Parents' Day 2019: हर साल 1 जून को वैश्विक अभिभावक दिवस (Global Day of Parents 2019) मनाया जाता है, जो दुनिया भर के माता-पिता को समर्पित होता है. किसी ने सच कहा है कि बच्चे (Children) गीली मिट्टी के समान होते हैं, उसे जिस रूप में ढालेंगे, वे वैसा ही व्यक्तित्व पायेंगे. मासूम बच्चे फूलों की तरह कोमल और समंदर की लहरों की तरह चंचल होते हैं. उनका मन किसी ओर नहीं रहता, हर पल कुछ अलग करते हैं और कुछ नयी चीज की ओर आकर्षित होते हैं. इसमें कुछ अच्छी बातें होती हैं तो कुछ बुरी भी. ऐसे में माता-पिता (Parents) की जिम्मेदारी होती है कि उन्हें अच्छे-बुरे की पहचान बताएं, उन्हें प्यार से समझाएं कि अच्छा करोगे तो अच्छा बनोगे, संसार में तुम्हारा नाम होगा.
अक्सर देखा जाता है कि बच्चे नकारात्मक चीजों अथवा बातों की ओर आकर्षित होते हैं. वे वही करते हैं जो देखते हैं. उन्हें इस बात का ज्ञान नहीं रहता कि वह जो कर रहे हैं वह उनके लिए कितना अच्छा है या कितना बुरा. यह माता-पिता की जिम्मेदारी होती है कि वह अपने बच्चों की सही ढंग से परवरिश करें. एक जिम्मेदार माता पिता का कर्तव्य निभाएं. ध्यान रहे बच्चा बड़ा होकर अच्छा कार्य करेगा तो इसका सुफल माता-पिता को ही मिलेगा. वे आदर्श माता-पिता कहलाएंगे.
सच पूछिये तो बच्चे की पहली पाठशाला उसका घर होता है और माता-पिता उसके गुरु. माता-पिता जैसा करते हैं, बच्चा वैसा ही सीखता है, और व्यवहार करता है. यदि माता पिता कुछ गलत करते हैं तो बच्चा भी सहज व्यवहार से वैसा ही कुछ करने की कोशिश करता है. यही बात आगे चलकर बच्चे के साथ-साथ माता पिता के लिए भी घातक साबित होती है. क्योंकि बाद में गुंजाइश की कोई जगह नहीं रह जाती
रखें बच्चे पर नजर
अमूमन माता-पिता इस बात को गंभीरता से नहीं लेते कि उनका बच्चा कहां खेलता-कूदता है, कैसे लोगों के साथ वक्त गुजारता है. पूरे दिन क्या करता है. माता पिता की यही उपेक्षा बच्चों को लगातार गलत रास्ते पर लेती जाती है. ध्यान रहे बच्चों के खाने पीने पर ध्यान देने से ज्यादा जरूरी है उनके साथ कुछ वक्त गुजारने की, उन्हें प्यार करने की, उन पर अपनत्व जताने की. यह बात बच्चों को उनकी सुरक्षा कवच का एहसास कराती है, वे स्वयं को सुरक्षित महसूस करते हैं.
महत्वपूर्ण है माता-पिता के आपसी रिश्ते
माता पिता ही बच्चों की सच्ची और असली खुशी होते हैं. उनका आपसी संबंध और मधुर रिश्ते बच्चों को सफलता के शिखर तक पहुंचाता है. जबकि उनके बीच के तकरार, तनातनी, लड़ाई-झगड़ा बच्चों को अमानवीय बना सकता है. अभिनेत्री काजोल ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि उनके माता-पिता के तकरार पूर्ण रिश्तों की वजह से ही उनका ज्यादा वक्त पंचगनी के बोर्डिंग स्कूल में बीता, उन्हें माता-पिता के प्यार को उन्होंने अपने ससुराल में महसूस किया.
