Gotmar Mela 2019: हमारे देश में परंपरा के नाम कई अनूठी चीजें देखने को मिलती हैं, जिनमें से एक है मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) स्थित छिंदवाड़ा (Chhindwara) जिले के पांढुर्ना (Pandhurna) का पत्थर बरसाने वाला परंपरागत गोटमार मेला (Gotmar Mela). हर साल भाद्रपद महीने की अमावस्या पोला त्योहार के दूसरे दिन इस मेले का आयोजन किया जाता है. शनिवार 31 अगस्त को छिंदवाड़ा जिला मुख्यालय से करीब 90 किलोमीटर दूर पांढुर्ना में एक-दूसरे पर पत्थर बरसाने वाले इस गोटमार मेले का आयोजन किया गया. इस गोटमार खेल में जाम नदी के किनारे स्थित दो गांवों के लोग करीब 300 साल पुरानी परंपरा को बरकरार रखते हुए एक-दूसरे पर जमकर पत्थर बरसाते हैं, जिसे गोटमार कहा जाता है. छिंदवाड़ा पुलिस की मानें तो दोनों गांवों के बीच हुए इस गोटमार मेले के दौरान 400 से ज्यादा लोग जख्मी हुए हैं, जिनमें से 12 लोग गंभीर रूप से घायल हुए हैं.
बता दें कि गोटमार मेला शुरू होने से पहले लोगों ने पलाश के वृक्ष की स्थापना की और ध्वज लगाया, फिर मां चंडिका के दर्शन करने के बाद दोनों गांव के लोग एक-दूसरे पर पत्थर बरसाने लगे. हालांकि इस मेले के दो दिन पहले से ही जिला प्रशासन ने धारा 144 लागू कर दी थी. मेले के दौरान हालात बिगड़ न जाएं, इसके मद्देनजर 800 पुलिसकर्मियों को सुरक्षा व्यवस्था में तैनात किया गय था. इसके साथ ही पांढुर्ना और सावरगांव में स्वास्थ्य सुविधा के लिए कैंप और 10 डॉक्टरों को तैनात किया गया था. इस पूरे आयोजन को सीसीटीवी और ड्रोन कैमरे की मदद से रिकॉर्ड किया गया. इस बार करीब सात साल बाद पांढुर्ना गांव के लोगों ने जाम नदी में जाकर झंडा तोड़कर जीत हासिल की है.
300 साल पुरानी है यह परंपरा
कहा जाता है कि करीब 300 साल पहले इस परंपरा की शुरुआत 17वीं सदी में हुई थी. नदी के उस पार सावरगांव और इस पार को पांढुर्ना कहा जाता है. यहां भाद्रपद की अमावस्या को बैलों का त्योहार पोला धूमधाम से मनाया जाता है और इसी दिन सावरगांव के लोग पलाश के वृक्ष को काटकर जाम नदी में गाड़ते हैं, फिर उस पर लाल कपड़ा, तोरण, नारियल, हार चढ़ाकर उसका पूजन किया जाता है. दूसरे दिन सुबह होते ही लोग उस वृक्ष और झंडे की पूजा करते हैं फिर सुबह 8 बजे से एक-दूसरे को पत्थर मारने का यह खेल शुरू हो जाता है. यह भी पढ़ें: छिंदवाड़ा की भावना ने जान जोखिम में डालकर माउंट एवरेस्ट की चढ़ाई की पूरी
दिन भर बरसाए जाते हैं पत्थर
ढोल-नगाड़ों के बीच इन दोनों गांव के लोग एक-दूसरे पर जमकर पत्थरबाजी करते हैं. दोनों पक्ष के खिलाड़ी एक-दूसरे को पत्थर मारकर पीछे ढकेलने की कोशिश करते हैं, लेकिन दोपहर बाद 3-4 बजे के बीच दोनों पक्षों में पत्थरों की बारिश बढ़ जाती है. तेज धार वाली कुल्हाड़ी लेकर झंडे को तोड़ने के लिए पांढुर्ना गांव के खिलाड़ी उसके पास पहुंचने की कोशिश करते हैं, लेकिन उन्हें रोकने के लिए सावरगांव के खिलाड़ी उन पर पत्थरों की बारिश कर देते हैं.
