हिंदू धर्म के मुताबिक मातृ नवमी का बड़ा महत्व है. इस दिन परिवार की दिवंगत महिलाओं की पूजा की जाती है. उन्हें भोज कराया जाता है, और जब वे तृप्त होकर वापस लौटती हैं तो पूरे परिवार को आशीर्वाद देती हैं.
सनातन धर्म के अनुसार आश्विन मास में कृष्णपक्ष की नवमी के दिन मातृ नवमी मनायी जाती है. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पितृ पक्ष के इस पखवारे में मातृ नवमी का विशेष महत्व होता है. प्रत्येक वर्ष आश्विन मास कृष्णपक्ष की नवमी (मातृ नवमी) के दिन परिवार की दिवंगत महिलाओं के नाम की पूजा-अर्चना की जाती है, उन्हें स्मरण कर पूजा की जाती है. नवमी तिथि पर दिवंगत माताओं और सुहागिन स्त्रियों के श्राद्ध एवं तर्पण का विधान है. घर की महिलाएं उनके लिए उनकी पसंद के भोजन बनाकर गाय, कौवे, कुत्ते एवं चीटियों को खिलाती हैं. मान्यता है कि दिवंगत महिलाएं उन्हीं के रूप में आ सकती हैं. कहा जाता है कि अपनी बहु एवं बेटियों से सम्मान पाकर वे तृप्त होकर लौटती हैं, और जाते-जाते उन्हें आशीर्वाद देती हैं, शास्त्रों में भी वर्णित है कि मातृ नवमी का श्राद्ध करने वालों को सुख, शांति, संपत्ति एवं सौभाग्य की प्राप्ति होती है. इस वर्ष 30 सितंबर 2021 को मातृनवमी पड़ रही है.
कैसे करें मातृनवमी का श्राद्ध
इस साल अश्विन मास की नवमी तिथि 29 सितंबर को रात्रि 08.29 बजे से शुरू होकर 30 सितंबर को रात्रि 10.08 बजे तक समाप्त हो रही है. इस तिथि की गणना सूर्योदय से होने के कारण मातृ नवमी का श्राद्ध कर्म 30 सितंबर गुरूवार को किया जाएगा. इस दिन घर की महिलाएं सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करने के पश्चात परिवार की दिवंगत महिलाओं का स्मरण कर उपवास एवं सामर्थ्यानुसार श्राद्ध का संकल्प लें. इस दिन को ‘सौभाग्यवती श्राद्ध’ के नाम से भी जाना जाता है. घर की रसोई में घर की बहुओं को सास एवं माँ की पसंद का खाना स्वयं बनाना चाहिए. इसके पश्चात घर के दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके एक हरे वस्त्र को बिछाकर उस पर दिवंगत महिला सदस्यों के नाम की एक-एक सुपारी प्रतीक स्वरूप रखें. हाथ जोड़कर उनका स्मरण करते हुए आटे से बने दीपक में तेल डालकर दीप प्रज्जवलित करें. दायें हाथ की हथेली पर पुष्प एवं जल में मिसरी एवं तिल मिलाकर तर्पण करें. अब तुलसी के पत्ते अर्पित करें. इसके बाद हाथ में लाल पुष्प लेकर भागवत गीता के नवें अध्याय का पाठ करें. पाठ के पश्चात लाल पुष्प को प्रतीक स्वरूप रखे सुपारी के सामने रखने के बाद हाथ जोड़कर जाने-अनजाने हुई गल्तियों के लिए छमा मांगें. यह भी पढ़ें : Jivitputrika Vrat 2021: कब है जीवित्पुत्रिका व्रत? पुत्र-प्राप्ति के लिए जानें कैसे करें जिउतिया व्रत एवं पूजा? एवं क्या है इसका महात्म्य एवं व्रत कथा ?
भागवत गीता का पाठ करने के पश्चात श्राद्ध निमित्त तैयार भोजन घर के बाहर दक्षिण दिशा में रखें. ध्यान रहे कि ये भोजन गाय, कौआ, चींटी, चिड़िया आदि अवश्य करें. गरूड़ पुराण में उल्लेखित है कि इस दिन गरीबों या ब्राह्मणों को भोजन कराने से सभी मातृ शक्तियों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस दिन तुलसी का पूजन जरूर करें. तुलसी पर जल अर्पित करने के बाद एक दीप प्रज्जवलित करना ना भूलें.