Good Friday 2020: एक संत कैसे बने ईश्वर? जानें शोक मनानेवाले फ्रायडे को क्यों कहते हैं ‘गुड फ्रायडे’
गुड फ्राइडे 2020 (Photo Credits: File Image)

 गुड फ्रायडे ईसाई समुदाय का पर्व हैदरअसल ईसाई लोग इस दिन को शोक दिवस के रूप में मनाते हैंक्योंकि मान्यता है कि इसी दिन प्रभु यीशु मसीह को खूब शारीरिक प्रताड़ना देने के बाद इसी दिन उन्हें सूली पर चढ़ा दिया गया थागुड फ्राइडे को होली डे’, ‘ब्लैक डे’, और ग्रेट फ्राइडे आदि के नाम से भी जाना जाता है. आज यानी 10 अप्रैल को संपूर्ण देश में यह पर्व परंपरागत तरीके से मनाया जा रहा है. आइये जानें इस पर्व के पीछे की कहानी और ईसाई समुदाय इसे किस तरह से मनाता है.

ईसा ने दिया मानवता का संदेश

ईसा एक संत थे. यरुसलम के गैलिली प्रदेश में वे लोगों को मानवता, एकता और अहिंसा के रास्ते पर चलते हुए अपने कर्म करते रहने का संदेश दे रहे थे. वे जहां भी निवास करते लोगों को इसी तरह का संदेश देते थे. उनके संदेशों में इतनी गूढ़ता और दिव्यता होती थी कि लोगों ने उनमें ईश्वर को महसूस करना शुरू कर दिया. ईसा की बढ़ती लोकप्रियता यहुदियों के कुछ धर्म गुरुओं को रास नहीं आ रहा था. उन्हें लगता था कि अगर ईसा की लोकप्रियता इस तरह बढती रही तो उनकी धर्म गुरु की प्रतिष्ठा एक दिन समाप्त हो जायेगी. क्योंकि वे धार्मिक अंधविश्वास फैलाकर जनता को गुमराह करते थे. जनता ईसा के सत्य और अहिंसा के मार्ग पर विश्वास करने लगी थी. तब ये कथित धर्म गुरु उस अवसर को तलाशने लगे कि उन्हें कैसे सबक सिखाया जाये कि जनता उनके खिलाफ हो जाये.

सूली पर चढ़ाए गए थे प्रभु यीशु

 कथित धर्म गुरुओं ने संत ईसा के खिलाफ षड़यंत्र रचते हुए रोम के शासक पिलातुस से उनकी शिकायत की. उनसे कहा कि ईसा जनता को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं, वह पापी खुद को खुदा का पुत्र बताते हुए जनता के साथ छल कर रहा है. धर्म गुरुओं की बातों पर विश्वास करते हुए शासक पिलातुस ने ईसा पर पर राजद्रोह का आरोप लगाते हुए उन्हें शारीरिक प्रताड़ना और क्रूज पर लटका कर मृत्यु-दण्ड की सजा सुनाई. इसके बाद सैनिकों ने ईसा को कैद कर लिया और उन पर कोड़े बरसाते हुए कांटों का ताज पहनाने के बाद उन्हें सूली पर लटका दिया. बताया जाता है कि जिस जगह ईसा को सूली पर चढ़ाया गया था, उसका नाम गोलगोथा है.

क्यों कहते है गुड फ्रायडे

ईसाई समाज गुड फ्रायडे को शोक के दिन के रूप में मनाता है, क्योंकि इसी दिन ईसा को सूली पर चढ़ाया गया था. लेकिन हैरानी इस बात को लेकर होती है कि शोक के इस फ्रायडे को गुड फ्रायडे क्यों कहा जाता है. वस्तुतः ईसाई समाज के अनुसार इस दिन यीशु ने मानव समाज के लिए बलिदान देकर निःस्वार्थ प्रेम का उदाहरण पेश किया था. तमाम  विरोध और यातनाएं सहते हुए यीशु ने अपने प्राण त्यागे थे.

इस बलिदान के लिए कृतज्ञता व्यक्त करते हुए यीशु के कई अनुयायी 40 दिन तक उपवास रखते हैं तो कोई इस शुक्रवार को ही व्रत रखकर प्रार्थना करते हैं. प्रभु यीशु के वचनों को अमल करने का दिन है गुड फ्रायडे. उनके अनुयायियों का मानना है कि इस दिन का महत्व प्रभु यीशु को दी गई यातनाओं को याद करने और उनके वचनों पर अमल करने का दिन है, जो उनका मार्गदर्शन करता है. इसीलिए वे इसे सामान्य फ्रायडे के बजाये गुड फ्रायडे के रूप में मनाते हैं.

क्या सूली पर ईसा की मौत हो गयी थी?

प्रत्यक्ष रूप से संत ईसा को सूली पर देखने के बाद उनके अनुयायी दुःखी हो गये थे. क्योंकि उन्हें लगा कि उन्होंने ईश्वर-पुत्र ईसा को खो दिया है. लेकिन रूसी स्कॉलर निकोलाई नोटोविच ने अपनी पुस्तक द अननोन लाईफ ऑफ जीसस क्राइस्ट में इस बात का खुलासा करके लोगों को चौंका दिया कि सूली पर चढ़ाए जाने के बाद भी ईसा जीवित थे.

जीसस क्राइस्ट (ईसा) का भारत में पनाह लेना

सूली पर चढ़ाए जाने के तीसरे वे अपने परिवार और मां मैरी के साथ तिब्बत के रास्ते भारत आ गए. यहां श्रीनगर के पुराने इलाके में उन्होंने अपना निवास बनाया. माना जाता है कि इसके बाद 80 वर्ष तक ईसा यानी जीसस क्राइस्ट की मौत हुई. श्रीनगर के रोजबाल बिल्डिंग में आज भी उनका मकबरा मौजूद बताया जाता है.

नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.