गणेश उत्सव की शुरुवात हो चुकी है ऐसे में सब लोग बप्पा को खुश करने के लिए तरह-तरह के भोग चढाते है. हालांकि ऐसा माना जाता है जब तक उन्हें मोदक का प्रसाद नहीं चढ़ाया जाता उनकी पूजा अधूरी मानी जाती है. क्योंकि यह उनका प्रिय भोग है. वैसे देखा जाए तो गणेश पूजन में लड्डू का भी प्रयोग किया जाता है. लेकिन मोदक इन्हें सबसे अधिक पसंद है. इस बारे में एक कहानी प्रचलित है. पौराणिक कथाओं के अनुसार गणेशजी का एक दांत टूटा हुआ है. इसलिए हम इन्हें प्यार से एकदंत नाम से भी पुकारते है. मोदक काफी मुलायम और आसानी से मुंह में घुल जाने वाला पदार्थ है. इसलिए टूटे हुए दांत के बावजूद भगवान गणेश इसे आसानी से खा लेते हैं. इसलिए गणेश जी को प्रसन्न करने का यह सबसे आसान तरीका है.
क्या है मोदक का अर्थ.
मोद का अर्थ होता है खुशी और क यानी छोटा सा भाग मतलब मोदक प्रसन्नता देने वाली मिठाई है. वैसे भी श्रीगणेश को सबसे ज्यादा खुश रहने वाला देवता माना गया है और मोदक उनकी बुद्धिमानी का भी परिचय देता है. यह भी पढ़े-गणेशोत्सव 2018: भगवान श्री गणेश के आगमन पर इन प्यार भरे मैसेजों से अपनों को करें विश
जानिए कैसे हुआ मोदक का निर्माण-
पुराणों के अनुसार मोदक का निर्माण अमृत से हुआ है. माता पार्वती को एक दिव्य मोदक देवताओं से प्राप्त हुआ था. माता के मुख से सदैव मोदक के गुणों का वर्णन सुनकर गणेशजी मोदक खाने के लिए बड़े उतावले होते थे. एक बार माता पार्वती ने अपने पुत्रों कार्तिकेय और गणेश के लिए मोदक बनाये थे. यह भी-गणेशोत्सव 2018: लालबाग के राजा का दर्शन और आरती यहां देखें LIVE
पार्वती जी ने मोदक उन दोनों में बराबर बांटने का सोचा ताकि मोदक खाकर दोनों भाई कला और साहित्य में निपुण हो जाएं. लेकिन गणेशजी और कार्तिकेय मोदक को आपस में बाटना नही चाहते थे. तब माता ने एक उपाय सुझाई उन्होंने दोनों लोगों से बोला जो भी पहले पूरी ब्रह्मांड का सर्वप्रथम चक्कर लगाकर आयेगा उसे ही यह मोदक मिलेंगे.
यह बात सुनकर कार्तिकेय जी ने तुरंत अपना वाहन मयूर उठाया और निकल गए लेकिन गणेश जी वहीं खड़े रहे. उन्होंने बुद्धिमता दिखाई और माता पिता की परिक्रमा कर ली और कहा जहां मेरे माता-पिता है वही मेरा समस्त ब्रह्मांड है. बाल गणेश की यह बुद्धिमता देख शिव जी और माता पार्वती अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने सारे मोदक गणेश जी को दे दिए.