Diwali 2019: कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी के दिन दीपावली का पर्व मनाया जाता है. अन्याय पर न्याय की जीत के उपलक्ष्य में इस विजय पर्व का उत्साह भारत ही नहीं विदेशों में भी देखा जा सकता है. दीपावली की मध्य रात्रि यानी कार्तिक मास की अमावस्या तिथि पर माँ काली की पूजा सम्पन्न होती है. कालीबारी मंदिर के पुरोहित के अनुसार इसी रात्रि माता काली 64 हजार योगिनियों के साथ प्रकट हुई थीं और लाखों असुरों का संहार किया था. इसीलिए कार्तिक मास की अमावस्या की मध्य रात्र में काली मां की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 27 अक्टूबर की मध्यरात्रि (यानी 28 अक्टूबर) को काली मां की पूजा होगी.
मां काली की पूजा
मां काली का रौद्र रूप देखकर भक्तों के बीच तरह-तरह की भ्रांतियां व्याप्त है. उनके अनुसार काली बहुत जल्दी क्रोधित होनेवाली देवी हैं. इस भय से आम भक्त माँ काली की पूजा अर्चना से भयाक्रांत रहता है. यह सच है कि माँ काली का रूप उग्र है, लेकिन वर्तमान में अत्यधिक जागृत दैवीय शक्तियों में माँ काली का स्थान सर्वोपरि है. मान्यता है कि एक बार माँ काली प्रसन्न हो जाएं तो भक्तों की सारी मनोकामनाएं पूरी कर देती हैं. काली माता के पुजारी भी मानते हैं कि मां काली की पूजा अगर सच्चे एवं शुद्ध मन से किया जाए तो मनुष्य सारे भय एवं संकटों से मुक्ति पा जाता है. माँ काली की पूजा ज्यादातर मंत्र शक्ति केंद्रित होती है. आइये जानें घर पर माँ काली की पूजा-करने के लिए कब और किस मंत्र का कितना जाप करना चाहिए कि माँ काली प्रसन्न हों और मनोवांछित फलों की प्राप्ति का आशीर्वाद दें.
माता काली का दिव्य स्वरूप
दीपावली की महत्ता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इस रात्रि को माता लक्ष्मी-गणेश के साथ माता काली की पूजा का विधान है. हिंदू धर्म में माता काली को महाशक्ति का प्रतीक माना जाता है. देवी पुराण एवं दुर्गा सप्तशती के अनुसार माता काली वस्तुतः माँ दुर्गा का वह विभत्स स्वरूप है, जिसके बारे में कहा जाता है दुर्गा जी ने यह स्वरूप राक्षसों के संहार के लिए लिया था. यूं तो माता काली की पूजा संपूर्ण भारत में कार्तिक मास की अमावस्या के दिन सम्पन्न होती है, लेकिन बंगाल, उड़ीसा और असम में माँ काली की विशेष पूजा की जाती है. देवी पुराण में उल्लेखित है कि माता काली माँ दुर्गा की 10 विद्याओं में से एक हैं. हिंदू धर्मशास्त्रों में भी जगदंबा यानी माँ दुर्गा को ही महामाया माना गया है. मान्यता है कि महामाया से मोहित होने के कारण ही उनके परम तत्व को ब्रह्मा समेत समस्त देवता भी नहीं समझ सके थे. महामाया यानी महाशक्ति सत्व, रज और तम इन तीन गुणों की आश्रय लेकर समयानुसार संपूर्ण जगत का सृजन, पालन एवं संहार करती हैं. महादुर्गा की दस महा विद्या में प्रथम विद्या महाकाली को माना गया है. महाकाली के भी अनेक रूप हैं, जिनमें महाकाली, श्मशान काली, गुह्य काली, भद्र काल, काम काली, दक्षिण काली प्रमुख हैं. मान्यता है कि सती ने जब शिव को रोकने हेतु अपने रूप को विस्तार दिया तो उसमें काली माँ प्रथम थीं, इसी वजह से उन्हें आद्य शक्ति भी कहा जाता है.
घर पर करें मां काली की पूजा-अर्चना
शास्त्रों में वर्णित है कि महाशक्ति की पूजा पूरी निष्ठा, स्वच्छ वातावरण में मंत्रोच्चारण के साथ करना चाहिए. माँ काली की पूजा के लिए दीपावली की रात एक स्वच्छ पाटले पर नया लाल कपड़ा बिछाएं. इस स्थान पर गंगा जल छिड़ककर इसे पवित्र करें. अब लाल आसन पर पूर्व दिशा में माँ काली की प्रतिमा अथवा तस्वीर स्थापित करें. ध्यान केंद्रित करने के पश्चात माँ काली के मस्तष्क पर लाल तिलक लगाकर लाल रंग का पुष्प अर्पित करें. इसके बाद माँ काली के किसी भी मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें. लेकिन किसी योग्य पुजारी से सलाह लेने के बाद ही मंत्रों का चयन करें. वैसे माँ काली के समक्ष गायत्री मंत्र अथवा बीज मंत्रों का जाप विशेष फलदायक माना जाता है. जाप के पश्चात माँ काली को भोग अवश्य अर्पित करें. मान्यतानुसार काली माँ को उन्हीं वस्तुओं का भोग प्रिय है, जो भैरव जी को लगाया जाता है. हालांकि इन्हें अनार बहुत प्रिय लगता है. किसी विशेष मन्नत के लिए उपासना करना चाहते हैं तो पुजारी की सलाह के अनुरूप सवा लाख, ढाई लाख अथवा पांच लाख मंत्रों का जाप करना चाहिए. लेकिन मंत्रों का संकल्प लेने से पूर्व तय कर लें कि आप कितने मंत्रों का जाप कर सकते हैं.
मंत्रों से प्रसन्न करें माँ को
काली माँ की पूजा के दरम्यान किन-किन मंत्रों का जाप करना चाहिए और अमुक जाप का क्या प्रभाव होता है इसका विवरण हमारें धर्मशास्त्रों में उल्लेखित है. काली माँ को प्रसन्न करने के लिए कोई भी और सामर्थ्यानुसार कितने भी मंत्र का जाप करें, लेकिन मंत्रोच्चार शुद्ध होना चाहिए. कुछ मंत्रों की शास्त्रानुसार तय होती है, इसकी जानकारी काली माँ के मंदिर के पुजारी से ली जा सकती है. अमूमन माँ काली को प्रसन्न करने के साथ ही ज्ञान और सिद्धी प्राप्ति के लिए एकाक्षर मंत्रों ह्रीं” और “क्रीं” का जाप काफी फलदायी माना जाता है. इसके अलावा प्रतिदिन क्रीं क्रीं क्रीँ स्वाहा मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करने से हर तरह के कष्ट दूर होते हैं, सुख, शांति एवं समृद्धि की प्राप्ति होती है और पारिवार में शांति बनी रहती है. दुर्गा सप्तशती में ‘ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै:’ मंत्रों का विस्तार से वर्णन है, जो मां के नौ स्वरूपों को दर्शाता है. चैत्रीय अथवा शारदीय नवरात्र पर इस मंत्र का जाप घर पर काली माँ के सामने किया जा सकता है. मान्यता है कि इस मंत्र के जाप से ग्रहों से जुड़ी समस्याएं शांत होती हैं. जीवन में सुख एवं शांति आती है.