झंडे के कटने पर थम जाती है पत्थरबाजी
हालांकि शाम को पांढुर्ना पक्ष के खिलाड़ी पूरी ताकत के साथ माता चंडी के जयघोष और भगाओ-भगाओं के साथ सावरगांव के खिलाड़ियों को पीछे ढकेल देते हैं और झंडे को कुल्हाड़ी से काट लेते हैं. जैसे ही झंडा टूट जाता है, दोनों पक्षों के बीच पत्थरबाजी का सिलसिला थम जाता है. दोनों पक्ष एक-दूसरे को पत्थर मारना बंद करकेआपस में मेल-मिलाप करते हैं और गाजे-बाजे के साथ माता चंडी के मंदिर में झंडे को ले जाते हैं, लेकिन झंडा न काट पाने की स्थिति में शाम साढ़े छह बजे प्रशासन द्वारा आपस में समझौता कराकर गोटमार बंद कराया जाता है.
प्रेमी-प्रेमिका की याद में होता है गोटमार मेला
इस खूनी खेल वाले गोटमार मेले को लेकर कई कहानियां और किदवंतियां मशहूर हैं. इसमें सबसे प्रचलित कहानी के अनुसार, सावरगांव की एक आदिवासी कन्या को पांढुर्ना के किसी लड़के से प्यार हो गया था. दोनों ने चोरी-छुपे शादी भी कर ली थी. एक दिन पांढुर्ना गांव का लड़का अपने साथियों के साथ सावरगांव की लड़की को अपने साथ भगाकर ले जा रहा था. उस समय जाम नदी पर पुल नहीं था और नदी का पानी गर्दन तक भरा हुआ था, जिसे तैरकर या किसी की पीठ पर बैठकर पार किया जा सकता था.
कहा जाता है कि जब लड़का लड़की को लेकर नदी से जा रहा था तब सावरगांव के लोगों को इसकी भनक लगी और उन्होंने लड़के और उसके साथियों पर पत्थर बरसाना शुरू कर दिया. इस बीच जानकारी मिलते ही पांढुर्ना गांव के लोगों ने भी मौके पर पहुंचकर जवाब में पथराव शुरू कर दिया. दोनों गावों में बीच हुई पत्थरों की बौछार में दोनों प्रेमियों ने जाम नदी के बीचोबीच अपना दम तोड़ दिया. यह भी पढ़ें: मध्यप्रदेश: छिंदवाड़ा खाई में गिरी अनियंत्रित यात्री बस, 3 की हुई मौत 50 से अधिक घायल
नदी के बीच दोनों प्रेमियों की मौत के बाद दोनों पक्ष के लोगों को शर्मिंदगी का एहसास हुआ और उन्होंने दोनों के शवों को उठाकर किले पर मां चंडिका के दरबार में रखा और पूजा-अर्चना करने के बाद उनका अंतिम संस्कार कर दिया. इस घटना के बाद से हर साल उस प्रेमी-प्रेमिका की याद में गोटमार मेले का आयोजन किया जाने लगा.
गौरतलब है कि गोटमार मेले को देखने के लिए दूर-दूर से लोग यहां पहुंचते हैं. लोग यहां घरों और दुकानों की छतों पर चढ़कर इस मेले का आनंद लेते हैं. इस मेले में पत्थरबाजी के कारण कई लोग जख्मी हो जाते हैं, जबकि कई लोगों की मौत तक हो जाती है. हालांकि प्रशासन ने कई बार इस खूनी खेल को रोकने की कोशिश की, लेकिन आस्था से जुड़े होने के कारण इसे रोकने के सभी प्रयास असफल रहे हैं.