
धुंडीराज गोविंद साहब फाल्के भारतीय फिल्म के पितामह कहे जाते हैं. साल 1913 में उन्होंने भारत के लिए पहली फिल्म राजा हरिश्चंद्र बनाई थी. फाल्के का जन्म 30 अप्रैल 1870 को त्र्यंबक (महाराष्ट्र) में हुआ था. बालपन से उन्हें कलात्मक और रचनात्मक कार्यों में रुचि थी. अंग्रेजी फिल्म ‘द लाइफ ऑफ क्राइस्ट’ देखने के बाद उन्हें लगा कि भारतीय संस्कृति को फिल्म के माध्यम से उकेरा जा सकता है, जिससे दुनिया भर में भारतीय संस्कृति और परंपरा की पहुंच हो. पहली भारतीय फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ के माध्यम से वह महान शूरवीर और न्यायप्रिय राजा हरिश्चंद्र के संपूर्ण व्यक्तित्व को परदे पर लाने में सफल रहे. मूक फिल्म होने के बावजूद इसे अच्छा प्रतिसाद मिला. इसके बाद उन्होंने कई फिल्में बनाई. 16 फरवरी 1944 को फाल्के का नासिक (महाराष्ट्र) में निधन हो गया. उनकी 155वीं जयंती के अवसर पर जानें दादा साहेब फाल्के के जीवन के कुछ रोचक पहलुओं के बारे में..
प्रथम भारतीय फीचर फिल्म निर्माता: दादा साहेब फाल्के ने फिल्म राजा हरिश्चंद्र (1913) का निर्देशन किया, जिसे पहली पूर्ण लंबाई वाली भारतीय फीचर फिल्म माना जाता है. इस फिल्म ने भारतीय फिल्म उद्योग की नींव रखी थी. आज भारतीय सिनेमा दुनिया की सबसे समृद्धि एवं विशाल इंडस्ट्री में गिनी जाती है यह भी पढ़ें : Parsuram Jaynti 2025: आस्था एवं परिश्रम से हर असंभव को संभव बनाया जा सकता है! परशुराम जयंती पर अपनों को भेजें ऐसे प्रभावशाली कोट्स!
दादा साहेब फाल्के की पृष्ठभूमि: फिल्मों में आने से पहले, दादा साहेब फाल्के ने बॉम्बे में सर जे.जे. स्कूल ऑफ आर्ट में अध्ययन करते हुए फोटोग्राफी, लिथोग्राफी और प्रिंटिंग जैसे क्षेत्र में काम किया, जिसकी वजह से उनकी सिनेमाई सोच को काफी प्रभावित और विकसित किया.
विदेशी फिल्म से प्रेरित: दादा साहेब फाल्के को फिल्म बनाने की प्रेरणा साल 1910 में अंग्रेजी फिल्म ‘द लाइफ ऑफ क्राइस्ट’ देखने के बाद मिली. फाल्के उस फिल्म की कहानी को प्रस्तुत करने के तरीके से प्रभावित हुए. इसी तरह वे विभिन्न भारतीय कहानियों को सिल्वर स्क्रीन पर लाना चाहते थे.
सामाजिक चुनौतियां: दादा साहेब ने जब फिल्म निर्माण शुरू किया, तब उन्हें तमाम सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा, क्योंकि कोई भी महिला फिल्मों में अभिनय करने को अच्छा काम नहीं मानती थी. तब उन्हें अपनी फिल्म ‘राजा हरिश्चंद्र’ में रानी तारामती के किरदार हेतु सालुंके नामक पुरुष को लेना पड़ा.
जुनून और उत्साह में आकर सम्पति बेच दी भारत के लिए पहली फिल्म निर्माण को लेकर वे इतने उत्साहित और जुनूनी हो गये थे, कि उन्होंने अपनी संपत्ति बेच दी, परिवार को कुछ दिनों के लिए रिश्तेदारों के पास भेज दिया, ताकि वे अपनी पहली फिल्म पर ध्यान केंद्रित कर सकें.
90 से ज्यादा फिल्मों का निर्माण किया: साल 1913 से 1937 के बीच, दादा साहेब फाल्के ने 95 फ़िल्में और लगभग 26 लघु फिल्में बनाई. उस दौर में फ़िल्म निर्माण में आने वाली तमाम आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों को देखते हुए दुनिया भर के फिल्म निर्माताओं को हैरान कर दिया था.
बहुमुखी प्रतिभावान फिल्म निर्माताः दादा साहेब फाल्के भारतीय सिनेमा के पहले ‘वन मैन शो’ थे. वह अपनी फिल्म के निर्माण और निर्देशन से लेकर पटकथा लेखन, संपादन, सेट डिज़ाइनिंग, कैमरा यहां तक कि फिल्म की तैयार रील (रॉ मटेरियल) को भी खुद ही डेवलप करते थे. फिल्म वितरण भी करते थे.
दादा साहब फाल्के पुरस्कार: भारतीय सिनेमा जगत को गौरवान्वित करनेवाले दादा साहेब को पूर्ण सम्मान देने हेतु साल 1969 में भारत सरकार ने सिनेमा के सर्वोच्च पुरस्कार को उनके नाम से नामित किया. ‘दादा साहेब फाल्के पुरस्कार’ हर वर्ष भारतीय सिनेमा में आजीवन योगदान देने वाले एक शख्सियत दिया जाता है।