रूस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जर्मनी की स्थायी सीट की संभावना को साफ तौर पर खारिज कर दिया है. एक रूसी राजनयिक ने कहा कि जर्मनी कभी स्थायी सदस्य नहीं बन सकता.संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट के लिए जर्मनी की महत्वाकांक्षा को रूस ने सिरे से खारिज कर दिया है. रूसी राजनयिक वासिली नेबेन्या ने शुक्रवार को एक रूसी टीवी चैनल पर दिए इंटरव्यू में यह बयान दिया. उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि सुरक्षा परिषद में सुधार होता भी है, तो कुछ देशों को स्थायी सदस्य बनने का मौका कभी नहीं मिलेगा.
नेबेन्या ने जर्मनी और जापान का नाम लेते हुए कहा कि इन देशों को स्थायी सदस्यता नहीं दी जानी चाहिए. यह बयान ऐसे समय में आया है, जब वर्षों से सुरक्षा परिषद में सुधार को लेकर चर्चा चल रही है. जहां भारत और अफ्रीकी देशों ने स्थायी सीट की अपनी दावेदारी को प्रमुखता से रखा है, वहीं जर्मनी भी लंबे समय से इस दिशा में प्रयासरत है.
पश्चिम और रूस के बीच बढ़ता तनाव
एक समय था जब रूस सुरक्षा परिषद में सुधार के पक्ष में दिखता था. लेकिन हाल के वर्षों में, विशेषकर यूक्रेन पर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन द्वारा किए गए हमले के बाद, पश्चिम और रूस के बीच संबंध काफी बिगड़ गए हैं. इसका असर अंतरराष्ट्रीय मुद्दों और संस्थानों पर भी साफ दिखाई दे रहा है.
सुरक्षा परिषद में सुधार की मांग को लेकर चर्चा लंबे समय से चल रही है. मौजूदा समय में परिषद में पांच स्थायी सदस्य हैं - चीन, फ्रांस, ब्रिटेन, रूस और अमेरिका. ये सदस्य अपने वीटो अधिकार का प्रयोग करके किसी भी बदलाव को रोक सकते हैं. यही कारण है कि सुधार की संभावना कम मानी जा रही है.
जर्मनी का तर्क
जर्मनी का कहना है कि वह न केवल यूरोप की सबसे बड़ी आर्थिक शक्ति है, बल्कि वैश्विक मंच पर उसकी भूमिका भी मजबूत है. उसने कई बार सुरक्षा परिषद में अस्थायी सदस्य के रूप में काम किया है और जलवायु परिवर्तन, मानवाधिकार और शांति स्थापना जैसे मुद्दों पर अपनी प्रतिबद्धता साबित की है.
जर्मनी को फ्रांस और ब्रिटेन जैसे यूरोपीय देशों से समर्थन मिला है. फ्रांस ने कई मौकों पर जर्मनी की स्थायी सदस्यता का समर्थन किया है. इसके अलावा, जापान, भारत और ब्राजील जैसे जी4 समूह के सदस्य भी जर्मनी की दावेदारी का समर्थन करते हैं.
लेकिन उसकी स्थायी सीट में कई बाधाएंहैं. इटली और कुछ अन्य यूरोपीय देश भी जर्मनी के इस प्रयास का विरोध करते हैं. इटली का मानना है कि एक यूरोपीय सीट का प्रस्ताव बेहतर होगा. इसके अलावा, रूस और चीन ने भी जर्मनी की स्थायी सदस्यता का विरोध किया है.
भारत और अफ्रीकी देशों की दावेदारी
भारत और अफ्रीकी देशों का कहना है कि सुरक्षा परिषद में उन्हें स्थायी सदस्यता मिलनी चाहिए क्योंकि वे वर्तमान भू-राजनीतिक वास्तविकताओं का बेहतर प्रतिनिधित्व करते हैं. अफ्रीकी संघ के कई देशों ने इस पर जोर दिया है कि परिषद में अफ्रीका की भागीदारी सुनिश्चित होनी चाहिए.
सुरक्षा परिषद में किसी भी बदलाव के लिए यूएन चार्टर में संशोधन की आवश्यकता होती है, जिसे महासभा के दो-तिहाई सदस्यों और सभी पांच स्थायी सदस्यों की मंजूरी चाहिए. लेकिन अब तक यह संभव नहीं हो पाया है क्योंकि सदस्य देशों के बीच मतभेद सुधार प्रक्रिया को जटिल बनाते हैं. इसके अलावा, मौजूदा स्थायी सदस्य अपने विशेषाधिकार को साझा करने के लिए भी तैयार नहीं दिखते.
रूस का सख्त संदेश
रूस का यह बयान इस बात को स्पष्ट करता है कि वह अपने प्रभाव को बनाए रखने के लिए किसी भी प्रकार के बदलाव का विरोध करेगा. समाचार एजेंसी डीपीए के मुताबिक नेबेन्या ने कहा कि जर्मनी और जापान को वैश्विक समर्थन प्राप्त नहीं है और यह उनके स्थायी सदस्य बनने में एक बड़ी बाधा है.
जर्मनी सुरक्षा परिषद में अहम भूमिका निभा सकता है और अपने प्रयासों में लगा हुआ है और उसने यूरोपीय संघ और जी4 देशों के साथ मिलकर रणनीति बनाई है. जर्मनी का मानना है कि 21वीं सदी के भू-राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए सुरक्षा परिषद में सुधार जरूरी है. हालांकि अब जर्मनी की राह रूस और चीन जैसे देशों के विरोध के चलते और ज्यादा मुश्किल हो गई है.