Shattila Ekadashi 2024: षटतिला एकादशी पर किन 6 तरीकों से तिल का इस्तेमाल करें? जानें इसका महत्व, मुहूर्त, पूजा-विधि एवं व्रत-कथा!
Shattila Ekadashi 2024

माघ कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी के नाम से जाना जाता है. षटतिला एकादशी पर तिल का विशेष महत्व है. इस व्रत में तिल का छः तरीके से इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए इसे षटतिला एकादशी कहा जाता है. मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान के साथ पूजा करने से मोक्ष के द्वार खुलते हैं. ज्योतिष शास्त्रियों के अनुसार षटतिला एकादशी का व्रत करने से स्वर्ण-दान से मिलने वाले पुण्य के समान पुण्य की प्राप्ति होती है. यह भी पढ़ें: Horoscope Today 29 January 2024: जानें कैसा होगा आज का दिन और किस राशि की चमकेगी किस्मत

षट्तिला एकादशी व्रत की तिथि एवं मुहूर्त

माघ कृष्ण पक्ष की एकादशी प्रारंभः 05.24 PM (05 फरवरी 2024, सोमवार)

माघ कृष्ण पक्ष की एकादशी समाप्तः 04.07 PM (06 फरवरी 2024, सोमवार)

उदया तिथि के अनुसार 6 फरवरी 2024 को षट्तिला एकादशी मनाई जाएगी.

एकादशी पूजा विधि

एकादशी के सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-ध्यान करें. स्वच्छ वस्त्र धारण करें. संपूर्ण घर एवं विशेष रूप से मंदिर की सफाई करें. इसके बाद मंदिर में गंगाजल छिड़कें. एक छोटी सी चौकी पूजा स्थल के पास रखें. इस पर पीला वस्त्र बिछाएं. इस पर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें. धूप दीप प्रज्वलित करें, और निम्न मंत्र का जाप करें.

दन्ताभये चक्र दरो दधानं, कराग्रगस्वर्णघटं त्रिनेत्रम्।

धृताब्जया लिंगितमब्धिपुत्रया,लक्ष्मी गणेशं कनकाभमीडे

अब भगवान विष्णु के समक्ष तुलसी दल, कुमकुम, पीला फूल, पीला चंदन और भोग में पीले रंग की मिठाई और फल के साथ तिल-गुड़ के लड्डू चढ़ाएं. इसके बाद विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें और अंत में भगवान विष्णु की आरती उतारें. पूजा समाप्त करने के पश्चात प्रसाद का वितरण करें. अगले दिन स्नान-ध्यान के पश्चात प्रसाद की वितरण करें.

षटतिला एकादशी का महत्व

षटतिला एकादशी को माघ कृष्ण एकादशी एवं तिलदा एकादशी भी कहते हैं. षट्तिला एकादशी के दिन तिल का छ तरीकों से इस्तेमाल करते हैं. इस दिन तिल के जल से स्नान करते हैं, तिल का उबटन लगाती है, तिल से हवन करते हैं, तिल का भोजन में सेवन करते हैं, तिल से तर्पण करते हैं, और तिल का दान करते हैं.

मान्यता है कि जो श्रद्धालु षटतिला एकादशी के दिन तिल एवं गुड़ का दान करते हैं, उन्हें मोक्ष मिलता है. ऐसी भी मान्यता है कि षटतिला एकादशी के दिन पित्तरों का तिल-तर्पण करने से उन्हें शांति एवं सद्गति की प्राप्ति होती है

षट्तिला एकादशी की पौराणिक व्रत-कथा

प्राचीनकाल में एक ब्राह्मण की विधवा पत्नी थी, जो विष्णुजी की अनन्य भक्त थी. वह उनकी नियमित पूजा करती थी. एक बार वह विष्णुजी का आशीर्वाद पाने हेतु एक महीने तक उपवास किया. इससे उसका तन-मन शुद्ध एवं दिव्य हो गया. लेकिन उसने ब्राह्मण को भोजन नहीं खिलाया. ब्राह्मण-भोज का महत्व बताने हेतु षट्तिला एकादशी को ब्राह्मण रूप विष्णुजी महिला के पास गए, उससे भिक्षा मांगी. महिला मिट्टी ने एक ढेर लाकर ब्राह्मण को दे दिया.

कुछ दिनों बाद उसकी मृत्यु हो गई. वह बैकुंठधाम तो गई, मगर वहां उसे एक खाली झोपड़ी मिली. खाली झोपड़ी देख वह चिंतित हो गईं. उसने सोचा कि शुद्ध इरादों से विष्णुजी की पूजा के बावजूद उसे खाली झोपड़ी क्यों मिली? विष्णुजी महिला के पास पहुंचे और बताया कि उसने ब्राह्मण को भोजन नहीं कराया. दुखी महिला ने जब इसका समाधान पूछा, विष्णुजी ने उसे षटतिला एकादशी व्रत का सुझाव दिया. महिला ने नियमपूर्वक व्रत किया. उसकी पूजा से विष्णुजी प्रसन्न हुए. उन्होंने बताया कि शट्तिला एकादशी के दिन जो श्रद्धालु व्रत के बाद ब्राह्मणों को दान करेगा, उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी.