Eid Moon Sighting: ज्यों-ज्यों रमजान का पवित्र महीना पूरा होता जाता है, बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक सभी अपने प्रिय त्यौहार ईद (Eid al-Fitr 2020) का शिद्दत से इंतजार करने लगते हैं. लेकिन ईद की खुशियां सेलीब्रेट करने से पूर्व चांद का दीदार (Eid Crescent) जरूरी होता. अगर तय तिथि पर चांद का दीदार नसीब नहीं हुआ तो ईद की खुशियां अगले दिन के लिए खिसक जाती हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ईद के साथ चांद का इतना अहम रिश्ता क्यों है! आइए जानें इस संदर्भ में इस्लाम धर्म में क्या बताया गया है.
हिजरी कैलेंडर की शुरुआत!
परंपरानुसार रमजान के 30वें रोजे के बाद चांद देखकर ईद मनाई जाती है. ईद-उल-फितर का यह पर्व वस्तुत: रमजान के चांद के अस्त होने और ईद का चांद दिखने के बाद महीने की पहली तारीख को ईद मनाया जाता है. इस्लाम धर्म के अनुसार ईद-उल-फितर हिजरी कैलेंडर के दसवें महीने शव्वाल अर्थात शव्वाल-उल-मुकर्रम की पहली तारीख को मनायी जाती है. मान्यतानुसार हिजरी कैलेंडर की शुरुआत इस्लाम धर्म की एक वह घटना है, जब हज़रत मुहम्मद ने मक्का को हमेशा के लिए छोड़कर मदीना की ओर प्रयाण किया था.
क्या है शव्वाल महीना!
हिजरी संवत, जिस हिजरी कैलेंडर का हिस्सा है,, वह चांद पर आधारित मुस्लिम कैलेंडर है. इस कैलेंडर में हर महीने की शुरुआत नये चांद के दीदार से ही शुरू मानी जाती है. ठीक इसी अंदाज में शव्वाल महीना भी नया चांद देख देख कर ही शुरू होता है. हिजरी कैलेंडर के अनुसार रमादान के पश्चात आने वाला महीना होता है शव्वाल. ऐसे में जब तक शव्वाल का पहला चांद नहीं दिखाई देता है, रमादान के महीने को पूरा नहीं माना जाता.
शव्वाल का चांद नजर आने पर माना जाता है कि रमादान का महीना मुक्कमल हुआ, इस वजह से ईद अगले दिन मनाई जाती है.