Shattila Ekadashi 2024 Wishes in Hindi: हिंदू धर्म में माघ मास (Magh Maas) का विशेष महत्व बताया जाता है और इस महीने की कृष्ण पक्ष की एकादशी को षट्तिला एकादशी (Shattila Ekadashi) के नाम से जाना जाता है. जगत के पालनहार भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu) को एकादशी तिथि अत्यंत प्रिय है, इसलिए इस दिन भक्त व्रत रखकर विधि-विधान से श्रीहरि की उपासना करते हैं. उदया तिथि के अनुसार इस साल षट्तिला एकादशी 6 फरवरी 2024 (मंगलवार) को मनाई जा रही है. ऐसी मान्यता है कि षट्तिला एकादशी के दिन तिल (Til) द्वारा किए गए छह प्रयोगों से जीवन में आ रही ग्रह जनित बाधाओं को शांत किया जा सकता है. षट्तिला एकादशी के दिन तिल स्नान, तिल का उबटल, तिल का हवन, तिल का तर्पण, तिल का भोजन और तिल का दान जैसे छह तरह से इसका उपयोग किया जाता है. पूजन के दौरान श्रीहरि को तिल का भोग अर्पित किया जाता है और इस दिन तिल का दान करने से मृत्यु के बाद स्वर्गलोक में स्थान प्राप्त होता है, इसके साथ ही व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है.
षट्तिला एकादशी में तिल का छः तरीके से इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए इसे षटतिला एकादशी कहा जाता है. इस व्रत को करने से स्वर्ण दान के समान पुण्य फल प्राप्त होते हैं और श्रीहरि के पूजन से मोक्ष के द्वार खुलते हैं. षट्तिला एकादशी के इस शुभ अवसर पर आप इन भक्तिमय हिंदी विशेज, वॉट्सऐप मैसेजेस, फेसबुक ग्रीटिंग्स, कोट्स, एचडी इमेजेस के जरिए अपनों को शुभकामनाएं दे सकते हैं.
1- ॐ नमो नारायण।
श्री मन नारायण नारायण हरि हरि।
शुभ षट्तिला एकादशी
2- श्रीहरि विष्णु है जिनका नाम,
बैकुंठ है उनका धाम,
वो जगत के हैं पालनहार,
उन्हें शत-शत नमन है बार-बार.
शुभ षट्तिला एकादशी
3- ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि।
तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥
शुभ षट्तिला एकादशी
4- आपके परिवार में सुख, शांति और समृद्धि आए,
भगवान आपको यश और कीर्ति दें…
शुभ षट्तिला एकादशी
5- शान्ताकारं भुजगशयनं पद्नानाभं सुरेशं।
विश्वधारं गगनसद्शं मेघवर्णं शुभाड्गमं।
लक्ष्मीकांत कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यं।
वंदे विष्णु भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्।
शुभ षट्तिला एकादशी
षट्तिला एकादशी के व्रत को निर्जल, फलाहार या जल पीकर रखा जा सकता है. इस दिन व्रत रखने वाले भक्त गंध, पुष्प, धूप, दीप, पान, तिल और तुलसी से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं. इस दिन उड़द और तिल मिश्रित खिचड़ी बनाकर श्रीहरि को भोग के रूप में अर्पित किया जाता है. पूजन के दौरान तिल से 'ओम् नमो भगवते वासुदेवाय स्वाहा' के 108 मंत्रों से हवन करना चाहिए. रात्रि जागरण कर भजन-कीर्तन किया जाता है और अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को ब्राह्मणों को भोजन कराने और दक्षिण देने के बाद अपने व्रत का पारण किया जाता है.