Happy Raksha Bandhan 2020 Vanshinarayan Temple: हिंदू धर्म के महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) का पर्व. जी हां, रक्षाबंधन को भाई-बहन के प्यार और विश्वास का प्रतीक माना जाता है. अपने भाई की कलाई पर राखी बांधने के लिए बहनें साल भर इस दिन का इंतजार करती हैं. इस साल रक्षाबंधन का त्योहार 03 अगस्त को मनाया जा रहा है. प्रचलित मान्यताओं के अनुसार, यह रक्षा का पर्व होता है. यही वजह है कि इस दिन जब बहनें भाई की कलाई पर राखी बांधती हैं तो बदले में भाई जीवन भर उनकी रक्षा करने का वचन देता है. जिस तरह से बहनें पूरे साल इस एक दिन का इंतजार करती हैं, ठीक उसी तरह से देवभूमि उत्तराखंड (Uttarakhand) में स्थित भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के एक प्राचीन मंदिर के खुलने का भक्त पूरे साल इंतजार करते हैं और यह मंदिर रक्षाबंधन पर सिर्फ एक दिन के लिए खुलता है.
उत्तराखंड के बदरीनाथ क्षेत्र (Badrinath) के उर्गम घाटी में स्थित भगवान विष्णु के इस प्राचीन मंदिर का नाम श्री वंशीनारायण मंदिर (Vanshinarayan Temple) है. यह मंदिर साल के 364 दिन बंद रहता है और रक्षाबंधन पर सिर्फ एक दिन के लिए इस मंदिर के कपाट खुलते हैं. इस दिन भगवान की पूजा -अर्चना करने के बाद शाम को सूरज ढलने से पहले ही मंदिर के कपाट बंद कर दिए जाते हैं. चलिए जानते हैं आखिर यह मंदिर साल में सिर्फ रक्षाबंधन पर ही क्यों खुलता है और क्या है इससे जुड़ी मान्यता. यह भी पढ़ें: Raksha Bandhan 2019: क्या माता लक्ष्मी ने शुरू की थी रक्षाबंधन की परंपरा, जानें इस पर्व से जुड़ी रोचक पौराणिक कथाएं
बहुत प्राचीन है वंशीनारायण मंदिर
कहा जाता है कि बदरीनाथ के उर्गम घाटी में 13 हजार फीट की ऊंचाई पर मध्य हिमालय के बुग्याल क्षेत्र में स्थित श्री वंशीनारायण मंदिर का निर्माण पांडव काल में हुआ था. इस मंदिर तक पहुंचने के लिए उर्गम घाटी के लोगों को करीब सात किलोमीटर का रास्ता पैदल ही तय करना पड़ता है. साल में एक दिन खुलने वाले इस मंदिर में भगवान विष्णु के वंशीनारायण स्वरुप की पूजा की जाती है और रक्षाबंधन के दिन कपाट खुलने पर उर्गम घाटी की बेटियां भगवान विष्णु को राखी बांधती हैं.
इस मंदिर में भगवान विष्णु की चतुर्भुज प्रतिमा विराजमान है. मंदिर के प्रांगण में भगवान गणेश और वन देवियों की मूर्तियां स्थापित हैं. रक्षा बंधन के दिन इस मंदिर में भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है और भंडारे का आयोजन किया जाता है.
मंदिर से जुड़ी पौराणिक मान्यता
इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक मान्यता के अनुसार, देवऋषि नारद यहां साल के 364 दिन भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, इसलिए इस मंदिर के कपाट उस दौरान आम लोगों के लिए बंद रहते हैं. इस मंदिर में सिर्फ एक दिन मनुष्यों को पूजा करने का अधिकार मिलता है, इसलिए रक्षाबंधन के दिन इस मंदिर के कपाट खुलते हैं.
एक पौराणिक कथा के अनुसार, राजा बलि ने भगवान विष्णु से आग्रह किया था कि वे उनके द्वारपाल बनें. राजा बलि के आग्रह को स्वीकार करते हुए श्रीहरि पाताल लोक चले गए. कई दिनों तक भगवान विष्णु के दर्शन न होने पर माता लक्ष्मी काफी चिंतित हुई और नारद जी से उन्होंने विष्णु जी के बारे में पूछा. माता के पूछने पर नारद ने बताया कि वे पाताल लोक में राजा बलि के द्वारपाल बने हुए हैं. यह भी पढ़ें: Raksha Bandhan 2019: कई शुभ योगों के बीच बहनें अपने भाई को बांधेंगी राखी, जानें कब से कब तक है मुहूर्त
जब माता लक्ष्मी ने उन्हें वापस बुलाने का मार्ग पूछा तो नारद मुनि ने कहा कि वे श्रावण मास की पूर्णिमा को पाताल लोक जाकर राजा बलि की कलाई पर रक्षासूत्र बांध दें. रक्षासूत्र बांधने के बाद राजा बलि से श्रीहरि को वापस मांग लें. कहा जाता है कि माता लक्ष्मी को पाताल लोक का रास्ता पता नहीं था, इसलिए नारद मुनि श्रावण पूर्णिमा के दिन उनके साथ पाताल लोक चले गए. उनकी अनुपस्थिति में एक दिन कलगोठ गांव के पुजारी ने वंशीनारायण भगवान की पूजा की थी. कहा जाता है तब से रक्षाबंधन पर सिर्फ एक दिन के लिए इस मंदिर के कपाट आम भक्तों के लिए खोले जाते हैं और रक्षाबंधन पर लोग उनकी पूजा करते हैं.