Chaitra Navratri 2020: चैत्रीय नवरात्रि (Chaitra Navratri) का महापर्व चैत्र मास के शुक्लपक्ष की प्रतिपदा तिथि से प्रारंभ होकर रामनवमी (Ram Navami) तक मनाया जाता है. हर वर्ष की तरह इस बार भी चैत्रीय नवरात्रि पर मां दुर्गा (Maa Durga) के नौ रूपों की पूजा-अर्चना एवं उपवास का विधान है. मान्यता है कि चैत्रीय नवरात्रि में आदि शक्ति के सभी नौ रूपों की पूजा-अर्चना करने से मनुष्य के जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आती है तथा सभी तरह की बीमारियों से मुक्ति मिलती है. आइये जानें हमारे ज्योतिषियों के अनुसार इस वर्ष चैत्रीय नवरात्रि कब शुरू हो रही है तथा घट स्थापना का मुहूर्त एवं पूजा विधि क्या है?
चैत्रीय नवरात्रि का महात्म्य
चैत्रीय नवरात्रि दो ऋतुओं (शीत एवं ग्रीष्म) के संगम का प्रतीक माना जाता है. मौसम परिवर्तन के अहसास के साथ ही यह भी दर्शाता है कि हमारा उपवासी शरीर मौसम परिवर्तन को बर्दाश्त करने के लिए तैयार है. इस नवरात्रि पर संपूर्ण भारत में मां दुर्गा के सभी नौ दिव्य रूपों की पूजा की जाती है. चैत्रीय नवरात्रि में उपवास के पहले तीन दिन की ऊर्जा मां दुर्गा को, अगले तीन दिन की ऊर्जा मां लक्ष्मी को और आखिरी तीन दिन की ऊर्जा मां सरस्वती को समर्पित होती है. नवरात्रि के पहले दिन घटस्थापना की जाती है. घट स्थापना को ब्रह्माण्ड का प्रतीक माना जाता है, जिससे घर में शुद्धि और खुशहाली आती है. घटस्थापना के साथ ही माता की चौकी स्थापित की जाती है. फिर पूरे नौ दिन उपवास रखकर मां दुर्गा की पूजा-अर्चना की जाती है. इस अवसर मां दुर्गा के नाम की अखंड ज्योत भी जलाई जाती है.
घट स्थापना मुहूर्त
25 मार्च (मीन लग्न में प्रतिपदा तिथि प्रारंभ)
सुबह 06.19 बजे से 07. 17 बजे तक यह भी पढ़ें: March 2020 Festival Calendar: मां दुर्गा के भक्तों के लिए खास है मार्च का महीना, होली-चैत्र नवरात्रि समेत मनाए जाएंगे कई बड़े व्रत और त्योहार, देखें पूरी लिस्ट
क्या है पूजा विधान
चैत्र नवरात्रि को ब्रह्ममुहूर्त में स्नान कर स्वच्छ अथवा नए वस्त्र पहनें. घर के मंदिर के सामने की जगह की अच्छी तरह सफाई करके वहां एक साफ-सुथरी चौकी बिछाएं. चौकी पर गंगाजल छिड़क कर उसे पवित्र करें. चौकी के सामने भूमि पर छोटे आयताकार में मिट्टी फैलाकर इसमें ज्वार के बीज बो दें. अब एक मिट्टी, पीतल अथवा तांबे का कलश लेकर उस पर स्वास्तिक बनाएं. कलश में जल, अक्षत, सुपारी, रोली एवं मुद्रा (सिक्का) डालकर इस पर लाल रंग की चुन्नी लपेट कर रखें.
चौकी पर मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित कर दुर्गा जी को रोली से तिलक करें. इसके बाद नारियल का भी तिलक करें. दुर्गा जी की प्रतिमा को फूलों का हार बनाएं. गोबर का कंडा जलाकर पूजा स्थल के समीप रखें और उसमें घी डालें. कण्डे पर कपूर, दो लौंग के जोड़े और बताशे चढायें. मां दुर्गा के मंत्रों का जाप करें और दुर्गासप्तशती का पाठ करें. पूजा पूरा करके धूप एवं दीप से आरती उतारें. अब माता के सामने चढ़ाएं हुए बताशों को प्रसाद की तरह लोगों में वितरित कर दें.
पौराणिक कथा
प्राचीनकाल में एक नगर में एक ब्राह्मण था. वह मां भगवती दुर्गा का परम भक्त था. उसकी कन्या का नाम सुमति था. ब्राह्मण प्रतिदिन नियमपूर्वक दुर्गाजी की पूजा और यज्ञ करता था. सुमति भी पूजा में सम्मिलित होती थी. एक दिन सुमति पूजा में शामिल नहीं हो सकी, इससे ब्राह्मण ने क्रोध में आकर कहा वह उसका विवाह किसी दरिद्र और कोढ़ी से करा देगा.
पिता की बात सुनकर सुमति को बहुत दुख हुआ. उसने पिता की इस बात को सर झुकाकर स्वीकार लिया. पिता ने उसका विवाह एक दरिद्र कोढ़ी से करा दिया. सुमति विवाह कर ससुराल चली गई. पति का घर-बार न होने के कारण उसे वन में रात गुजारनी पड़ी. कन्या की दशा देखकर मां भगवती उसके द्वारा किए गए पिछले जन्म के प्रभाव से प्रकट हो गईं, बोली -हे कन्या मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूं. तुम कोई भी वरदान मांग सकती हो. सुमति बोली की आप किस बात से प्रसन्न हैं. यह भी पढ़ें: Kharmas 2020: 13 अप्रैल तक नहीं होंगे शुभ कार्य! न बजेगी शहनाई, ना फुटेंगे नारियल
मां दुर्गा ने कहा कि पिछली जन्म में एक भील की पत्नी थीं. एक दिन तुम्हारे पति की चोरी के कारण तुम्हें और तुम्हारे पति को जेल में बंद कर दिया था. सिपाहियों ने तुम्हें और तुम्हारे पति को कुछ भी खाने के लिए नहीं दिया था. जिसके कारण तुम्हारा नवरात्रि का व्रत हो गया था. इसीलिए मैं तुमसे प्रसन्न हूं. तुम कुछ भी मांग सकती हो. कन्या ने मां कृपा कर आप मेरे पति का कोढ़ दूर कर दीजिए. माता ने उसे रोग से मुक्त कर दिया. इसलिए नवरात्रि का व्रत करने वाले व्यक्ति को उसके हर जन्म में शुभ फलों की प्राप्ति होती है.