Ganpati Visarjan 2020: सनातन धर्म में अनंत चतुर्दशी (Anant Chaturdashi) का विशेष महत्व बताया गया है. इस दिन एक हो जहां समस्त हिंदू समाज श्रीहरि का व्रत एवं विशेष पूजा-अर्चना करता है, वहीं इसी दिन गणेशोत्सव (Ganeshotsav) का ग्यारहवां दिन होने के कारण गणपति बप्पा (Ganpati Bappa) को अश्रुपूरित विदाई भी दी जाती है. अनंत फल देने वाली इस तिथि विशेष को अनंत चौदस (Anant Chaudas) के नाम से भी जाना जाता है. भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी के दिन अनंत चतुर्दशी मनायी जाती है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष यह तिथि 1 सितंबर 2020 को (आज) पड़ रही है. हांलाकि इस वर्ष कोरोनावायरस के संक्रमण को देखते हुए गणपति की बड़ी प्रतिमाओं की स्थापना कम ही हुई, लेकिन जहां हुई है, वहां पूरी विधि-परंपरा के साथ प्रतिमा का विसर्जन किया जायेगा. आखिर क्यों किया जाता है गणपति की प्रतिमा का विसर्जन? किस मुहूर्त पर कैसे करें बप्पा की विदाई?
गणेश चतुर्थी से शुरू अगले दस दिनों तक महाराष्ट्र ही नहीं बल्कि पूरे हिंदुस्तान में गणपति बप्पा की धूम रहती है. हर तरफ गणपति बप्पा मोरया मंगल मूर्ति मोरया के जयकारे सुनाई देते हैं. 11 वें दिन यानी अनंत चतुर्दशी के दिन शुभ मुहूर्त पर गणेश भक्त गाजे-बाजे की धुनों पर नाचते-थिरकते बप्पा का जुलूस निकालते हैं. ज्यों-ज्यों प्रतिमा नदी अथवा सरोवर तक पहुंचती है- 'गणपति बप्पा मोरया, अगले बरस तू जल्दी आ' का नारा लगाने वाले गणेश भक्तों की आंखें नम होने लगती हैं, फिर उसी अश्रुपूरित नेत्रों के साथ बप्पा को जल में प्रवाहित कर दिया जाता है.
क्यों करते हैं विसर्जन?
संस्कृत में विसर्जन का अर्थ होता है पानी में विलीन होना. घर में पूजा के लिए लाई गई प्रतिमा को जल में विसर्जित करके उन्हें सम्मान दिया जाता है. गणेश-विसर्जन हमें यही संदेश देता है कि मिट्टी से जन्में शरीर को एक दिन मिट्टी में ही मिल जाना है. भक्तों के सामने मूर्त रूप में आने के लिए गणेश जी को मिट्टी का सहारा लेना पड़ता है और मिट्टी प्रकृति की देन है, इसलिए जब गणेश जी की प्रतिमा को विसर्जित किया जाता है तो वह पानी में विलीन होकर पुनः मिट्टी में मिल जाता है. इसका आध्यात्मिक अर्थ है जो लिया है उसे लौटाना ही पड़ेगा, खाली हाथ आए थे और खाली हाथ ही जाना पड़ेगा. यही सृष्टि का विधान है. यह भी पढ़ें: Anant Chaturdashi 2020 Wishes: अनंत चतुर्दशी पर खास अंदाज में दें गणपति बप्पा को विदाई, इन हिंदी Facebook Messages, GIF Greetings, HD Images, Wallpapers, Photo SMS के जरिए दें सभी को शुभकामनाएं
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार महर्षि वेदव्यास ने गणेश चतुर्थी के दिन से श्रीगणेश को महाभारत की कथा सुनानी शुरू की थी. गणेश जी निरंतर 10 दिनों तक महाभारत की कथा लिखते रहे. जब कथा पूरी हुई तो वेद व्यास जी ने गणेशजी के देह का तापमान अत्यधिक बढ़ा हुआ पाया. तब व्यास जी गणेशजी को पास के सरोवर में ले जाकर उन्हें स्नान करवाया, इसके बाद ही गणेश जी सामान्य हुए थे. प्रचलित है कि इसके बाद से ही गणेशजी के विसर्जन की परंपरा की शुरुआत हुई, जो आज तक जारी है.
गणेशोत्सव के सामाजिक एवं धार्मिक तर्कें!
गणेशोत्सव के पीछे धार्मिक और सामाजिक तर्कें हैं. इस पर्व को राष्ट्रीय एकता का प्रतीक भी माना जाता है. मान्यता है कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने शासन काल में मुगलों के खिलाफ राष्ट्रीय संस्कृति और हिंदू एकता में प्राण फूंकने के लिए सार्वजनिक स्तर पर गणेश जी की पूजा-अर्चना की परंपरा शुरू की थी. जबकि 1857 में अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ पहले विद्रोह को ब्रिटिशों द्वारा कुचलने के बाद जरूरत थी, देशभक्तों को एक छत के नीचे लाकर नये सिरे से उनमें देशभक्ति के प्राण फूंकने की. तब बाल गंगाधर तिलक ने सार्वजनिक गणेशोत्सव की परंपरा शुरु की, और उनका प्रयास सफल रहा.
गणेश विसर्जन का शुभ मुहूर्त
ज्योतिषियों के अनुसार अनंत चौदस के दिन प्रतिमा विसर्जन के लिए प्रातः 09.10 बजे से दोपहर 01.56 बजे तक ही शुभ मुहूर्त बन रहा है.
परंपरागत तरीके से करें गणेश विसर्जन!
चतुर्दशी के दिन शुभ मुहूर्त में गणपति विसर्जन का विधान है, लेकिन उससे पूर्व गणेश जी की षोडशोपाचर विधि से पूजा करनी चाहिए. उन्हें मोदक चढ़ाएं. उऩकी आरती उतारने के बाद पवित्र मंत्रों से उनका स्वास्तिवाचन करते हुए प्रतिमा को अपनी जगह से थोड़ा हिलाएं. ऐसा करने के पीछे ये धारणा है कि स्थापना के समय गणेश जी की प्राण प्रतिष्ठा जो की जाती है, उससे प्रतिमा में प्राण आ जाते हैं. प्रतिमा हिला देने से प्रतिमा सामान्य मूर्ति बन जाती है. इसके पश्चात एक पटरे पर गंगाजल छिड़कर कर पवित्र किया जाता है. यह भी पढ़ें: Happy Anant Chaturdashi 2020 Messages: अपनों से कहें हैप्पी अनंत चतुर्दशी, इन भक्तिमय हिंदी WhatsApp Stickers, Facebook Greetings, GIF Wishes, Photos, SMS, HD Wallpapers के जरिए दें गणपति बप्पा को विदाई
महिलाएं इस पर स्वास्तिक का चिह्न बनाकर उस पर लाल अथवा पीला आसन बिछाती हैं. इस पवित्र पटरे पर प्रतिमा को बिठाकर उस पर पांच मोदक, पुष्प, अक्षत, वस्त्र एवं दक्षिणा रखी जाती है दिया जाता है. इसके साथ ही बप्पा की विदाई की प्रक्रिया शुरु हो जाती है. 'गणपति बप्पा मोरया अगले बरस तू जल्दी आ' के नारे के साथ प्रतिमा को घर से बाहर लाया जाता है. गणेश भक्त बाजे-गाजे पर थिरकते हुए बप्पा को विसर्जन स्थल तक लाते हैं.
यहां मूर्ति को प्रवाहित करने से पूर्व गणेश जी की अंतिम आरती उतारी जाती है. आरती उतारने के पश्चात गणपति बप्पा के सामने हाथ जोड़कर माफी मांगी जाती है कि बप्पा अगर बीते दस दिनों में पूजा-अर्चना में कोई भूल हुई हो तो क्षमा करें. प्रतिमा को जल समाधि आहिस्ते-आहिस्ते दिलानी चाहिए. प्रतिमा के साथ की चीजों को भी उसी आस्था के साथ जल में प्रवाहित करनी चाहिए.