स्वतंत्र भारत के पुरोधा लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक (Lokmanya Bal Gangadhar Tilak) की 165 वीं जयंती मनाने जा रहे हैं. तिलक भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के पहले लोकप्रिय नेता थे. वे पहले नेता थे, जिन्होंने ब्रिटिश हकूमत के सामने सर्वप्रथम पूर्ण स्वराज की मांग की थी. जानें बाल गंगाधर तिलक की प्रेरक जीवन गाथा..
ब्रिटिश चाल को उन्हीं के खिलाफ प्रयोग किया
1857 की क्रांति को अंग्रेजों ने बड़े ही दमानात्मक तरीके से दबाया था. इससे आजादी के दीवानों की मानो कमर ही टूट गई थी. उधर क्रांतिकारियों पर नकेल कसने के लिए कांग्रेस की स्थापना की. इसे अनुनय-विनय का मंच बनाया गया. वहां पर प्रीटीशन दिये जा सकते थे, प्रेयर की जा सकती थी, वहां पर युनियन जैक फहराया जा सकता था, और वहां पर ब्रिटेन के राजा की जय जयकार होती थी. अंग्रेजों की यह चाल लोकमान्य तिलक को किंचित पसंद नहीं आया. उन्होंने इसी मंच को राष्ट्रवादी मंच के रूप में तब्दील कर दिया. इसी मंच से उन्होंने नारा बुलंद किया कि स्वराज हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है, और मैं इसे लेकर रहूंगा.
जन्म एवं शिक्षा
बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी में हुआ था. उनके पिता गंगाधर तिलक संस्कृत के विद्वान थे, और एक प्रख्यात शिक्षक थे. तिलक एक प्रतिभाशाली विद्यार्थी थे, और गणित विषय से उनका खास लगाव था. तिलक के बारे में कहा जाता है कि वे केवल अपने कोर्स में निर्धारित किताबों को ही पढ़कर संतुष्ट नहीं होते थे. वे अधिकतर कैम्ब्रिज मैथमैटिकल जनरल में प्रकाशित होने वाले गणित को भी हल करते थे. तिलक जब मात्र 10 साल के थे उनकी माँ पार्वती बाई का निधन हो गया. और जब वे 16 साल के हुए तो उनके पिता गंगाधर तिलक का भी निधन हो गया था. मैट्रिकुलेशन करते समय उनका विवाह एक 10 वर्षीया कन्या सत्यभामा से करा दिया गया था. मैट्रिकुलेशन के बाद 1877 में गणित से स्नातक होने के बाद एलएलबी की डिग्री भी प्राप्त की. तिलक ने पुणे के एक प्राइवेट स्कूल में गणित पढ़ाया और कुछ समय बाद वे पत्रकार बन गये.
बचपन से अंग्रेजी हुकूमत की खिलाफत
कुछ इतिहासकारों के अनुसार, वे कहा करते थे कि भारत एक राष्ट्र है, इसका प्रमाण तभी मिल सकता है, जब इस देश के किसी भी हिस्से पर अगर कोई आपत्ति आती है तो देश के शेष लोगों को लगे कि वह आपत्ति उन पर आई है. उनकी इस बात से बहुत सारे लोग प्रभावित हुए, इसका एक प्रमाण यह है कि पंजाब में सरदार भगत सिंह के पिता सरदार किसन सिंह और चाचा सरदार अजीत सिंह को जब पता चला कि विदर्भ में एक बहुत बड़ा अकाल पड़ा है तो विदर्भ के लोगों की सेवा के लिए वे पंजाब से विदर्भ आये. वहां उन्होंने भूखों को भोजन कराया और उसके बाद जब अकाल समाप्त हो गया तो उस अकाल में जो बच्चे अनाथ हो गये थे, तो उन बच्चों को अपने साथ लेकर सरदार किसन सिंह पंजाब गये. तब उनके लिए फिरोजपुर पहला अनाथालय खोला. तिलक के दादा जी 1857 में हुई पहली बगावत के साक्षी थे, वे तिलक को क्रांतिकारियों की वीरता की गाथाएं सुनाते थे. इससे तिलक के मन में आजादी का बिगुल फुंक चुका था.
ब्रिटिशर्स के खिलाफ क्या थे उनके 4 हथियार?
बाल गंगाधर तिलक अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए चार हथियारों का इस्तेमाल करते थे. ये हथियार थे. स्वदेशी, स्वराज्य, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार और राष्ट्रीय शिक्षा थे. कालांतर में गांधी जी ने भी उऩ्हीं के इन चार हथियारों का इस्तेमाल अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ किया और भारत को स्वतंत्रता दिलाने में अहम भूमिका निभाई.
एक महान शिक्षक
तिलक का मानना था कि अच्छी शिक्षा व्यवस्था ही अच्छे नागरिकों को जन्म दे सकती है. युवा वर्ग को अच्छी शिक्षा देने के लिए आगे आये और महान समाज सुधारक श्री विष्णु शास्त्री चिपलूरकर के साथ मिलकर डेकेन एजुकेशन सोसायटी की स्थापना की. महाराष्ट्र में न्यू इंग्लिश स्कूल और फरग्यूसन कॉलेज की भी स्थापना की.
एक हथियार पत्रकारिता भी
पत्रकारिता और पत्रकारों की संघर्ष की वजह से आज दुनिया भर के सौ से ज्यादा देश जो लोकतंत्र की खुली हवाओं में सांस ले रहे हैं, उसकी नींव बाल गंगाधर तिलक ने ही रखी थी. उन्होंने भी पत्रकारिता को अंग्रेजों के खिलाफ हथियार की तरह इस्तेमाल किया. उन्होंने मराठा और केसरी नामक अखबारों का प्रकाशन किया. इस समाचार पत्र के माध्यम से उन्होंने देश एवं देशवासियों की समस्याओं से लोगों को अवगत कराया. उन्होंने पत्रकारिता को भी अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ हथियार की तरह इस्तेमाल किया. इस पत्र के माध्यम से तिलक ने अंग्रेजी हुकूमत से लड़ने के लिए लोगों का आह्वान किया, जिसके लिए उन्हें उन्हें तीन बार जेल जाना पड़ा. यह भी पढ़ें : Chandra Shekhar Azad Jayanti 2021 Quotes: चंद्र शेखर आजाद की 115वीं जयंती आज, उनके ये क्रांतिकारी विचार दिलों में जगाते हैं देशभक्ति का अलख
एक प्रखर समाज सुधारक
राजनीति के मैदान में महात्मा गांधी भले ही गोपाल कृष्ण गोखले को अपना गुरु मानते हों, लेकिन जहां तक अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष के तमाम आंदोलनों में जन-जन को जोड़कर उन्हें आंदोलित करने की बात है तो उसके पुरोधा तो बाल गंगाधर तिलक ही थे. वह चाहे स्वदेशी की बात हो, स्वराज्य पर अपने अधिकार की बात हो या विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार की बात हो. तिलक ने नशाबंदी के खिलाफ भी अंग्रेजी हुकूमत पर दबाव डाला. दलित और वंचित कहे जाने वाले लोगों को भी समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए तमाम कार्यक्रम चलाए. उन्होंने बाल विवाह और विधवा विवाह की निंदा करते हुए उसके विरुद्ध खुलकर आवाज उठाई. तिलक के प्रस्ताव पर ही 1939 में लाहौर के कांग्रेस अधिवेशन में पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव पारित किया था, जिसे उनसे पूर्व कांग्रेस करने का साहस नहीं कर सकी थी.
निधन
अंग्रेजी हुकूमत को नाको चने चबवाने वाले इस प्रखर स्वतंत्रता सेनानी को आजादी की सुबह नसीब नहीं हुई, लेकिन आजादी के दीवानों के लिए वे आज भी प्रखर प्रेरक माने जाते हैं. 1 अगस्त 1920 में मुबंई में उनका देहांत हो गया.