व्यस्तता के बीच भी बच्चे पर रखें ध्यान
इसे विडंबना कह लें या समय की मांग की आधुनिक समाज में माता-पिता को घर के साथ-साथ बाहर की दुनिया में भी व्यस्त होना पड़ता है. ऐसी स्थिति में बच्चे अक्सर उपेक्षित हो जाते हैं. इसका उदाहरण अभिनेता संजय दत्त से बेहतर और कोई नहीं हो सकता, जो माता-पिता की फिल्मी गतिविधियों में व्यस्त होने के कारण अकेलेपन का शिकार हुए और गलत सोहबत में ड्रग्स के शिकार हो गये. इसलिए समृद्धिशाली जीवन बिताने से ज्यादा जरूरी है कि बच्चे पर भी ध्यान दिया जाये, वरना ऐसा पैसा किस काम जो आपके घर की सुख शांति छीन ले.
अपना भविष्य चुनने के लिए दें बच्चों को स्वतंत्रता
सही समय पर सही शिक्षा बच्चों के विकास का मार्ग प्रशस्त करती है. बहुत से माता-पिता में यह भी कमजोरी होती है कि वह बच्चों को परंपरागत तरीके से अपने पैतृक व्यवसाय की जाने के लिए विवश करते हैं. उसपर अपनी तरह डॉक्टर या इंजीनियर बनाने का दबाव डालते हैं. उन्हें इस बात की किंचित परवाह नहीं रहती कि बच्चा खुद क्या करना या बनना चाहता है. इस दुविधा में अकसर बच्चे का भविष्य अधर में लटक कर रह जाता है. वह दिशाविहीन होकर कुछ भी करने के लिए विवश हो जाता है. यह भी पढ़ें: International Day of Families 2019: फैमिली है तो सब कुछ है, इन छोटी-छोटी बातों से बनाएं परिवार के साथ अपना एक मजबूत रिश्ता
बच्चों को प्यार से समझाएं
बच्चे से अगर कोई गलती हो जाये, स्कूल से उसकी शिकायत आये, उसका रिजल्ट प्रतिशत कम आए तो उसे डांटने या मारने के बजाय उसे प्यार से समझाएं कि उससे ऐसा क्यों हुआ होगा, उसे प्रेरित करें कि अगर वह ऐसा करेगा तो उसके लिए अच्छा होगा, वह अच्छा बच्चा बनेगा, अच्छे नंबर से पास होगा, उसके टीचर्स उसकी प्रशंसा करेंगे, उसका भविष्य उज्जवल होगा. माता पिता का यह मार्ग दर्शन ही बच्चों के भविष्य को सुखमय बनाता है.
किशोर होते बच्चों के प्रति माता-पिता का दायित्व
किशोर बच्चों को सही दिशा-दशा देना किसी भी माता-पिता के लिए सबसे बड़ी चुनौती होती है. क्योंकि युवा वर्ग की मानसिकता अकसर माता-पिता की सोच के विपरीत होती है. उन्हें लगता है कि उनके माता-पिता पुराने खयालों वाले हैं. और खुद को मॉर्डन जीवन जीते देखना चाहता है, क्योंकि वह ऐसे ही बच्चों के बीच रहता है. हो सकता है कि उसके विचार सही हों. ऐसे में माता-पिता को दोस्त बनकर उससे व्यवहार करना चाहिए. उसकी मंशा को समझना चाहिए.
अगर उसकी सोच में कोई निगेटिविटी नहीं है तो उसे हर तरह का सहयोग देना चाहिए. अगर समय रहते माता-पिता बच्चों को उनके नैतिक मूल्यों, अनुशासन, शिष्टाचार, संस्कार से परिचित कराते जाएं तो बच्चा उसे ही बेहतर समझेगा और उन्हीं रास्तों पर चलने की कोशिश करेगा. याद रहे बच्चे के उज्जवल भविष्य में ही माता-पिता की सफलता निहित होती है.