Subhash Chandra Bose Jayanti 2019: देश में मनाई जा रही है नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 122वीं जयंती, जानिए इस महान देशभक्त के जीवन से जुड़ी 10 दिलचस्प बातें
नेताजी सुभाष चंद्र बोस जयंती 2019 (File Image)

Subhash Chandra Bose Jayanti 2019: आज देशभर में नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhash Chandra Bose) की 122वीं जयंती मनाई जा रही है. 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा के कटक में जन्मे नेताजी सुभाष चंद्र बोस एक ऐसे महान देशभक्त और स्वतंत्रता सेनानी (Freedom Fighter) थे, जिन्होंने देश की आजादी की लड़ाई के लिए अपना सबकुछ बलिदान कर दिया. अंग्रेजों की गुलामी से देश को आजादी दिलाने के मकसद से ही द्वितीय विश्वयुद्ध (Second World war) के दौरान उन्होंने  'आजाद हिंद सरकार' और 'आजाद हिंद फौज' का गठन किया. उन्होंने देश के सभी युवाओं को अपना प्रसिद्ध नारा 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा'  दिया था.

23 जनवरी 2019 को पूरा देश नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 122वीं जयंती (122nd Birth Anniversary) मना रहा है. इस बेहद खास मौके पर चलिए जानते हैं देश के लिए अपनी जान न्योछावर करने वाले इस महान देशभक्त से जुड़ी 10 रोचक बातें.

नेताजी सुभाष चंद्र बोस से जुड़ी 10 रोचक बातें-

1- सुभाष चंद्र बोस के पिता का नाम जानकीनाथ बोस और मां का नाम प्रभावती था. जानकीनाथ कटक के मशहूर वकील थे. उनके पिता चाहते थे कि सुभाष आईसीएस बनें. सुभाष चंद्र बोस ने अपने पिता की इस इच्छा को पूरी की और साल 1920 की आईसीएस परीक्षा में उन्होंने चौथा स्थान हासिल किया, लेकिन उन्हें अंग्रेजों के अधीन काम करना मंजूर नहीं था, लिहाजा 22 अप्रैल 1921 को उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया.

2- नेताजी की स्कूली पढ़ाई प्रेजिडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश कॉलेजिएट स्कूल में हुई. उसके बाद उनकी शिक्षा कलकत्ता के प्रेजिडेंसी कॉलेज और स्कॉटिश चर्च कॉलेज से हुई. बाद में आईसीएस (इंडियन सिविल सर्विस) की तैयारी के लिए उनके माता पिता ने उन्हें इंग्लैंड के कैंब्रिज यूनिवर्सिटी भेज दिया. यह भी पढ़ें: Swami Vivekananda Jayanti 2019: स्वामी विवेकानंद की 156वीं जयंती, 10 ऐसे प्रेरणादायी विचार जो आपके जीवन में भर देंगे नई ऊर्जा

3- सिविल सर्विस छोड़ने के बाद नेताजी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साथ जुड़ गए. महात्मा गांधी उदार दल का नेतृत्व कर रहे थे, जबकि सुभाष चंद्र बोस जोशीले क्रांतिकारी दल के प्रिय नेता थे. ऐसे में वो महात्मा गांधी के अंहिसा वादी विचारों से समहत नहीं थे. हालांकि दोनों का मकसद देश को आजादी दिलाना था. दरअसल, गांधीजी को नेताजी ने ही सबसे पहले राष्ट्रपिता कहकर संबोधित किया था.

4- सुभाष चंद्र बोस देश के ऐसे महानायकों में से एक माने जाते हैं, जिन्होंने आजादी की लड़ाई के लिए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया. उनकी देश सेवा के जज्बे और संघर्षों को देखकर ही महात्मा गांधी ने उन्हें देशभक्तों का देशभक्त कहकर संबोधित किया था.

5- सुभाष चंद्र बोस की पहली बार 20 जुलाई 1921 में महात्मा गांधी से मिले थे और गांधी जी की सलाह के बाद ही वो भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए काम करने लगे.

6- भारत को आजादी दिलाने के संग्राम में शामिल होने के साथ-साथ उनका जुड़ाव सामाजिक कार्यों में भी बना रहा. बताया जाता है कि बंगाल की भयंकर बाढ़ में घिरे लोगों को उन्होंने भोजन, वस्त्र और सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने का काम किया था.

7- सुभाष चंद्र बोस जब कलकत्ता महापालिका के प्रमुख अधिकारी बने तो उन्होंने कलकत्ता के रास्तों का अंग्रेजी नाम बदलकर भारतीय नाम पर कर दिया. इसके साथ ही समाजसेवा के काम को नियमित रुप से चलाने के लिए उन्होंने 'युवक दल' की स्थापना की.

8- सुभाष चंद्र बोस को अपने जीवन काल में 11 बार कारावास की सजा मिली थी. सबसे पहले उन्हें 16 जुलाई 1921 को छह महीने के कारावास की सजा सुनाई गई थी. 1941 में वो जर्मनी पहुंचे जहां उनकी मुलाकात हिटलर से हुई. जिसके बाद उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ युवाओं को 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' का नारा दिया था.

9- उन्होंने एमिली शेंकल नाम की एक टाइपिस्ट महिला से साल 1942 में शादी कर ली थी. दरअसल, 1934 में सुभाष अपना इलाज कराने के लिए ऑस्ट्रिया गए थे. उस दौरान उन्हें अपनी पुस्तक टाइप कराने के लिए एक टाइपिस्ट की जरूरत थी और तभी उनकी मुलाकात एमिली शेंकन से हुई थी.  यह भी पढ़ें: Republic Day 2019 Wishes: गणतंत्र दिवस पर WhatsApp Stickers, SMS, Facebook के जरिए भेजें ये शानदार मैसेजेस और हर किसी के मन में जगाएं देशभक्ति की भावना

10- 18 अगस्त 1945 में जब सुभाष चंद्र बोस हवाई जहाज से मंचूरिया जा रहे थे, तभी उनका विमान ताइहोकू हवाई अड्डे पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जिसमें उनकी मौत हो गई. हालांकि उनकी मौत पर आज भी रहस्य बरकरार है.

गौरतलब है कि सक्रिय राजनीति में आने से पहले नेताजी ने पूरी दुनिया का भ्रमण किया. उनका मानना था कि अंग्रेजों के दुश्मनों से मिलकर आजादी हासिल की जा सकती है. उनके इन्हीं विचारों को भांपते हुए ब्रिटिश सरकार ने उन्हें कोलकाता में नजरबंद कर दिया था, लेकिन वह अपने भतीजे शिशिर कुमार बोस की सहायता से वहां से भाग निकले.