Chanakya Niti: पति को पराई स्त्री के बजाय पत्नी से संतोष रखना चाहिए! जानें चाणक्य ने इस श्लोक में किन 3 बातों को अहमियत दिया है!
Chanakya Niti (img: file photo)

आचार्य चाणक्य ने मौर्य साम्राज्य की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इसके साथ ही उन्होंने राजनीति शास्त्र का भी पाठ पढ़ाया. उनकी चाणक्य नीति दुनिया भर में मशहूर भी है और स्वीकार्य भी. इसी चाणक्य नीति के एक श्लोक में स्त्री, भोजन और धन से जुड़ी महत्वपूर्ण नीति बताई है, जिसे समझकर जीवन में उतारने से इंसान हर तरह से सुखी हो जाता है. आइये जानते हैं चाणक्य नीति के तहत आचार्य ने निम्न श्लोक में क्या कहना चाहा है. यह भी पढ़ें : Mokshada Ekadashi 2024 Wishes: मोक्षदा एकादशी की इन भक्तिमय हिंदी WhatsApp Messages, Facebook Greetings, Quotes के जरिए दें शुभकामनाएं

'सन्तोषस्त्रिषु कर्त्तव्यः स्वदारे भोजने धने।

त्रिषु चैव न कर्त्तव्योऽध्ययने जपदानयोः `

इस श्लोक के माध्यम से आचार्य चाणक्य सन्तोष अथवा संतुष्टी के महत्त्व को प्रतिपादित करते हुए कहना चाहा है कि व्यक्ति को अपनी ही पत्नी स्त्री से सन्तोष करना चाहिए, फिर भले ही वह रूपवती हो अथवा साधारण नयन-नक्श वाली हो. वह सुशिक्षित हो अथवा निरक्षर, क्योंकि वह उसकी विवाहित पत्नी है, क्या यह कम है! इसी तरह व्यक्ति को जो भोजन नसीब हुआ है, उसे उसी से संतोष कर लेना चाहिए. अपनी कमाई हुई रोटी रूखी भी भली होती है. आजीविका से प्राप्त धन के सम्बन्ध में भी चाणक्य ने सटीक विचार देते हुए कहा है कि व्यक्ति को असन्तोष में खेद या दुःख प्रकट नहीं करना चाहिए. इससे उसकी मानसिक शांति नष्ट नहीं होती.

अगर कोई व्यक्ति ऐसा नहीं करता है तो वह स्वयं को सदा दुःखी पाता है. इसके ठीक विपरीत चाणक्य का यह भी मानना है कि शास्त्रों के अध्ययन, प्रभु के नाम का स्मरण और दान-धर्म में कभी सन्तोष नहीं करना चाहिए. ये तीनों कार्य दिल से और ज्यादा से ज्यादा चाहिए. इससे मानसिक शांति व आत्मिक सुख मिलता है. प्रायः ऐसा देखा-सुना जाता है कि व्यक्ति जो कुछ भी अपने भाग्य में लिखाकर आया है, उसे प्रयत्न करने पर भी बदला नहीं जा सकता, इसलिए यदि उसके भाग्य से मिली वस्तु अथवा पत्नी के साथ सन्तोषपूर्वक जीवन बिताएगा तो उसे किसी भी तरह से हानि नहीं होगी, क्योंकि मनुष्य का जीवन पानी के बुलबुले के समान है, जो आज है, और शायद कल न रहे. इसलिए चाणक्य की नीति इस बात पर जोर देती है कि मनुष्य को चाहिए कि वह सदा शुभ कार्यों संलग्न बना रहे.