सनातन धर्म के अनुसार आषाढ़ शुक्लपक्ष की एकादशी के दिन भगवान श्रीहरि योग-निद्रा में लीन हो जाते हैं. चार माह पश्चात कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की एकादशी के दिन श्रीनारायण का शयनकाल समाप्त होता है और वे पुनः सृष्टि संचालन का दायित्व संभालते हैं. इसीलिए हिंदू धर्म में इस काल को चातुर्मास के नाम से जाना जाता है. देवोत्थान एकादशी को देव उठनी या देवोत्थानी एकादशी भी कहते हैं. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष देवोत्थान एकादशी 14 नवंबर, रविवार 2021 के दिन पड़ रहा है. आइये जानें आखिर श्रीहरि चार मास के लिए योग-निद्रा में क्यों लीन हो जाते हैं? प्रस्तुत है इस संदर्भ में तीन रोचक कथाएं
चार मास तक क्यों सोते हैं श्रीहरि
श्रीमद् भागवद के अनुसार सृष्टि के संचालन के दरम्यान भगवान श्रीहरि कभी अत्याचारी असुरों का सर्वनाश करने, तो कभी देवों की समस्याओं को सुलझाने और कभी भक्तों की मनोकामनाओं की पूर्ति कार्यों में लगातार लिप्त रहने के कारण वे पूरी नींद नहीं ले पाते थे. ऐसी स्थिति में अकसर वे जब निद्रा में लीन होते तो लाखों वर्षों तक सोते रह जाते थे, इस वजह से सृष्टि की संचालन व्यवस्था डगमगा जाती थी. श्रीहरि के इस असमय नींद के कारण माता लक्ष्मी को विश्राम का मौका कम ही मिल पाता था. एक दिन माता लक्ष्मी ने श्रीहरि से कहा, प्रभु! आप समय से नींद नहीं लेते, दिन-रात जागृत रहते हैं फिर अचानक दीर्घकालीन निद्रा में चले जाते हैं. अगर आप नियमबद्ध निद्रा लें तो मुझे भी थोड़ा विश्राम मिल जाएगा. तब श्रीहरि ने मुस्कुराते हुए कहा, देवी! आपका कथन शत-प्रति-शत सत्य है. मेरी असमय निद्रा के कारण आपके साथ-साथ देवलोक में भी समस्याएं उत्पन्न होती हैं. अब से मैं प्रतिवर्ष नियमबद्ध तरीके से चार माह की पूरी निद्रा लूंगा, मेरी योग-निद्रा के दरम्यान मेरी जगह भगवान शिव सृष्टि का संचालन करेंगे. इससे सब कुछ ठीक हो जायेगा. कहते हैं कि इसके बाद से ही श्रीहरि चार मास से लिए योग-निद्रा में लीन होने लगे.
वामन अवतार और पाताल लोक में निवास
एक अन्य कथा के अनुसार एक बार राजा बलि ने अपने बाहुबल से तीनों लोकों को अपने नियंत्रण में ले लिया. देवराज इंद्र को अपना सिंहासन डगमगाता दिखा तो वह भगवान विष्णु के पास पहुंचे और राजा बलि से इंद्रलोक को बचाने के लिए मदद की अपील की. श्रीहरि राजा बलि के दानी स्वरूप से परिचित थे. उन्होंने वामन रूप में पृथ्वी पर अवतार लिया, और राजा बलि से दान मांगी. वामन का छोटा कद देखते हुए बलि ने निर्भय होकर इच्छित वस्तु मांगने के लिए कहा. वामन स्वरूप श्रीहरि ने राजा बलि से तीन पग जमीन की मांग की. तीन लोकों के स्वामी को छोटे कद के वामन की मांग पर हंसी भी आई. फिर भी बलि ने कहा वामन राज आप अपनी इच्छानुसार जहां इच्छा करे जमीन नाप लो. वामन स्वरूप श्रीहरि ने दो पग में पृथ्वी और आकाश को नाप लिया. श्रीहरि ने कहा कि तीसरा पग मैं कहां रखूं. राजा बलि ने कहा मेरे सिर पर रख लें महाराज. इस तरह वामन देव ने तीनो लोक पर अधिकार करके इंद्र को भय मुक्त किया. यह भी पढ़ें : Tulsi Vivah 2021: कब और किस मुहूर्त में करें तुलसी विवाह? जानें शालिग्राम-तुलसी विवाह का महात्म्य, एवं पूजा विधि!
लेकिन बलि की दानशीलता एवं ब्राह्मण के प्रति प्रेम भाव देखकर भाव विह्वल होकर श्रीहरि ने राजा बलि से वर मांगने को कहा. राजा बलि ने श्रीहरि से कहा कि आप मेरे साथ पाताललोक चलें और हमेशा वहीं निवास करें. श्रीहरि बलि की मांग पूरी करते हुए पाताल लोक चले गये. श्रीहरि के पाताल लोक गमन से सारे देवी-देवता एवं माता लक्ष्मी चिंतित हो उठे. तब माता लक्ष्मी ने श्रीहरि को पाताल से मुक्त कराने के लिए एक गरीब स्त्री बनकर बलि के पास पहुंचीं. उन्होंने बलि की कलाई में राखी बांधने के बाद बलि के वरदान मांगने पर लक्ष्मी जी ने श्रीहरि को पाताल से मुक्ति देने का वरदान मांगा. लेकिन श्रीहरि ने लक्ष्मी जी को पहचानने के बाद कहा, वह राजा बलि को निराश नहीं करेंगे. उन्होंने बलि से कहा कि वह साल में चार माह आषाढ़ शुक्लपक्ष से कार्तिक शुक्लपक्ष की एकादशी से कार्तिक शुक्लपक्ष की एकादशी तक पाताल लोक में रहने का निर्णय लेते हुए कहा कि इस दरम्यान वे पाताल लोक में योग-निद्रा में लीन रहेंगे.
शंखचूर्ण वध
एक अन्य कथा के अनुसार एक बार शंखचूर नामक असुर से श्रीहरि का लंबा युद्ध चला और अंत में असुर मारा गया.युद्ध करते हुए भगवान बहुत थक गए. तब उन्होंने भगवान शिव को त्रिलोक का कार्यभार सौंपकर योगनिद्रा में चले गए. इसलिए इन चार महीनों में भगवान शिव ही पालनकर्ता भगवान विष्णु के काम भी देखते हैं. यही कारण है कि सावन में भगवान शिव की विशेष पूजा होती है.