चाणक्य जिन्हें कौटिल्य या विष्णुगुप्त के नाम से भी जाना जाता है. मौर्य साम्राज्य के दौरान आचार्य चाणक्य चंद्रगुप्त मौर्य के मुख्य सलाहकार थे. उन्होंने दो पुस्तकें लिखीं थी, एक अर्थशास्त्र पर और दूसरी चाणक्य नीति पर. उन्हें राजनीति विज्ञान का गहरा ज्ञान था. चाणक्य नीति या नीति शास्त्र और कुछ नहीं, बल्कि एक ही स्थान पर संकलित तमाम विषय और सिद्धांतों का संकलन है. यह संस्कृत के श्लोकों के रूप में रचा गया है. ऐसे ही एक श्लोक की चर्चा हम यहां करने जा रहे हैं, जो काल अर्थात समय को परिभाषित करता है.
‘कालः पचति भूतानि कालः संहरते प्रजाः।
कालः सुप्तेषु जागर्ति कालो हि दुरतिक्रमः’
अर्थात जब किसी व्यक्ति का काल आता है, तो उसे कोई नहीं बचा सकता. इसलिए व्यक्ति को हमेशा सबके साथ प्यार से रहना चाहिए और हर व्यक्ति का सम्मान करना चाहिए.
आचार्य चाणक्य यहां काल के प्रभाव को अपनी नीति से जोड़ते हुए कहते हैं कि काल ही प्राणियों को निगल जाता है. काल सृष्टि का विनाश कर देता है. यह प्राणियों के सो जाने पर भी उनमें विद्यमान रहता है. इसका कोई भी अतिक्रमण नहीं कर सकता. यह भी पढ़ें : Margashirsha Guruvar Vrat 2024 Marathi Messages: मार्गशीर्ष गुरुवारच्या हार्दिक शुभेच्छा! प्रियजनों संग शेयर करें ये मराठी WhatsApp Wishes, Facebook Greetings और Quotes
आचार्य ने इस श्लोक के संदर्भ में कहना चाहा है कि काल या समय सबसे बलवान है. समय धीरे-धीरे सभी प्राणियों और सारे संसार को भी निगल जाता है. प्राणियों के सो जाने पर भी समय चलता रहता है. कहने का आशय यह है कि उम्र कम होती रहती है. सृष्टि का नियम है, जिसे कोई नहीं टाल सकता, क्योंकि काल के प्रभाव से बचना व्यक्ति के लिए संभव नहीं है. चाहे योग-साधना किये जाएं, या वैज्ञानिक उपायों का सहारा लिया जाए तब भी काल के प्रभाव को हटाया नहीं जा सकता. समय का प्रभाव तो हर वस्तु पर पड़ता ही है, शरीर निर्बल हो जाता है, वस्तुएँ जीर्ण और क्षरित हो जाती हैं. सभी देखते हैं और जानते हैं कि व्यक्ति यौवन में जिस प्रकार साहसपूर्ण कार्य कर सकता था, वृद्धावस्था में ऐसा कुछ नहीं कर पाता. बुढ़ापे के चिह्न व्यक्ति के शरीर पर काल के पग-चिह्न ही तो हैं. काल को मोड़कर पीछे घुमाया नहीं जा सकता, यानि बीता हुआ समय कभी वापस नहीं लौटता. यह बात निरा सत्य है कि काल की गति को रोकना देवताओं के लिए भी संभव नहीं है. तमाम कवियों ने भी काल की महिमा का वर्णन किया है. भतृहरि ने भी कहा है कि काल समाप्त नहीं होता, वरन् मनुष्य का शरीर ही काल का ग्रास बन जाता है. यही प्रकृति का नियम है. अतः समय के महत्त्व को जानकर ही इंसान को आचरण करना चाहिए.