवं विद्युत लड़ियों से सजाते हैं. इसके बाद घर के बच्चे, वृद्ध एवं युवा लोग पटाखे फोड़ते हैं. बहुत सी जगहों पर इस दिन हनुमान जी की भी विशेष पूजा की जाती है. उन्हें फूल, तेल, और चंदन अर्पित करने के साथ तिल, गुड़ एवं नारियल से बना प्रसाद चढ़ाते हैं. उत्तर भारत के कुछ हिस्सों में इस दिन लोग अपनी कुलदेवी एवं कुलदेवता की पूजा करते हैं तो कुछ लोग पितरों को भोजन कराने की परंपरा का निर्वाह कर उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.