Mokshada Ekadashi 2020: सनातन धर्म में हर एकादशी का विशेष महत्व बताया गया है. मनुष्य विशेष से जाने-अंजाने कोई पाप हो जाता है और वह अपने पापों के लिए प्रायश्चित करना चाहता है तो उसे मोक्षदा एकादशी का उपवास रखना चाहिए. अमूमन एक वर्ष में 24 एकादशियां होती हैं, अधिमास में 26 एकादशियां पड़ती हैं. हर एकादशी की तिथि विभिन्न कारणों से महत्वपूर्ण होती हैं. लेकिन कुछ एकादशियां बहुत खास होती हैं, इन्हीं में एक है मोक्षदा एकादशी. मार्गशीर्ष मास शुक्लपक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस एकादशी व्रत की खास बात यह भी है कि इसी दिन भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था. हिंदी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष मोक्षदा एकादशी 25 दिसंबर को पड़ रहा है. आइये जानते हैं मोक्षदा एकादशी व्रत का महत्व, पूजा-विधि, शुभ मुहूर्त एवं इसकी पौराणिक कथा.
मोक्षदा एकादशी का महत्व
विष्णु पुराण में मोक्षदा एकादशी को बेहद फलदायी माना गया है. मान्यता है कि इस दिन तुलसी की मंजरी, धूप-दीप नैवेद्य आदि से भगवान दामोदर का पूजन करने, उपवास रखने एवं रात्रि जागरण कर श्रीहरि का कीर्तन करने से महापाप भी नष्ट हो जाते हैं. यह एकादशी मोक्षदायी तो है ही साथ ही इसे समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति करनेवाला भी माना जाता है. ज्योतिषाचार्य के अनुसार मोक्षदा एकादशी व्रत-कथा पढ़ने-सुनने मात्र से ही वाजपेय यज्ञ के समान प्रभावशाली पुण्य की प्राप्ति होती है.
मोक्षदा एकादशी की पूजा विधि
मोक्षदा एकादशी के व्रती को दशमी के दिन एक समय ही भोजन करें. अगली सुबह सूर्योदय से पूर्व स्नान-ध्यान करने के बाद एकादशी व्रत का संकल्प लें. इसके पश्चात घर के मंदिर में और उसके चारों ओर गंगाजल छिड़कें और भगवान विष्णु के सामने शुद्ध देशी घी का दीप एवं धूप जलाने के पश्चात भगवान के मस्तक पर रोली का तिलक लगाकर अक्षत एवं लाल पुष्प अर्पित करें. श्रीहरि का मंत्र 'ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय' एवं 'ऊँ ब्रह्म वृहस्पताय नमः' का जाप करते हुए श्रीहरि का ध्यान करें और जीवन में जाने-अनजान हुई गलतियों के लिए हाथ जोड़कर प्रायश्चित करने का निवेदन करें. भोग में दूध से बने मिष्ठान एवं मौसमी फल अर्पित कर श्रीहरि एवं माता लक्ष्मी की आरती उतारें. इसके पश्चात संध्याकाल के समय श्रीहरि की सांध्य आरती उतारें. संभव हो तो रात्रि जागरण कर श्रीहरि का कीर्तन करें. अगले दिन प्रातःकाल शुभ मुहूर्त पर स्नान-ध्यान कर ब्राह्मण को अन्नदान कर पारण करें.
एकादशी व्रत का मुहूर्त – (25 दिसंबर 2020)
एकादशी प्रारंभः रात्रि 11.17 बजे से (24 दिसंबर 2020)
एकादशी समाप्तः रात्रि 01.54 बजे तक (26 दिसंबर 2020)
पारण का समयः प्रातः 08.30 से दिन 09.16 बजे तक (26 दिसंबर 2020)
पौराणिक कथा
एक समय गोकुल नगर (Gokul) पर बड़े धर्म-कर्म वाले राजा वैखानस का राज था. राजा-प्रजा सभी सुखी थे. एक रात राजा ने स्वप्न में देखा कि उनके मृत पिता नर्क में कष्ट भोग रहे हैं. उनकी नींद टूट गयी. पिता को कष्ट में देखकर वे चिंतित हो गये. प्रात:काल होते ही उन्होंने ब्राह्मणों को बुलवाकर स्वप्न की बात बताई. सारी बातें सुनने के बाद ब्राह्मणों को उनके मृत पिता के कष्टों का कोई समाधान नहीं मिला. उन्होंने राजा से कहा कि वे सिद्धपुरुष पर्वत नामक मुनि से मिलें. वही आपके मृत पिता का उद्धार कर सकते हैं. राजा मुनि के आश्रम में पहुंचे. राजा की बात सुनकर मुनि किसी संभावित अनिष्ठ को लेकर सोच में पड़ गये. फिर उन्होंने अपनी योग दृष्टि से राजा के मृत पिता को नर्क में कष्ट भोगते देखा. मुनि ने कहा, -हे राजन, आपके पिता अपने पूर्वजन्म में किये पापकर्मों की सजा काट रहे हैं. वस्तुतः उन्होंने एक सौतेली स्त्री के कारण दूसरी स्त्री को सम्मान नहीं देकर रतिदान का निषेध किया है. राजा द्वारा पिता के कष्टों का निदान पूछने पर पर्वत मुनि ने बताया कि यदि आप मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष एकादशी को विधिनुसार व्रत एवं दान-पुण्य करें तो आपके पिता को मोक्ष मिल सकता है. राजा द्वारा ऐसा करते ही आकाश से मंगल-गान होने लगा. राजा ने देखा कि उसके पिता बैकुंठ की ओर जा रहे हैं. पुत्र को देख पिता ने कहा, -हे पुत्र मैं कुछ समय स्वर्ग का सुख भोगकर मोक्ष को प्राप्त हो जाऊंगा. यह सब तुम्हारे उपवास से संभव हुआ है. तुमने मुझे नारकीय जीवन से मुक्ति दिलाकर पुत्र होने का धर्म निभाया है. तुम्हारा कल्याण हो!
राजा द्वारा मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष की एकादशी का व्रत रखने से उसके पिता के सारे पाप खत्म हो गये, और उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हुई. इसीलिए इस एकादशी को मोक्षदा एकादशी कहा जाता है. चूंकि इसी दिन श्रीकृष्ण ने गीता का उपदेश भी दिया था, इसलिए यह एकादशी और भी शुभ एवं फलदायी हो जाती है.
-राजेश श्रीवास्तव