Holi 2021: क्यों खास है इस वर्ष होलिकोत्सव? जानें किन-किन योगों के बीच होगा होलिका-दहन!
होली 2021 (Photo Credits: File Image)

हमेशा की तरह इस वर्ष भी फाल्गुन शुक्लपक्ष की पूर्णिमा के दिन होलिका-दहन होगा. इस वर्ष होलिका-दहन पर कई दुर्लभ योग के संयोग बन रहे हैं, जो पर्व के साथ-साथ सांसारिक एवं आध्यात्मिक रूप से मंगलकारी साबित हो सकते हैं, इससे दो दिवसीय होली का यह पर्व बहुत खास हो जाएगा. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 28 मार्च (रविवार) को होलिका दहन एवं 29 मार्च (सोमवार) को रंगों की होली (धुलेंडी) मनाई जाएगी. आइए जानें ज्योतिषाचार्य रवींद्र पाण्डेय के अनुसार किन-किन दुर्लभ योगों के बीच हम मनाने जा रहे हैं, होली का यह महत्वपूर्ण पर्व. यह भी पढ़ें: Holi 2021 Recipes: गुझिया से लेकर ठंडाई तक, घर पर ऐसे बनाएं ये 5 जायकेदार और सेहतमंद पकवान (Watch Tutorial Videos)

प्रदोषकाल में करें होलिका-दहन!

हिंदू पंचांग के अनुसार 28 मार्च को अपराह्न 01.54 बजे भद्रा समाप्त हो जाएगा. इसके पश्चात प्रदोष काल शुरु हो जाएगा, इस काल में होलिका-दहन करने से अभीष्ठ फलों की प्राप्ति होती है. इस वर्ष 2 घंटे 21 मिनट तक ही होलिका दहन का शुभ मुहूर्त है, यानी सायंकाल 06.20 बजे से रात 08:41 बजे के बीच होलिका-दहन सम्पन्न हो जानी चाहिए. इस समय वृद्धि योग होने के कारण यह योग सभी शुभ एवं मंगल कार्यों में वृद्धि प्रदान करेगा.

होलिका दहन की रात दुर्लभ ग्रहों का योग!

इस वर्ष 28 मार्च की सुबह से अगले दिन 29 मार्च की प्रातःकाल सूर्योदय तक सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है, जबकि 28 मार्च की शाम 05.36 बजे से अमृत सिद्धि योग भी निर्मित हो रहा है. इसी दरम्यान होलिका-दहन की रात गुरु और शनि एक ही राशि में मौजूद रहेंगे. ऐसा संयोग सैकड़ों सालों के बाद आने से दुर्लभ हो जाता है. इसके साथ ही होलिका दहन की रात इस बार शुक्र अपनी उच्च राशि में होंगे और सूर्य मित्र राशि में. ग्रहों का यह संयोग भी शुभकारी माना जा रहा है. इन तमाम योगों मेंहो लिका पूजन एवं होली की रीति-रिवाजों को निभाना शुभकारी होगा. इस दिन लोग अपने घरों एवं कंपनियों में शुभ कार्य की शुरुआत कर सकते हैं.

होलिका दहन से पूर्व का पूजा-विधान:

होलिका दहन की तैयारियां माघी पूर्णिमा से शुरू हो जाती है. इस दिन रेड़ी की एक टहनी होलिका दहन वाले स्थान पर गाड़ दिया जाता है. होलिका दहन के दिन गाय के गोबर से बने उपले एवं सूखी लकड़ियों का ढेर सजाते हैं. गौरतलब है कि होलिका दहन के लिए नीम, पीपल, बड़ एवं आंवले के वृक्षों की टहनियां नहीं रखी जाती हैं, क्योंकि धार्मिक दृष्टि से इन पेड़ों पर किसी न किसी देवता का वास होता है.

हिंदू शास्त्रों के अनुसार होलिका दहन प्रदोष काल (सूर्यास्त के बाद शुरू होने वाला समय) में पूर्णिमा तिथि के प्रबल होने पर ही किया जाना चाहिए. होलिका में अग्नि प्रज्जवलित करने से पूर्व उसका विधिवत पूजा करना चाहिए. ऐसा करने से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है. नकारात्मक शक्तियां घर से दूर रहती हैं. होलिका की पूजा के लिए मुंह पूर्व या उत्तर की ओर मुख करके बैठना चाहिए. पूजा की थाली में रोली, पुष्प, माला, नारियल, कच्चा सूत, साबूत हल्दी, मूंग, गुलाल और पांच तरह के अनाज, गेहूं की बालियां व एक लोटा जल होना चाहिए. अब पूरे परिवार को होलिका के चारों ओर परिक्रमा करते हुए कच्चा सूत लपेटते हैं. इसके पश्चात होलिका को जल का अर्घ्य देकर सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में इसमें अग्नि प्रज्जवलित करें. अगले दिन प्रातःकाल होलिका के राख का तिलक लगाने के पश्चात ही रंगों की होली खेली जाती है.