Chanakya Niti: राजा का कुकर्म पुरोहित को क्यों भुगतना पड़ता है? जानें क्या है चाणक्य की इस नीति का रहस्य?
Chanakya Niti (img: file photo)

भगवद् गीता के दूसरे अध्याय के श्लोक क्रमांक 47 में उल्लेखित है कि मनुष्य जैसा कर्म करता है, वैसा ही फल उसे भुगतना पड़ता है.

‘कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन’

लेकिन आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतियों में कर्मों के लेखा-जोखा पर कुछ इस तरह वर्णन किया है. कि किस तरह कर्म हम करते हैं, मगर उसकी सजा दूसरे को भी भुगतनी पड़ती है. ऐसा ही कुछ इस श्लोक में देखा जा सकता है..

कृतं पापं राज्ञः पापं पुरोहितः। भर्ता च स्त्रीकृतं पापं शिष्य पाप गुरुस्तथा॥

आचार्य यहां कर्म के दूरगामी प्रभाव की चर्चा करते हुए कहते हैं कि राष्ट्र द्वारा किए गए पाप को राजा भोगता है.राजा के पाप को उसका पुरोहित, पत्नी के पाप को पति तथा शिष्य के पाप को गुरु भोगता है. यह भी पढ़ें : Chanakya Neeti: संभोग के पश्चात अथवा श्मशान भूमि से लौटने के बाद स्नान क्यों जरूरी है? जानें चाणक्य-नीति क्या कहती है!

कहने का आशय यह है कि प्रजा का पाप राजा को, राजा का पाप उसके पुरोहित को, स्त्री का पाप उसके पति को तथा शिष्य का पाप उसके गुरु को भुगतना पड़ता है, क्योंकि देखा जाये तो इसका सीधा सम्बन्ध राजा द्वारा अपने कर्त्तव्य का पालन न करने से हैं. राजा यदि अपने राज्य में कर्त्तव्यपालन नहीं करता और उदासीन रहता है तो वहां पाप-वृत्तियां बढ़ती हैं, अराजकता आती है, उसका दोष राजा के सर पर पड़ता है. ऐसे में पुरोहित का कर्त्तव्य होता है कि राजा को अच्छी सलाह दे, उसे सन्मार्ग की ओर उन्मुख करे, उसे सच्ची और खरी बात बताये तथा अनुचित कर्म करने से रोके, लेकिन पुरोहित किन्हीं कारणों से अपने कर्त्तव्यों का पालन नहीं करता. उसके कारण राजा पापकर्म में प्रवृत्त होता है तो उसका फल उसके पुरोहित अथवा मंत्री को भुगतना पड़ता है, क्योंकि राजा को नियंत्रित रखने का दायित्व उन्हीं का है.

इसी तरह पति का कर्त्तव्य है कि पत्नी को पापकर्म की ओर प्रेरित न होने दे, उसे अपने नियन्त्रण में रखे. पत्नी यदि कोई गलत काम करती है तो उसका फल अथवा परिणाम पति को ही भोगना पड़ता है.

गुरु का कर्त्तव्य है कि शिष्य का सही मार्गदर्शन करे, उसे सत्कर्मों की ओर प्रेरित करे. लेकिन वह अपने इस कर्त्तव्य के प्रति अगर सावधान नहीं रहता और शिष्य पापकर्म में प्रवृत्त होता है तो उसका दोष गुरु के सिर पर मढ़ा जाता है.

इस तरह समझा जा सकता है कि राजा, पुरोहित और पति का कर्त्तव्य है कि वे अपनी प्रजा, राजा, पत्नी व शिष्य को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करें.