Ganadhipa Sankashti Chaturthi 2020: कब है गणाधिप संकष्टी चतुर्थी? जानें भगवान गणेश की पूजा विधि, मंत्र, शुभ मुहूर्त और इसका महात्म्य
गणाधिप संकष्टी चतुर्थी (Photo Credits: File Image)

Ganadhipa Sankashti Chaturthi 2020: मार्गशीष संकष्टी चतुर्थी व्रत को गणाधिप संकष्टी चतुर्थी (Ganadhipa Sankashti Chaturthi) के नाम से भी जाना जाता है. धर्म शास्त्रों के अनुसार मार्गशीष (Margashirsha) कृष्णपक्ष की संकष्टी चतुर्थी (Sankashti Chaturthi) का व्रत रखने से जातक के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और श्रीगणेश (Lord Ganesha) हर मनोकामनाएं पूरी करते हैं. श्रीगणेश जी का यह व्रत भी चंद्रदर्शन एवं चंद्र अर्घ्य के साथ सम्पन्न होता है.

प्रत्येक माह की कृष्णपक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी का व्रत किया जाता है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष यानी 2020 को 3 दिसंबर दिन गुरुवार को संकष्टी चतुर्थी व्रत का योग बना है. संकष्टी चतुर्थी का व्रत भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र श्रीगणेश भगवान को समर्पित है. गणेश भगवान रिद्धि, सिद्धि के देवता हैं. मार्गशीष संकष्टी चतुर्थी व्रत रखने वाले की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. यह व्रत सुहागन महिलाएं अपनी संतान के सेहतमंद जीवन और लंबी आयु के लिए करती हैं.

संकष्टी चतुर्थी व्रत का महात्म्य

सनातन धर्म की मान्यताओं एवं धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक संकष्टी चतुर्थी व्रत सभी व्रतों में श्रेष्ठ माना गया है. धर्म शास्त्रों में, भगवान गणेश को प्रथम देव माना गया है, यही वजह है कि हर शुभ कार्य से पहले उनकी ही पूजा-अर्चना की जाती है. और उनका व्रत रखा जाता है. गणेश भगवान को विघ्नहर्ता भी कहा जाता है. इस व्रत को करने वाले के जीवन के कष्ट और बाधाएं भगवान श्रीगणेश हर लेते हैं.

व्रत एवं पूजा विधान

चतुर्थी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान ध्यान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें. अब शाम को पूजा के मुहूर्त बेला से पूर्व एक छोटी सी चौकी लेकर उसे स्वच्छ पानी से धोकर उस पर गंगाजल छिड़कें. इस पर लाल अथवा पीले रंग का आसन बिछा कर इस पर भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा स्थापित करें. प्रतिमा को पहले गंगाजल और फिर पंचामृत से स्नान करायें. इसके बाद प्रतिमा के समक्ष धूप दीप प्रज्जवलित करें, तत्पश्चात रोली और चावल से तिलक लगाते हुए निम्न लिखित गणेश मंत्रों का जाप करें. दूब चढाएं और पीले रंग के पुष्पों की माला चढ़ाते हुए श्रीगणेश स्त्रोत का मंत्र पढ़ें. इसके बाद श्रीगणेश चालीसा और श्रीगणेश स्तुति का गान करें. अंत में श्रीगणेश जी की आरती उतारकर उन्हें बेसन के लड्डू का भोग चढ़ाएं. श्रीगणेश जी की पूजा सम्पन्न होने के बाद मन ही मन अपनी मनोकामनाओं को पूरा होने की कामना करें. यह भी पढ़ें: Vakratund Sankashti Chaturthi Vrat 2020: वक्रतुण्ड संकष्टी चतुर्थी व्रत का क्यों है खास महत्व! जानें पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और पारंपरिक कथा!

संकष्टि चतुर्थी के दिन श्रीगणेश के निम्न मंत्रों का उच्चारण करें.

ऊं गं नमः

ऊं गं गणपतये नमः

ऊं वक्रतुण्डाय नमः

ऊं गं क्षिप्रप्रसादाय नमः

ऊं हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा

ऊं वक्रतुण्डैक दंष्ट्राय क्लीं ह्वीं श्रीं गं गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा

ऊं श्रीं गं सौभ्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वश मानय स्वाहा

संकष्टि चतुर्थी पूजा का शुभ मुहूर्त

सर्वार्थ सिद्धि योगः

अपराह्न 12.22 बजे (4 दिसंबर) शुक्रवार से प्रातः 06.59 बजे तक

संध्या पूजाकाल सायंकाल 05.24 मिनट से 06.45 मिनट तक (1 घंटा 41 मिनट)

चंद्रोदयः सायंकाल 07.51 बजे

इसके बाद व्रती चंद्र को अर्घ्य देकर व्रत का पारण कर सकते हैं.

संकष्टी चतुर्थी पर पूजा के पश्चात गणेश जी की आरती अवश्य पढ़ें

गणेश जी की आरती

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा।

माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।

एकदंत, दयावन्त, चार भुजाधारी,

माथे सिन्दूर सोहे, मूस की सवारी।

पान चढ़े, फूल चढ़े और चढ़े मेवा,

लड्डुअन का भोग लगे, सन्त करें सेवा।। ..

जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश, देवा।

माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।।

अंधन को आंख देत, कोढ़िन को काया,

बांझन को पुत्र देत, निर्धन को माया।

'सूर' श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा।।

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा ..

माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा।

दीनन की लाज रखो, शंभु सुतकारी।

कामना को पूर्ण करो जय बलिहारी।

जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा

माता जाकी पार्वती पिता महादेवा.

मान्यता है कि संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रत रखकर विधि-विधान से भगवान गणेश की पूजा करने से भक्तों के जीवन से सारे संकट दूर होते हैं और सुख-समृद्धि का आगमन होता है.