Shattila Ekadashi 2023 Messages in Hindi: धार्मिक नजरिए से माघ महीने का विशेष महत्व बताया जाता है. इस महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी को षट्तिला एकादशी (Shattila Ekadashi) के नाम से जाना जाता है. षट्तिला का अर्थ है तिल (Til) का 6 तरह से प्रयोग करना. ज्योतिष के जानकारों के मुताबिक, इस पावन तिथि पर तिल द्वारा किए गए छह प्रयोगों से जीवन में ग्रहों के कारण आ रही बाधाओं को शांत किया जा सकता है. इस दिन तिल स्नान, तिल का उबटल, तिल का हवन, तिल का तर्पण, तिल का भोजन और तिल का दान जैसे छह तरह से इसका प्रयोग किया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु को तिल का भोग अर्पित किया जाता है. मान्यता है कि इस दिन तिल का दान करने से स्वर्ग की प्राप्ति होती है. इसके अलावा श्रीहरि की कृपा से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त होता है. आज यानी 18 जनवरी 2023 को षट्तिला एकादशी मनाई जा रही है.
षट्तिला एकादशी के व्रत को निर्जल, फलाहार या जल पीकर रखा जा सकता है. निर्जल व्रत पूर्ण रूप से स्वस्थ व्यक्ति को ही रखना चाहिए, जबकि सामान्य लोगों को फलाहारी या जलीय व्रत रखने की सलाह दी जाती है. इसके साथ ही इस खास अवसर पर आप इन हिंदी मैसेजेस, वॉट्सऐप विशेज, फेसबुक ग्रीटिंग्स और कोट्स के जरिए प्रियजनों को शुभ षट्तिला एकादशी कह सकते हैं.
1- श्रीहरि विष्णु है जिनका नाम,
बैकुंठ है उनका धाम,
वो जगत के हैं पालनहार,
उन्हें शत-शत नमन है बार-बार.
षट्तिला एकादशी की शुभकामनाएं
2- शान्ताकारं भुजगशयनं पद्नानाभं सुरेशं।
विश्वधारं गगनसद्शं मेघवर्णं शुभाड्गमं।
लक्ष्मीकांत कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं।
वंदे विष्णु भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।
षट्तिला एकादशी की शुभकामनाएं
3- आपके परिवार में सुख, शांति और समृद्धि आए,
भगवान आपको यश और कीर्ति दें…
षट्तिला एकादशी की शुभकामनाएं
4- ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि।
तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥
षट्तिला एकादशी की शुभकामनाएं
5- ॐ नमो नारायण।
श्री मन नारायण नारायण हरि हरि।
षट्तिला एकादशी की शुभकामनाएं
गौरतलब है कि षट्तिला एकादशी के दिन गंध, पुष्प, धूप, दीप, पान और तुलसी से भगवान विष्णु की षोडशोपचार विधि से पूजा की जाती है. इस दिन उड़द और तिल मिश्रित खिचड़ी बनाकर श्रीहरि को भोग अर्पित किया जाता है. पूजन के दौरान तिल से 'ओम् नमो भगवते वासुदेवाय स्वाहा' के 108 मंत्रों से हवन करना चाहिए. रात्रि जागरण कर भजन-कीर्तन करना चाहिए और अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद अपने व्रत का पारण करना चाहिए.