श्रावण माह में भगवान शिव की पूजा-अर्चना का विशेष महात्म्य माना जाता है. भगवान शंकर को उनके भक्त अनगिनत नामों मसलन बर्फानी बाबा, महाकाल, महाकालेश्वर, भोले भंडारी, डमरूवाला, त्रिपुरारि, त्रयम्बकेश्वर, नीलकंठ, महादेव, केदारनाथ, आशुतोष इत्यादि से जानते हैं. भगवान शिव को सभी देवताओं में सर्वोपरि माना जाता है. शिव एकमात्र ऐसे देवता हैं, जिनकी पूजा शिवलिंग के रूप में भी की जाती है. शिवलिंग को लेकर तरह-तरह की दुविधाएं व्याप्त हैं. इसलिए शिवलिंग पर कुछ और बातें करने से पूर्व हम जानें कि शिवलिंग वस्तुतः क्या है.
क्या है शिव लिंग
शिवलिंग का सही अर्थ होता है शून्य, आकाश, अनंत, ब्रह्माण्ड. निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने के कारण इसे लिंग कहा गया है. शिवलिंग का अर्थ अनंत भी होता है, यानि जिसका न कोई अंत होता है न ही शुरूआत. शिवलिंग का अर्थ लिंग अथवा योनि नहीं होता. वस्तुतः यह दुविधा संस्कृत भाषा के शब्दों के दूसरे भाषा में अज्ञानतावश अनुवाद होने के कारण उत्पन्न हुई. इसकी भाषा का सही रुपांतर नहीं किया गया. वेदों और वेदांत में ‘लिंग’ शब्द का आशय सूक्ष्म शरीर के लिए आता है. हमारा शरीर भी सूक्ष्म शरीर के 17 तत्वों से निर्मित है. ये हैं मन, बुद्धि, पांच ज्ञानेंद्रियां, पांच कर्मेन्द्रियां और पांच वायु.
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परिक्रमा का महात्म्य
देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना में उनकी परिक्रमा का बड़ा महत्व है. शास्त्रों में इनकी संख्या भी अलग-अलग बताई गई है. भगवान विष्णु या उनके मंदिर की परिक्रमा 4 बार, गणेश जी की 3 बार एवं देवी की एक पूरी परिक्रमा का विधान है, किंतु शिवलिंग की आधी परिक्रमा का ही महात्म्य बताया गया है. अकसर भोले-भाले भक्त जानकारी के अभाव में देवी-देवताओं का बेहिसाब परिक्रमा करते हैं. उन्हें लगता है कि ज्यादा परिक्रमा करने देवी-देवता ज्यादा खुश होंगे. शास्त्रों में शिव जी की परिक्रमा के लिए मर्यादाएं तय हैं. इसलिए शिव भक्त को शिवलिंग की परिक्रमा करते समय संख्या की मर्यादाओं को समझना और उसे उसी अऩुरूप करना अनिवार्य है.
शिव पुराण में उल्लेखित है कि भगवान शिव वैसे तो भोले भंडारी है, बड़ी आसानी से उन्हें खुशकर भक्त वरदान प्राप्त कर लेते हैं. लेकिन अगर शिव जी किसी से नाराज हो जाएं तो उऩ्हें रौद्र रूप धारण करने में ज्यादा समय नहीं लगता. भगवान शिव जी की परिक्रमा के लिए शास्त्रों में लिखा है कि शिवलिंग की अर्ध परिक्रमा से ही पूरा फल प्राप्त होता है. यह बात स्वयं शिव जी ने एक बार अपने एक भक्त को बताई थी कि क्यों शिवलिंग की आधी परिक्रमा ही करनी चाहिए. इस संदर्भ में एक कथा लोकप्रिय है.
लोकप्रिय कथा
प्राचीनकाल में पुष्पदत्त नामक एक राजा था. वह वस्तुतः गंधर्वों का राजा था, इसलिए उसे गंधर्वराज भी कहते थे. गंधर्वराज ने भगवान शिव को प्रसन्न कर अदृश्य होने की शक्ति प्राप्त कर ली थी. वह अदृश्य होकर शिव जी की पूजा के लिए खुशबू वाले फूल बागों से तोड़ लेता था. उन्हें फूल तोड़ते समय कोई देख नहीं पाता था.
प्रतिदिन बाग से खुशबू वाले फूल गायब होते देख माली भी परेशान हो गया. उसने पूरी कोशिश की कि चोरी से फूल तोड़नेवाले को पकड़कर राजा के हवाले करे, लेकिन लाख प्रयास के बावजूद वह फूल-चोर को पकड़ नहीं सका. हारकर माली ने राजा से शिकायत की. राजा ने चोर को पकड़ने के लिए बाग के चारों ओर पहरेदार लगवाए. कुछ गुप्तचर भी नियुक्त किए, लेकिन फिर भी फूलों की चोरी रुकी नहीं, पहरेदार और गुप्तचर भी हताश हो गए.
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एक दिन गंधर्वराज शिवलिंग पर फूल चढ़ाते समय गलती से शिवलिंग की प्रवाहिका को लांघ गया. उसकी इस गलती से नाराज होकर भगवान शिव ने उससे अदृश्य होने की शक्ति छीन ली. अगले दिन हमेशा की तरह गंधर्वराज फूल तोड़ ही रहा था कि पहरेदारों ने उसे पकड़ लिया. लेकिन गंधर्वराज ने जैसे-तैसे वहां से भागकर जान बचाई. अगले दिन गंधर्वराज ने भगवान शिव से पूछा कि उससे ऐसी क्या गलती हो गई कि उसकी अदृश्य होने की शक्ति खत्म हो गई. तब शंकर जी ने उससे कहा, -हर शिवलिंग में एक निर्मली (निकास द्वार) बना होता है. शिवलिंग पर चढ़ाए जानेवाले दूध एवं जल को इसी रास्ते से बाहर निकाला जाता है. कुछ जगहों पर इस निर्मली को ढक दिया जाता है, ऐसे शिवलिंग की पूरी परिक्रमा करने में कोई दोष नहीं, लेकिन अगर वह निर्मली खुली है तो उसे भूल कर भी नहीं लांघना चाहिए. निर्मली को लांघी न जाए, इसके लिए शिवलिंग की पूरी परिक्रमा नहीं करनी चाहिए.