Raksha Bandhan 2019: क्या माता लक्ष्मी ने शुरू की थी रक्षाबंधन की परंपरा, जानें इस पर्व से जुड़ी रोचक पौराणिक कथाएं
लक्ष्मी माता (Photo Credit: YouTube)

Happy Raksha Bandhan 2019: रक्षाबंधन (Raksha Bandhan) क्या है और यह कब शुरू हुआ? इसका कोई लिखित प्रमाण नहीं है, लेकिन सरल और सीधी भाषा में कहें तो रक्षाबंधन का मूल है रक्षासूत्र, जो आपको भावनात्मक रूप से मजबूत बनाता है. रक्षासूत्र (Raksha Sutra) बंधने के बाद आपके दायित्व बढ़ जाते हैं, लेकिन यह यक्ष प्रश्न आज तक अनुत्तरित है कि पहली बार रक्षासूत्र कब, किसने और किसे बांधा था? चूंकि यह हिंदुओं का सबसे प्राचीन पर्व है इसलिए इस प्रश्न की थाह में जाने के लिए हमें पौराणिक ग्रंथ खंगालने होंगे.

रक्षाबंधन के संदर्भ में हमारे पौराणिक ग्रंथों में कुछ पारंपरिक कथाएं पढ़ने को मिलती है. पहली भविष्य पुराण के अनुसार इंद्र और शचि की कथा और दूसरी श्रीमद्भागवत पुराण में वर्णित राक्षसराज बलि और वामन की. इसके अलावा भगवान श्रीकृष्ण ने भी अपनी मुंहबोली बहन द्रौपदी का चीर बढा कर राखी की लाज रखी थी. आइये जानें राखी के संदर्भ में घटनाक्रम क्या कहते हैं.

मां लक्ष्मी ने क्यों बांधी राखी दैत्यराज बलि को?

इसी विषय में एक कथा स्कंद पुराण, पद्म पुराण एवं श्रीमद्भागवत पुराण में भी उल्लेखित है. एक बार महाबली एवं महादानी राक्षसराज बलि ने दैत्य गुरू शुक्राचार्य के आदेश से महातप रूपी 110 यज्ञ शुरू किया. राजा बलि के इस यज्ञ से देवी-देवताओं के मन में यह भय बैठ गया कि अगर यज्ञ सम्पन्न हो गया तो राजा बलि त्रैलोक विजेता बन जायेगा. यह भी पढ़ें: Raksha Bandhan 2019: कई शुभ योगों के बीच बहनें अपने भाई को बांधेंगी राखी, जानें कब से कब तक है मुहूर्त

देवताओं की करुण पुकार सुनकर भगवान विष्णु अदिति के गर्भ से वामन रूप में अवतरित हुए. भगवान वामन ब्राह्मण के वेश में राजा बलि के पास पहुंचे. बलि ने वामन का खूब सेवा-सत्कार किया. चलते-चलते वामन से कहा, हे श्रेष्ठ ब्राह्मण कोई वर मांग लो. वामन ने उनसे तीन पग भूमि मांगी. घमंड में चूर बलि ने तुरंत तीन पग भूमि नापकर ले लेने का आदेश दे दिया. वामन रूपी विष्णु जी ने तीन पग में सब कुछ अपने नाम कर लिया. बलि के इस महादान से प्रसन्न होकर वामन ने विष्णु के विशाल स्वरूप का दर्शन देते हुए कहा कि जो वर मांगना हो मांग लो.

साक्षात विष्णु को सामने देखकर राजा बलि ने प्रणाम करते हुए कहा, -प्रभु आप पाताल लोक में मेरे साथ रहिये. विष्णु जी के सामने राजा बलि की बात मानने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था. माता लक्ष्मी को जब विष्णु जी के पाताल लोक में रहने की बात पता चली तो वे चिंतित हो उठीं. तब नारद मुनि ने मां लक्ष्मी से कहा, -आप राजा बलि को राखी भेजकर उसे भाई बना लीजिये. मां लक्ष्मी जी पाताल लोक गयीं और बलि की कलाई में राखी बांधकर उसे भाई बना लिया. बलि साक्षात मां लक्ष्मी का भाई बनकर बहुत प्रसन्न और गौरवान्वित हुआ. उसने लक्ष्मी जी से कहा, मैं धन्य हूं जो आपने मेरी कलाई पर राखी बांधकर मुझे भाई बनाया. बदले में आप जो भी उपहार मांग लीजिये.

उचित अवसर देखकर लक्ष्मी जी ने अपने पति विष्णु को साथ ले जाने की अनुमति मांगी. बलि ने लक्ष्मी जी को विष्णु जी को साथ ले जाने की सहर्ष अनुमति दे दी. कहा जाता है कि जिस दिन माता लक्ष्मी पाताल लोक पहुंचकर राजा बलि को राखी बांधी थी, वह दिन श्रावण मास की पूर्णिमा का था. तभी से इस दिन रक्षा बंधन मनाने की परंपरा शुरू हो गयी. इस तरह काल की गणना के अनुसार माना जा सकता है कि रक्षाबंधन की शुरूआत मां लक्ष्मी ने ही किया था.

इंद्राणी ने बांधी रक्षासूत्र पति इंद्र को!

भविष्य पुराण के अनुसार देवताओं एवं राक्षसों में जब युद्ध शुरू हुआ, तब राक्षस देवताओं की तुलना में ज्यादा ताकतवर साबित हो रहे थे. इंद्र ने देखा कि देवताओं की पराजय निश्चित है, तब वह घबराकर बृहस्पति देव के पास गये. बृहस्पति के सुझाव पर इंद्र की पत्नी शचि (इंद्राणी) ने मंत्र-शक्ति से तैयार रेशम का एक धागा पति इंद्र की कलाई में बांध दिया. मान्यता है कि वह दिन श्रावण पूर्णिमा का ही था. संयोग कहिये या मंत्र-शक्ति का प्रभाव देवतागण राक्षसों से हारी हुई बाजी जीत गये. कहा जाता है कि इसके बाद से ही पत्नियां युद्ध में जाते समय अपने पति की कलाई में रक्षा सूत्र बांधती हैं. यह भी पढ़ें: Raksha Bandhan 2019 Messages: इन शानदार Wallpapers, WhatsApp Stickers, Facebook Greetings, Wishes, GIF, Shayaris को भेजकर अपने भाई या बहन से कहें हैप्पी रक्षाबंधन

जब कृष्ण ने बहन द्रौपदी की राखी की लाज रखी

रक्षाबंधन के संदर्भ में यह कथा भी प्रचलित है. महाभारत काल में एक बार श्रीकृष्ण की उंगली में उनके सुदर्शन चक्र से चोट लग गई. श्रीकृष्ण की उंगली से रक्त बहता देख द्रौपदी ने अपनी साड़ी को फाड़कर श्रीकृष्ण की उंगली में बांध दिया. इस घटना से प्रभावित होकर श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को अपनी बहन बना लिया, और भविष्य में किसी भी तरह का संकट आने पर द्रौपदी की रक्षा का वचन दिया. जुए में जीतने के बाद जब दुशाःसन द्रौपदी का चीर-हरण करना शुरू किया, तब द्रौपदी ने रक्षा के लिए श्रीकृष्ण को याद किया. कहा जाता है कि बहन की चित्कार सुनकर श्रीकृष्ण सारा कार्य छोड़कर द्रौपदी की मदद के लिए पहुंच गये. इस प्रकार कहा जा सकता है कि महाभारत काल से ही भाई-बहन के पर्व रक्षाबंधन की परंपरा चली आ रही है.