Chanakya Neeti: पति के चरण धुले जल पीने से ही पत्नी को पूर्ण शुद्धि मिलती है! आचार्य चाणक्य ने ऐसा क्यों कहा?
Chanakya Neeti (img: file)

आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतियों के तहत समाज के हर वर्ग पर कुछ ना कुछ प्रभावशाली प्रेरक श्लोक लिखे हैं, जो आज भी सामयिक और प्रभावशाली लगता है. यद्यपि आचार्य की कुछ बातें सर्वमान्य नहीं भी हैं, क्योंकि बदलते वक्त के साथ सोचें भी बदली हैं. विशेषकर स्त्रियों के संदर्भ में. ऐसा ही एक विवादित श्लोक ये भी है.

न वानैः शुध्यते नारी नोपवासशतैरपि।

न तीर्थसेवया तद्वत् भतुः पादोदकैर्यथा।

आचार्य चाणक्य के अनुसार भारतीय परिप्रेक्ष्य में एक विवाहित स्त्री के लिए उसका पति ही सब कुछ होता है. वह कितना भी दान करे, सैकड़ों कठिन से कठिन व्रत रखे, तमाम तीर्थों की यात्रा कर ले, लेकिन जब तक वह यानी पत्नी पति के चरणों को धोने से प्राप्त जल का सेवन नहीं कर लेती, उसे शुद्ध नहीं माना जा सकता. पत्नी के लिए पति ही सर्वोपरि है, पति को अपना देव मानते हुए उन्हीं की आज्ञा सर्वतोभावेन पालन करना चाहिए. पति की इच्छा के विरुद्ध जाकर सारे जप, तप, यज्ञ, हवन या किसी भी प्रकार के अनुष्ठान व्यर्थ है. यह भी पढ़ें : Chanakya Niti: कुछ लोगों से मध्यस्थता में सतर्कता जरूरी है! इनके ज्यादा करीब जाना या दूर रहना दोनों घातक हो सकते हैं!

ब्राह्मणों के गुरु अग्नि, वर्गों के गुरु ब्राह्मण और स्त्रियों का एकमात्र गुरु पति होता है, लेकिन अतिथि सभी के गुरु होते हैं. इसलिए 'अतिथिदेवो भव' का उपदेश अकसर सुना जाता है. भारतीय संस्कृति का एक आदर्श यह भी है कि स्त्री का महत्त्व सर्वोपरि होता है, मसलन 'यंत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।' अर्थात जहाँ नारी की पूजा होती है, वहीं देवता निवास करते हैं, परंतु स्त्री के लिए उसका पति ही देवता है. इसलिए पतिपरायणा भारतीय नारियों के लिए पति-देव से बढ़कर दूसरा कोई देव नहीं है. इसलिए सावित्री ने अपने पति-सेवा के बल पर ही यमराज से अपने पति सत्यवान को बचाया था, भगवती सीता ने भी अपने पति के साथ राजमहल के भोग-विलास छोड़कर चौदह वर्षों तक वन में निवास किया तथा अनेक प्रकार के कष्ट, पीड़ा को भोगा. अपहरण के दर्द को झेला. इन सारी बातों का मुख्य उद्देश्य मात्र पति-सेवा ही था.