Mahesh Navami 2022: क्यों मनाते हैं महेश नवमी? जानें इस दिन का महत्व, पूजा विधि, मुहूर्त एवं महेश नवमी की व्रत कथा!
महेश नवमी 2022 (Photo Credits: File Image)

हिंदू पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह के शुक्लपक्ष की नवमी के दिन महेश नवमी मनाई जाती है. गौरतलब है कि शिवजी का ही नाम महेश है. इस दिन शिवजी और माँ पार्वती की विधि-विधान से पूजा की जाती है. मान्यता है कि ऐसा करने से जातक के सारे कष्ट एवं पाप मिट जाते हैं, उस पर भगवान शिव की विशेष कृपा बरसती है, तथा मृत्योपरांत उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. वैसे तो सभी शिव भक्तों के लिए महेश नवमी की पूजा का विशेष महत्व होता है, लेकिन माहेश्वरी समाज के लिए महेश नवमी का विशेष महत्व है. हिंदी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष महेश नवमी 9 जून 2022 को मनाई जाएगी.

महेश नवमी का महत्व

पौराणिक कथाओं के अनुसार इसी दिन भगवान शिव प्रकट हुए थे, इसलिए इस दिन को महेश जयंती के नाम से भी जाना जाता है. महेश भगवान शिव का ही एक नाम है. महेश नवमी के दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूरे विधि-विधान से पूजा की जाती है. ऐसा करने से भक्त की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है. माना जाता है कि इस दिन भगवान शिव की कृपा से भक्तों को हर तरह के पापों से मुक्ति मिलती है. यह भी पढ़ें : Ganga Dussehra 2022: क्यों मनाते हैं गंगा दशहरा? जानें दो शुभ योगों से निर्मित इसका विशेष धार्मिक महत्व, पूजा विधि एवं शुभ मुहूर्त!

महेश नवमी पूजा-विधि

महेश नवमी के दिन प्रातःकाल स्नान करें. स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान शिव एवं माता पार्वती का ध्यान कर उनके व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. इसके बाद निकटतम शिव मंदिर में भगवान शिव एवं मां पार्वती की पूजा कर शिवलिंग पर दूध धतूरा, फूल, बेलपत्र अर्पित करने के साथ 'ॐ नमः शिवाय' का जाप करें. इसके बाद महेश नवमी की कथा सुनें. पूजा सम्पन्न होने के बाद भगवान शिव की आरती उतारें, और बाद प्रसाद वितरण करें.

महेश नवमी (9 जून 2022, गुरुवार) शुभ मुहूर्त

नवमी प्रारम्भः 08:30 AM (08 जून 2022, दिन बुधवार) से

नवमी समाप्तः (08:21 PM) 09 जून 2022, दिन गुरुवार) तक

उदया तिथि के अनुसार महेश नवमी 9 जून 2022 को मनाई जाएगी.

महेश नवमी व्रत कथा

प्राचीन काल में खडगलसेन नामक एक राजा थे. कठिन तपस्या के पश्चात उनकी पत्नी ने पुत्र सुजान कंवर को जन्म दिया. ऋषियों ने राजा से कहा कि 20 वर्ष की आयु तक सुजान उतर दिशा में ना जाये. बड़ा होने पर सुजान 72 सैनिकों के साथ शिकार खेलते उत्तर दिशा में निकल गया. उनके घोड़ों के टापुओं से वहां तपस्या कर रहे एक ऋषि की तपस्या भंग हो गई. ऋषि ने क्रोधित होकर उसे पत्थर बनने का श्राप दे दिया. सुजान की पत्नी चंद्रावती को यह खबर मिली तो उसने ऋषि से छमा मांगते हुए पति को श्राप मुक्त की याचना की. ऋषि ने चंद्रावती से कहा कि महेश नवमी के दिन तुम शिवजी और माता पार्वती की पूजा करोगी तो सुजान श्राप-मुक्त हो जायेगा. चंद्रावती ने महेश नवमी को शिवजी और माँ पार्वती की पूजा-अर्चना की. इससे सुजान श्राप मुक्त हो गया. इसके बाद से ही महेश नवमी के दिन शिवजी और माता पार्वती की पूजा की परंपरा शुरु हुई.