Cheti Chand 2020: भारत विभिन्नता में एकता का प्रतीक है. यहां विभिन्न धर्म, जाति एवं वर्ग के लोग के निवास करते हैं, सबकी अपनी संस्कृति, अपनी तहजीब है, इस वजह से इसकी छटा इंद्रधनुष की तरह बहुरंगी नजर आती है. यहां किस्म-किस्म के पर्व परंपरागत तरीके से मनाये जाते हैं. इसी में एक है सिंधी समुदाय का पवित्र पर्व झुलेलाल जयंती. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान झुलेलाल जल के देवता वरुण के प्रतिरूप हैं. आइये जानें भगवान झुलेलाल का उद्भव कब हुआ और किस मुहूर्त पर किस तरह से सेलीब्रेट करते हैं यह पर्व.
कब है झुलेलाल जयंती समारोह
झुलेलाल जयंती सिंधी समाज का महत्वपूर्ण त्योहार है, इसे भगवान झुलेलाल के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है. कहीं-कहीं इसे ‘चेटी चंड’ के नाम से भी जाना जाता है. हिंदी पंचांग के अनुसार झुलेलाल जी का जन्म चैत्र मास के शुक्लपक्ष की द्वितिया तिथि को हुआ था, और अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस बार 26 मार्च 2020 को झुलेलाल जयंती मनायी जायेगी.
इस पर्व के सेलीब्रेशन की पृष्ठभूमि के आधार मान्यता है कि किसी समय सिंधी समाज के लोग ज्यादातर जलमार्ग से यात्रा करते थे. अपनी यात्रा को सुरक्षित और सफल बनाने के लिए जल-देवता झूलेलाल जी से प्रार्थना करते थे, और यात्रा सफल होने पर झूलेलालजी के भक्त अपनी मन्नतें पूरी करते थे. गौरतलब है कि सिंधी समुदाय इसी दिन को नववर्ष के रूप में भी सेलीब्रेट करते हैं.
कौन हैं झुलेलाल
प्राचीनकाल में सिंध प्रदेश में मिरक शाह नामक एक क्रूर राजा राज्य करता था. राजा के अत्याचार से प्रजा इतनी पीड़ित थी कि एक दिन सभी ने ईश्वर से प्रार्थना की कि वे पृथ्वी पर अवतरित हों और उऩ्हें इस अत्याचारी राजा के अत्याचार से मुक्ति दिलाएं. प्रजा ने सिंधु नदी के किनारे ईश्वर का आह्वान किया तो मत्स्य पर विराजमान जलदेवता उदेरोलाल जलपति के रूप में प्रकट हुए. इसके साथ ही आकाशवाणी हुई कि उन्हें कष्टों से उबारने के लिये देवता नसरपुर में रतनराय के घर माता देवकी की कोख से जन्म लेंगें और प्रजा की सारी मनोकामनाएं पूरी करेंगे.
संवत 1107 में चैत्र शुक्लपक्ष द्वितीया को नसरपुर के ठाकुर रतनराय के घर माता देवकी ने एक बच्चे को जन्म दिया. उसका नाम उदयचंद रखा गया. यह खबर जब मिरक शाह तक पहुंची कि उसका अंत करनेवाला जन्म ले चुका है, तो उसने कंस की तरह उदयचंद की हत्या के तमाम षड़यंत्र रचने शुरू किये. कहते हैं कि उदयचंद ने भी भगवान श्रीकृष्ण की तरह लीलाएं रचीं. परिणाम यह हुआ कि एक दिन मिरक शाह को घुटनों के बल चलकर झुलेलाल जी की शरण में आकर क्षमा मांगनी पड़ी. आगे चलकर झूलेलाल एक संत के रूप में प्रतिष्ठित हुए, जिनकी पूजा-अर्चना सिंधी समाज अपने ईष्ट के रूप में करता है. सिंधी समाज के अनुसार झूलेलाल का अवतरण धर्म की रक्षा के लिए हुआ था.
झूलेलाल जयंतीः कैसे करते हैं सेलीब्रेट
चैत्र मास में चंद्रदर्शन के दिन देश के विभिन्न क्षेत्रों में सिंधी समाज द्वारा भगवान झूलेलाल की जयंती मनाई जाती है. इस दिन लकड़ी निर्मित मंदिर में लोटी में जल भरकर स्थापित करते हैं. इस कलश पर एक दीप प्रज्जवलित करते हुए भगवान झुलेलाल का स्तुतिगान करते हैं. इसे बहिराणा साहब कहते हैं. पूजा के बाद सिंधी समाज का बहुलोकप्रिय नृत्य छेज की प्रस्तुति की जाती है. इस अवसर पर जगह-जगह सांस्कृतिक कार्यक्रम और जूलूस आयोजन किये जाते हैें. पूजा पूरी होने के पश्चात प्रसाद के तौर पर उबले काले चने व मीठा भात सबको वितरित किया जाता है.
यह पर्व गुडी पड़वा एवं उगाडी के अगले ही दिन सेलीब्रेट किया जाता है. दिलचस्प बात यह है कि इस दिन चांद कई दिनों बाद पूरा नज़र आता है. इस दिन सभी लोग जल-देव की आराधना भी करते हैं. पंजाब के सिंध प्रांत में आज भी यह पर्व पूरी धूमधाम के साथ मनाया जाता है.
शुभ मुहूर्तः झुलेलाल जयंती- 26 मार्च (गुरुवार) 2020
सायंकाल 06.35 बजे से सायंकाल 07.24 बजे तक